सल्तनत और मुगल 3

 


सल्तनत और मुगल 3

दिल्ली सल्तनत अर्थात उत्तर भारत में स्थायी मुस्लिम शासन के 65-70 साल तक भी दिल्ली सुरक्षित न थी केवल कुछ समय तक शांति थी जबतक इल्तुतमिश और रजिया जैसे कुछ ठीक-ठाक शासक रहे। इनके जाने के बाद फिर वही अस्थिरता और असुरक्षा की स्थिति बन गयी। यहाँ तक कि राजधानी दिल्ली की जनता पर अक्सर लुटेरों और डाकुओं का साया बना रहता था। किले के बाहर की स्थिति किसी गाँव जैसे थी कि कभी भी कोई शक्तिशाली सरदार आये और लूट-माल के साथ वापस चला जाये। उधर पश्चिमोत्तर की ओर मंगोल आक्रमण भी निरंतर जारी थे।

इन्हीं सबके बीच इल्तुतमिश का एक गुलाम "बलबन" सल्तनत की राजनीति में आता है जो 20 साल तक प्रधानमंत्री(असल मे शासन उसी के अनुसार चलता था) और फिर 20 साल के लिये सुल्तान बना। इस बीच केवल 2 साल के लिए इमादुद्दीन रैहान नाम का एक भारतीय मुसलमान प्रधानमंत्री(असल पदनाम था:- नायब -ए-ममलिकत) बना था लेकिन विदेशी तुर्क सरदार इस बात को ज्यादा दिन तक बर्दाश्त न कर सके और उसे हटा दिया गया, बलबन दुबारा प्रधानमंत्री बन गया।

कहतें हैं कि बलबन ने ही कोई धीमा जहर देकर अपने सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद को मरवाया जो कि बलबन का दामाद भी था। बलबन ने अपने प्रधानमंत्री वाले कार्यकाल में सुल्तान के पद को इतना कमजोर कर दिया था कि स्वयं सुल्तान बनने पर उसे सुल्तान पद की गरिमा और शक्ति ऊँचा उठाने के लिए एक नया राजत्व सिद्धांत लाना पड़ा। बलबन के अनुसार सुल्तान का पद अर्ध-दैवी होता है अर्थात सुल्तान अल्लाह का प्रतिनिधित्व(नियाबते-खुदाई) करता है।

सुल्तान पद को निरंकुश और शक्तिशाली बनाने के लिए उसने कुछ दरबारी नियम भी जारी किए जैसे:- सामन्तो/सरदारों को सुल्तान के सामने माथा टेकना(सिजदा) और सुल्तान के पैरों को चूमना(पाबोस)। दरबारियों को कठोर अनुशासन के साथ रहना होता था,जैसे:- वे आपस में बातचीत और हँसी-मजाक नहीं कर सकते। बिना सुल्तान के पूर्व अनुमति के कोई कुछ भी बात नहीं रख सकता। सामंत कीमती और भड़कीले वस्त्र नहीं पहन सकते। साथ ही सुल्तान ने खुद के लिए अलग से बेशकीमती और भड़कीले वस्त्र निर्धारित किये जिससे वह हैसियत में सामन्तो से कहीं अधिक श्रेष्ठ मालूम पड़े। सुल्तान भी अनुशासित रहने लगा बिना किसी विशेष प्रयोजन के किसी से बात नहीं करता था। खुद को उच्च कुल का बताते हुए प्राचीन ईरानी अफरासियान का वँशज घोषित किया।

बलबन ने केंद्रीय प्रशासन को बढ़ाते हुए सामन्तो पर पूर्ण नियंत्रण रखना शुरू कर दिया। इसके लिए सामन्तो को सैनिक दृष्टि से कमजोर कर सुल्तान के केंद्रीय सैनिकों की सँख्या बढ़ाने के किये एक नए सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज को स्थापित किया। गुप्तचरों की एक विस्तृत जाल बिछाई गई , उसके विश्वसनीय बरीद(जासूस) साम्राज्य के प्रत्येक घटना की जानकारी देते थे। सेना और गुप्तचरों के बल पर ही उसने मंगोलों के साथ अपने सामन्तो पर भी नकेल कसा। बलबन जो कि खुद चालीस दासों में से एक था, इसने इस दल-चालीसा के सभी सरदारों को पदों से हटाना शुरू कर दिया। जो अधिक शक्तिशाली थे उनकी हत्या कर दी गयी। नए सामन्त उसके कृपापात्र थे।

इन सब के लिए बलबन ने निष्पक्ष न्याय देने का बंदोबस्त किया जिसके तहत न्याय के मामले में सब बराबर थे। इसी कारण उसने एक गलती पर अवध के गवर्नर को कोड़े लगवाए और अन्य सामन्तो के गलतियों पर भी कड़ी सजा दी। जनता में इससे उसकी लोकप्रियता बढ़ी और लोग समझने लगे कि असल मालिक सुल्तान है न कि कोई सरदार या सामंत।

केंद्रीय प्रशासन को ठीक करने के बाद उसने आंतरिक विद्रोहों को भी मजबूती से कुचलना शुरू कर दिया। मेवाती सरदार जो कि अक्सर राजधानी दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में लूट-मार मचाते थे, ये अक्सर राजधानी के अंदर तक घुसकर, लूटने के बाद पास के घने जंगलों में छिप जाते थे। इन्हें एक बड़ी सेना के साथ घेरकर मारा गया, जंगलों को काट और जला दिया गया। इनके गाँवों को नष्ट कर दिया गया। मेवाती पुरुषों को मारकर उनके स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाकर बेच दिया गया। हर अशांत जगह को सैनिक छावनी में बदल दिया गया। इसके साथ ही कटेहरी राजपूतों, अमरोहा और बंदायूँ क्षेत्र के विद्रोहियों को भी समाप्त कर दिया गया। इतिहासकारों ने इस नीति को 'लौह और रक्त की नीति' का नाम दिया गया है।

अगले भाग में बलबन ने बंगाल के तुगरिल बेग और उसके सेनानायकों को किस निर्ममता के साथ मृत्युदंड दिया कि लोग उसको एक नजीर समझें उसपे लिखा जाएगा साथ ही बलबन से संबंधित कुछ अन्य बातें भी।

क्रमशः

#सल्तनत_और_मुगल

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Written by Dr. Ankit Jaiswal

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