फिल्म समीक्षा: एक बंदा काफी है

 

सिर्फ एक बन्दा काफी हैं


हिंदी ऑडियो में ZEE5 पर उपलब्ध हैं ।

मूवी का शीर्षक मूवी की स्टोरी के हिसाब से ठीक हैं । लेकिन जो मेसेज मूवी के द्वारा दिया गया है, उसके अनुरूप फिट नही बैठता ।

मूवी का मुख्य विषय आस्था और विश्वास के बारे में हैं । जो मूवी देखते हुए महसूस हो जाता है कि आस्था से पनपे विश्वास और अंधविश्वास में कितना फर्क हैं । इस विषय को न्याय और अन्याय के धागों से बुन कर दिखाया गया हैं ।

हिंदुस्तान में धर्म बहुत ही लोकप्रिय विषय रहा हैं । इसकी चपेट में लगभग सभी मिलेंगे, क्या गरीब और क्या अमीर ।

धर्म के नाम पर किये जा रहे अधर्म से कोई अनभिज्ञ नही । लेकिन फिर भी इतनी हिम्मत नही की उस अधर्म का विरोध कर सकें । इसलिए धर्म के साथ अधर्म का कारोबार भी बदस्तूर जारी रहता हैं ।

लेकिन प्रकृति में सभी का समय नियत हैं । समय पूर्ण होने पर उसका हिसाब हो जाता हैं । प्रकृति लिए धर्म और अधर्म के कोई मायने नही । जैसे ही कर्म के फल देने का समय हुआ, समय का अच्छा या बुरा होना शुरू हो जाता हैं । कर्म फल के इस सिस्टम को समझना आसान नही । लेकिन बहुत आसान भी हैं, लेकिन सिर्फ अपने स्तर तक ।

धर्म के नाम पर जब भी कोई बाबा बनकर अपना खेल रचना शुरू करता हैं, तो सबसे पहले वो अपना बचाव तंत्र विकसित करता हैं । ताकि विपरीत समय आने पर वो अपना बचाव कर सकें ।

मूवी में फैसला सुनाने से पहले बाबा की पैरवी करने वाला वकील उस तंत्र को सामने रखकर कालजयी फैसला सुनाने की बात कहता हैं। जिसमे बाबा द्वारा रचे गए अपने बचाव तंत्र अर्थात हॉस्पिटल्स, मंदिर, लंगर, आश्रम, इत्यादि औऱ उसमे लगे असंख्य लोगो की आजीविका औऱ उनसे मिलने वाले फायदों को सामने रखा जाता हैं ।

इस तरह का बचाव तंत्र धर्म के नाम पर अधर्म करने वाले सभी धार्मिक लोग करते हैं । क्योकि अधर्म करते हुए जो ग्लानि वो महसूस करते है और उससे जो डर पनपता है, उसका निवारण बहुत जरूरी हैं, अन्यथा जीना मुश्किल हो जाता हैं ।

हर इंसान का अच्छा और बुरा समय चलता हैं । बाबा के चरम समय मे बाबा उचाइयां छूता हैं और वो समय पूरा होने पर एक मामूली सी लड़की उसको गर्त में ले जाती हैं ।

भक्तों का भगवान आम इंसान में बदल जाता हैं ।

हिंदुस्तान में भक्तों की कमी बिल्कुल भी नही । एक ढूंढो, हज़ार मिलेंगे । जहाँ जरूरत होती है सम्मान करने की, लोग वहां भक्ति करने लगते हैं । बस यहीं चूक हो जाती हैं ।
आम इंसान को भगवान बना बैठते हैं ।

नास्तिकों के लिए कहा जाता है कि वो भगवान को नही मानते । लेकिन अगर कोई बाबा भक्तों के लिए भगवान है तो क्या उस भगवान को मालूम नही की अब उसके साथ क्या होने वाला हैं । जो कर्म वो कर रहा है क्या उसको उसका पाप नही लगेगा ? शायद नही । तभी तो वो उस कुकर्म में लिप्त हैं । उससे बड़ा नास्तिक कौन हो सकता है भला ?

कुछ भक्तों की नज़र में वो भगवान है । भगवान भोग के रूप में कुछ भोग भी ले तो उन भक्तों को कोई आपत्ति नही । लेकिन कुछ भक्तों को आपत्ति होती है जिसकी वजह से बाबा को भी वो दिन देखने पड़ जाते है, जिसकी वो कल्पना भी नही कर सकता ।

जो कर्म फल को समझेगा वो बाबा कभी गलत कर्म में नही उलझेगा औऱ ना ही किसी को इसमे उलझायेगा ।

मूवी में तीन तरह के पाप की श्रेणी बताई गई हैं । दरअसल पाप की श्रेणी आपकी नैतिकता पर निर्भर करती हैं । वो ही आपको बताती है कि आपके द्वारा किए गए कर्म पाप की श्रेणी में आते भी है या नही । वो क्षमा योग्य है या सिर्फ प्रायश्चित से काम चल जाएगा । यह सिर्फ आपकी नैतिकता का नज़रिया है या फिर कर्म फल के सिस्टम का हिस्सा हैं ? समझाना मुश्किल हैं लेकिन समझना ज्यादा आसान ।

मूवी का वो एक बन्दा जिसे मूवी में काफी डरता हुआ भी दिखाते हैं । लेकिन जब कोर्ट में होता है तो उसका डर बिल्कुल गायब जैसे कि वो, वो नही जो कोर्ट के बाहर हैं । बल्कि वो, वो हैं जिसके लिए उसे चुना गया हैं किसी नकली भगवान का मुखोटा उतारने के लिए ।

यह बताने के लिए की वो कोई भगवान नही बल्कि उसके नाम पर आपको बेफकुफ बनाने वाला एक बहरूपिया हैं । जिसमे आपकी आस्था के साथ साथ आपके विश्वास को भी तोड़ा हैं । उसने सनातन धर्म की बरसो से चली आ रही गुरु शिष्य की पवित्र परंपरा को धूमिल किया हैं । यह अक्षम्य अपराध हैं । इसकी माफी मतलब उस परंपरा का अपमान करना और शायद उसे खत्म करना हैं ।

ऐसे इन्सान की सजा ऐसी होनी चाहिए कि जो भी इस तरह तथाकथित भगवान बनकर आम लोगो के विश्वास को लूटने में लगे हैं, उन्हें भी सही राह पर ले आएं ।

लेकिन क्या यहाँ ऐसा संभव हैं ? शायद नही ।

"तेरी चादर मेरी चादर से मैली हैं ।"

बस यहीं आकर दूसरे बाबा का जन्म होता हैं । फिर धर्म और अधर्म का खेल शुरू होता हैं, फिर किसी नयें रूप में ।

सदा विदित रहे कि परमात्मा औऱ उसके अनुयायी के बीच मे कभी कोई नही रहा हैं । जो है वो सिर्फ लुटेरा हैं । परमात्मा ने ऐसी कोई व्यवस्था ही नही की, की उसके औऱ उसके अनुयायी के बीच कोई और हो । बस इसे ही समझने की जरूरत हैं ।

फिर शायद एक ही बन्दा काफी हो, और वो आप ही हो ।

धन्यवाद

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