क्या पुष्यमित्र शुंग बौद्ध विरोधी था?

 

क्या पुष्यमित्र शुंग बौद्ध विरोधी था?

क्या वाकई पुष्यमित्र शुंग वैसा ही घोर बौद्ध-विरोधी और भिक्षुओं का हत्यारा था, जैसा कि उसे प्रचारित किया गया है?

मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग के शुरुआती घटनाओं का जिक्र इस बात से होता है कि उसने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ(लगभग 184 ई0पू0) की हत्या उसकी सेना के सामने कर दी और खुद शासक बन गया। सैनिकों के सामने राजा की हत्या और सैनिकों का मौन रह जाना ये किसी सुनियोजित क्रिया का ही परिणाम कहा जा सकता है। या तो मौर्य राजा नाममात्र का शासक था या फिर सेना अथवा कह सकते हैं कि आम जनता भी मौर्य शासकों से अप्रसन्न थी।

पुष्यमित्र शुंग बैम्बिक काश्यपगोत्र का ब्राह्मण था(मालविकाग्निमित्र और बौधायन श्रौतसूत्र के अनुसार) फिर भी हम देखते हैं कि वह सेनापति था, इसलिए माना जा सकता है कि मौर्य सेना में और भी ब्राह्मण वर्ग के लोग रहे होंगे। पुराण, जो कि इस काल का सबसे बढ़िया जानकारी देते हैं उनके अनुसार पुष्यमित्र शुंगवंशी था। पाणिनि और आश्वलायन सूत्र के अनुसार शुंग लोग भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण थे।

एक दूसरी व्याख्या में हरप्रसाद शास्त्री ने पुष्यमित्र और उसके वंशजों के नामों के अंत में मित्र देखकर उन्हें पारसिक घोषित किया था लेकिन बिना किसी और सबूत के उन्हें अपना मत त्यागना पड़ा। बाकी अगर ये पारसिक होते तो सेनापति के पद तक पहुँचाना मुश्किल लगता है। हर्षचरित(सातवीं सदी) में बाणभट्ट ने पुष्यमित्र द्वारा धोखे से हत्या करने के कारण उसे अनार्य कहा है। पतंजलि ने महाभाष्य में लिखा है कि ब्राह्मण-राज्य सबसे उत्तम होता है इससे भी इसका ब्राह्मण होना घोषित होता है क्योंकि पतंजलि पुष्यमित्र के पुरोहित थे।

पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्ष तक राज्य किया जबकि मेरुतुंग के थेरावली जैन ग्रन्थ के अनुसार इसका राज्यकाल 30 वर्ष का था। थेरावली भले ही बहुत बाद का लिखा ग्रन्थ है लेकिन उसमें अवंति(उज्जैन)के शासकों की बढिया जानकारी मिल जाती है। मौर्य शासकों के अधीन पुष्यमित्र अवंति का गवर्नर भी था।

कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक(चौथी सदी) के अनुसार पुष्यमित्र ने नर्मदा को पार कर दक्षिण के विदर्भ(महाराष्ट्र) पर आक्रमण किया क्योंकि वहाँ का गवर्नर बृहद्रथ मौर्य का रिश्तेदार था, इसलिए समझा जा सकता है कि पुष्यमित्र शुंग के वंशजों को बाद में सातवाहनों से भी संघर्ष करना पड़ा होगा। पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में हमें यूनानियों के 2 आक्रमणों का जिक्र मिलता है(महाभाष्य, गार्गी-संहिता और मालविकाग्निमित्र में उल्लेख है)। इन दो यूनानी आक्रमणों के नेता क्रमशः- डेमेट्रियस और मिनांडर ही हो सकते हैं क्योंकि सिक्कों और यूनानी लेखकों के अनुसार इनका काल 150 ई0पू0 के आगे-पीछे मिलता है।

ध्यान देने वाली बात ये है कि मिनांडर बौद्धिष्ट हो गया था और उसकी राजधानी सियालकोट बौद्ध भिक्षुओं का आश्रय-स्थल था। हो सकता है कि पुष्यमित्र के ब्राह्मणवादी नीतियों से असंतुष्ट होकर कुछ प्रमुख बौद्ध भिक्षु मिनांडर के शरण में आ गए होंगे। इन्हीं बौद्ध भिक्षुओं के समर्थन से जब मिनांडर मथुरा तक आक्रमण करता है तो पुष्यमित्र द्वारा यूनानियों से युद्ध(मालविकाग्निमित्र में यह लिखा गया है कि सिंधु के तट पर यूनानियों से युद्ध हुआ था) के क्रम में इन बौद्ध भिक्षुओं को भी मारा गया हो, जिनका जिक्र दिव्यावदान और आगे अन्य ग्रन्थों में बढ़ाचढ़ाकर पेश किया गया हो।

अशोक के अभिलेखों के अनुसार अशोक अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता, ख़ासकर श्रमणों और ब्राह्मणों के प्रति विशेष आदर का भाव रखने को कहता है, क्योंकि उस समय श्रमण और ब्राह्मण ये 2 वर्ग, विशेष धार्मिक-दार्शनिक और बौद्धिक कार्यों में लिप्त थे( अगर प्राकृत-बमन यानी संस्कृत-ब्राह्मण शब्द से वैदिक ब्राह्मण का सबूत चाहिए तो सातवाहन लेखों में देखिए जो प्राकृत भाषा में ही हैं जहाँ बमन=ब्राह्मण का वर्णन वर्णाश्रम धर्म के अनुसार है)। अशोक के अभिलेख ये भी बताते हैं कि उसने पशु-वध पर रोक लगा दिया था, साथ ही समाज के अन्य कर्मकाण्डीय अनुष्ठानों का भी खिल्ली उड़ाते हुए केवल धम्म-समारोह करने की बात करता है।

जाहिर है कि इससे ब्राह्मणों का सम्मान और आय घटी होगी,अतः अधिकाँश ब्राह्मण यह चाह रहे होंगे कि कोई ऐसा शासक हो जो उनके हितों और विशेषाधिकारों की नीतियों के अनुसार चले। इससे हम कह सकते हैं कि पुष्यमित्र का कार्य ब्राह्मण प्रतिक्रिया का ही एक प्रमुख लक्ष्य था। इसकी पुष्टि इस बात से भी हो जाती है कि मौर्य वंश के बाद 3 महत्वपूर्ण राजवंश ब्राह्मण वर्ग के थे। शुंग, कण्व और सातवाहन( सातवाहन खुद तो कबीलाई समाज से थे लेकिन तत्कालीन ब्राह्मण वर्ग के उत्कर्ष के कारण इन्होंने सम्मानित दर्जा प्राप्त करने के लिए अभिलेखों में खुद को विशिष्ट ब्राह्मण घोषित किया है जो परशुराम के जैसे क्षत्रियों का नाश करने वाले थे)।अयोध्या में मिले शुंग वंशीय गवर्नर का अभिलेख और महाभाष्य तथा मालविकाग्निमित्र से पुष्यमित्र द्वारा जो 2 अश्वमेध यज्ञ करने का जिक्र मिलता है उससे भी यह समझा जा सकता है कि पुष्यमित्र ब्राह्मणवादी विचारधारा और वैदिक धर्म का घोर समर्थक था।

लेकिन सवाल ये है कि इस क्रम में क्या वह घोर बौद्ध विरोधी भी था? जाहिर सी बात है पुष्यमित्र द्वारा ब्राह्मणवादी-वैदिक मत के समर्थकों को संतुष्ट करने के लिए ब्राह्मण कर्मकांडो, यज्ञों और ब्राह्मण धर्म के नीतियों को राज्य में लागू किया गया होगा जिससे अशोक और उसके वंशजों द्वारा पोषित बौद्ध-भिक्षुओं के अधिकारों और सम्मान को चोट लगी होगी और इस वजह से उन्होंने विद्रोह किया हो। इसके पर्याप्त सबूत हैं कि इस समय ज्यादातर बौद्ध-भिक्षुओं का आश्रय मगध साम्राज्य के बजाय यूनानी शासक मिनांडर के राज्य में देखने को मिलता है इससे भी इस बात की पुष्टि हो जाती है।

पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध विरोधी होने और बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम करने का जो जिक्र मिलता है उसका पहला साक्ष्य है ,बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान, जो कि तीसरी से पाँचवी सदी का है। दिव्यावदान के अनुसार पुष्यमित्र घोर बौद्ध विरोधी था, इसने अशोक द्वारा बनवाये गए 84000( एक अतिप्रिय बौद्ध संख्या )स्तूपों को नष्ट करवा दिया। बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करते हुए जब वह सियालकोट(पंजाब) पहुँचा तो उसने घोषणा की, जो मुझे एक भिक्षु का सिर देगा मैं उसे 100 दीनारें दूँगा। ठीक यही बात दशवीं और उसके बाद की सदी के लेखक क्षेमेन्द्र और तारानाथ ने भी दोहराया है।

जबकि मौर्योत्तर,शुंग और कुषाण काल के आसपास के बौद्ध ग्रन्थों में जिनमें जातक ग्रन्थ और अश्वघोष जैसे बड़े नाम हैं, इन लोगों ने पुष्यमित्र के बौद्ध-भिक्षुओं की हत्या या बौद्ध विहारों को नष्ट करने का कहीं कोई जिक्र न किया है।
ये तीनों ग्रन्थ जो पुष्यमित्र को घोर बौद्ध विरोधी बताते हैं,बौद्ध धर्म के हैं। किसी भी ब्राह्मण,जैन ग्रन्थों में या किसी भी अभिलेख में बौद्ध विहारों, स्तूपों को नष्ट करने का या भिक्षुओं की हत्या का कोई जिक्र नहीं मिलता।

पुरातत्व के अवशेषों में भी ऐसा कुछ नहीं मिलता, 1-2 उदाहरण जो बताए गए हैं वो बहुत संदिग्ध हैं।
इन बौद्ध ग्रन्थों पर बहुत विश्वास भी नहीं किया जा सकता क्योंकि इन्हीं में ये भी लिखा मिलता है कि बौद्ध धर्म मे आने से पहले अशोक बहुत क्रूर शासक था जिसने अपने 99 भाईयों को मारकर राजगद्दी हासिल की जबकि अशोक के लेखों में उसके जीवित भाईयों के परिवारों का जिक्र है।

कुछ फैक्ट ऐसे भी हैं जो ये साबित करते हैं कि पुष्यमित्र भले ही ब्राह्मणवादी-विचारधारा के पुनरुत्थान में सहयोगी था लेकिन वह कट्टर बौद्ध विरोधी नहीं था। अशोक द्वारा बनवाये गए भरहुत, साँची और बोधगया के स्तूप शुंगकाल में ही विशाल रूप में बनाये गए, जहाँ अशोक ने इन्हें ईंटो से बनाया था वहीं शुंगकाल में इन्हें विशाल पत्थरों से सुसज्जित किया गया। इन स्तूपों को शुंगकाल में भी राजकीय और व्यक्तिगत सहायता मिलती रही।

शुंगकाल में ही इन स्तूपों को मूर्तियों और बौद्ध कथानक-चित्रों से सजाया गया। स्तूपों के साथ डबल रेलिंग बने। भरहुत के एक तोरण पर तो ये भी लेख खुदा मिलता है कि शुंगों के राज्य में गार्गीपुत्र विश्वदेव के पौत्र, वत्सीपुत्र-धनभूति के द्वारा यह तोरण और शिला-स्तम्भ लगवाया गया।

Written by Dr. Ankit Jaiswal

    1 comment:

    1. बेहतरीन पोस्ट ♥️👍💐

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