फिल्म समीक्षा: द लंचबाॅक्स

 

The Lunchbox

यह मूवी दो इन्सानों के अनकहे सवांद को एक दूसरे के साथ बांटने पर आधारित हैं ।

इस मूवी में दो मुख्य किरदार हैं ।

पहला किरदार एक युवा महिला इला का हैं । जो कि पहली नज़र में देखने पर ही हाउस वाइफ लगती हैं। इला अपने पति औऱ एक बच्ची के साथ फ्लेट में रहती हैं । मूवी में उसकी जिंदगी नीरस सी दिखाई पड़ती हैं । वो अपने पति को अपनी और आकर्षित करने के लिए स्वादिष्ट खाना बनाती है । उसे मालूम है कि पेट के रास्ते दिल मे उतरा जा सकता है, लेकिन बदकिस्मती से ये फार्मूला यहाँ लागू नही होता हैं । उसका पति उसमे इंटरेस्ट नही लेता । मूवी में इला को अधिकतर खाना बनाते औऱ कपड़े धोते हुए दिखाया जाता हैं । यह एक अच्छी हाउस वाइफ होने की निशानी को दर्शाता है । इसके परे उसकी कोई जिंदगी नही । इला को पूरी मूवी में बिल्कुल सिंपल, घरेलू ड्रेस में, ना कोई मेकअप ना कोई सॉज सज्जा औऱ ना ही ऐसा कोई शौक जिससे लगे कि उसमे उमंगे अभी बाकी हैं, दिखाया जाता हैं । शायद इसी वजह से उसका पति उसे पसंद न करता हो । पति पत्नी के बीच के रति संबंध भी नही के बराबर । घरेलू जिम्मेदारी संभालने के अलावा, इला खाना बहुत टेस्टी बनाती हैं ।

मूवी का दूसरा किरदार एक विधुर इंसान के रूप में साजन फर्नांडिस का हैं । जिसके घर मे उसके सिवा कोई नही । असामाजिक प्राणी, स्वभाव से अक्खड़ । किसी से बातचीत करना ना के बराबर। ना किसी से कुछ लेना ना किसी को कुछ देना। ऑफिस में उससे किसी भी तरह की उम्मीद रखना बेमानी हैं । लेकिन अपने 35 साल की अकॉउंटेंसी की नौकरी में एक बार भी गलती नही करने वाला वो एकमात्र इंसान होता हैं। उसमे बस यह एक ही अच्छाई नज़र आती हैं । उसके घर के बाहर बच्चे क्रिकेट खेलते हैं । यदि बॉल उसके घर मे चली जाएं, तो वापस नही देता । इतना खड़ूस 😁

जब साजन बच्चो को बॉल नही देता तो उन बच्चो में से एक लड़की डिनर के समय अपने घर की खिड़की बंद कर लेती है, जब साजन अपने घर की बालकनी से उसे देख रहा होता हैं , वो खिड़की साजन के घर के बिल्कुल सामने होती हैं ।
जब साजन के स्वभाव में बदलाव आता है तो वो बच्चो को खेलने से नही रोकता औऱ अब वही बच्ची डिनर के समय खिड़की से हेलो बोलती हैं ।

मोहब्बत औऱ नफरत के खेल की गणित बहुत सीधी हैं । अगर आप मोहब्बत बांट रहे हो तो मोहब्बत ही मिलेगी और नफरत बांटने पर नफरत । यह उस छोटी बच्ची से भी सीखा जा सकता हैं । कितनी सिंपल परिभाषा है मोहब्बत औऱ नफरत की । 🥰

मूवी में एक किरदार आसिफ शेख का है जो साजन के आफिस में साजन के रिटारमेंट के बाद उसकी जगह लेने वाला होता हैं । यह किरदार भी काफी दिलचस्प हैं । मूवी में अपनी जगह बनाता हुआ नजर आता हैं ।

मूवी के दोनों मुख्य किरदार अपने आप मे अकेलापन महसूस करते हैं। जहाँ इला युवा स्त्री है वहीँ साजन अधेड़ उम्र का पुरुष है। साजन मैच्योर है इसलिए अपनी भावनाएं किसी को जाहिर नही होने देता। लेकिन वहीं पर इला युवा है और अपनी भावनाओं को एक्सप्रेस करना चाहती हैं, लेकिन उनके फ्लेट के ऊपर रहने वाली एक आंटी के अलावा उसके पास कोई औऱ साझी नही जो उसकी भावनाओं को अच्छे से समझ सकें। इसलिए अपनी पड़ोसन आंटी से ही गुफ्तगू करके अपने आपको हल्का कर लेती हैं। अक्सर दोनो ऊंची आवाज में गाने सुनना पसंद करती हैं ।

दोनो किरदारों की जिंदगी इसी तरह अपने अपने अकेलेपन के साथ कट रही होती हैं । फिर एक दिन एक लंच बॉक्स के गलत एड्रेस पर पहुचने की वजह से उन दोनों किरदारों की आपस में मुलाकात होती हैं । दोनो किरदारों को लंच बॉक्स के माध्यम से अपनी भावनाएं एक दूसरे के साथ शेयर करने का मौका मिलता हैं। दोनो को अच्छा लगता हैं । उनके अकेलेपन को महसूस होता है कि कोई उनके ख़ालीपन को भरने लगा हैं। जहाँ इला बेहिचक अपने आपको साजन के साथ अपनी बातें शेयर करना शुरू कर देती है, वहीं साजन शुरू में रुकता हैं, लेकिन बाद में वो भी अपनी बातें इला के साथ शेयर करना शुरू कर देता हैं । इस तरह उनमे रोजाना ख़तों का सिलसिला उस लंच बॉक्स के जरिए से शुरू होता हैं ।

इस सिलसिले के दौरान ऐसा प्रतीत होता है जैसे दो मुरझाई हुई आत्माएँ फिर से खिलने लगी हो।
जब बरसात की बूंदे जमीन पर पड़ती हैं और उसकी वजह से जमीन से जो सोंधी सोंधी महक आना शुरू हो जाती हैं, वो महक उन दोनों किरदारों के अन्तस में रमती हुई सी महसूस होने लगती हैं ।☺️

ख़त के जरिए हुई मुलाकाते, धीरे धीरे हमदर्द से हमनवा की औऱ बढ़ने लगती हैं, प्यार के स्पंदनो का अंकुरण शुरू होने लगता हैं ।

उन दोनों किरदारों को लंच बॉक्स का इंतेज़ार ऐसे रहता है जैसे एक पानी पूरी खाने के बाद दूसरी पानी पूरी की बेसब्री रहती हैं । ख़त पढ़ने की खुशी हर बार उन दोनो के चेहरे पर महसूस की जा सकती है । जहाँ इला अब अपने आपको हल्का महसूस करने लगती हैं, वहीं साजन भी अपने अक्खड़पन से मुक्त होकर खुश मिज़ाज़ होने लगता हैं । दोनो बिना एक दूसरे को देखे, बिना एक दूसरे से मिले, एक दूसरा का ख़ालीपन भरने लगते हैं । दोनों के बीच ख़तों के द्वारा सवांदो की केमिस्ट्री को बहुत ही खूबसूरती से दिखाया गया है, जहाँ आपको ये बुरा न लगकर अच्छा लगता हैं । दोनो इन आपसी सवांदो से अपने अपने अकेलेपन से मुक्त होने लगते हैं ।

इला चाय लेकर ख़त पढ़ने बैठती हैं, चाय ठंडी हो जाती है, लेकिन ख़त पढ़ने की खुशी में उसे पता ही नही चलता । ऐसे ही साजन को खत पढ़ने की इतनी खुशी होती है कि उसी से उसका पेट भर जाता है और उसका लंच आसिफ शेख करने लगता हैं ।

हम इंसानों की असली खुराक भावनाएं होती है, अगर हमे उसकी भरपूर खुराक मिलती जाएं तो बहुत ही कम भोजन से हम काम चला लेते है, यहाँ तक कि कई बार न खाकर भी ।
दोनो किरदारों को उनकी उम्र का पता नही होता । लेकिन भावनात्मक जुड़ाव कभी उम्र को नही देखता औऱ ना ही कुछ और । बस दोनो एक दूसरे से बिल्कुल अंजान । जहाँ एक युवावस्था के प्रथम चरण में हैं औऱ दूसरे किरदार की युवावस्था खत्म हो चुकी है, वह अधेड़ावस्था में हैं ।

जब इला को पता चलता है कि उसके पति का कही अफेयर चल रहा है, वो अपने पति से अपने संबंध अच्छे होने की उम्मीद छोड़ देती हैं । अब वो साजन के साथ भूटान जाकर अपनी नई जिंदगी बसाने का मन कर लेती हैं । लेकिन इससे पहले वो साजन से एक बार मिलना चाहती हैं ।

इंसान के पास जब विकल्प हो तो वो अपनी किसी भी गोल पर पूरी तरह से फोकस नही कर पाता ।

दोनो एक रेस्टोरेंट में मिलना तय करते है । दोनो वहाँ पहुँचते भी है। लेकिन साजन को इला खुद की उम्र के हिसाब से बहुत छोटी लगती हैं । इसलिए वो उससे नही मिलता । उसे अपनी अधेड़ावस्था का अहसास हो जाता हैं। फिर ख़त के माध्यम से वो इस हकीकत को जाहिर भी करता है, ताकि इला उससे कोई अपेक्षा ना रखें । इस घटना के दूसरे दिन लंच बॉक्स का खाली आना, दरअसल इला की सभी उम्मीदों के ढहने का गुबार होता है, जो उसने साजन से लगाई थी ।

मूवी में इन दोनों किरदारों को आपस मे मिलाने का काम एक लंच बॉक्स के जरिये से होता। पूरी मूवी में वो लंच बॉक्स उन दोनों के लिए डाकिए का काम करता हैं । शायद इसीलिए मूवी का नाम लंच बॉक्स रखा गया हो ।

मूवी बहुत ही सिंपल है । इसमे किसी तरह की तड़क भड़क, मसाला नही, कोई गाना नही। मूवी के मुख्य पात्र भी अभिनय करते नज़र नही आते, बल्कि ऐसा लगता कि अपनी जिंदगी जी रहे कुछ लोगो की जिंदगी के कुछ हिस्सो को शूट करके आपको दिखाया जा रहा हैं ।

इरफान खान जहाँ अभिनय में अपने अभिनय की विराटता दिखाते हैं, वहीं निमरत कौर भी उस विराटता के सामने अपने वजूद का अहसास करवाती हैं ।

फ़िल्म का एक डॉयलोग "कभी कभी गलत ट्रैन भी सही जगह पंहुचा देती हैं ।" उन दोनो पर फिट होता नजर आता है । लेकिन यह फिट है या अनफिट ? मूवी के अंत मे यह फैसला आप पर छोड़ कर मूवी खत्म कर दी जाती हैं ।

आप उनके लिए क्या फैसला करना चाहंगे ?

शुक्रिया 🦋 ❤️

The Lunchbox (2013)
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