सल्तनत और मुगल 2

 

सल्तनत और मुगल 2

"रजिया"(1236-40 ई0) भारत में मुस्लिम शासन की प्रथम और संभवतः अंतिम महिला शासक रही जो कि इल्तुतमिश की पुत्री थी। इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत में वंशानुगत राजतंत्र को स्थापित करते हुये अपनी बेटी उत्तराधिकारी नियुक्त किया क्योंकि उसकी नजरों में उसके बेटे अयोग्य थे।

दिल्ली सल्तनत तो अभी तुर्की सरदारों और उलेमा वर्ग की नीतियों पर संचालित थी, इसलिए इन दोनों वर्गों ने रजिया के सुल्तान बनने का विरोध किया।

उलेमाओं के अनुसार इस्लाम में महिला को शासक बनने की अनुमति नहीं दी गयी है, दूसरी ओर सशक्त सरदार वर्ग पुरुष-प्रधान व्यवस्था में किसी महिला के सत्ता के अधीन रहना नहीं चाहता था।
लेकिन रजिया के साथ दिल्ली की जनता(केवल शहर की मुस्लिम जनता जो प्रत्यक्ष रूप से सल्तनत से जुड़ी थी) थी जिसने स्वेच्छा और सक्रियता के साथ रजिया को सुल्तान बनाने में मदद की(कुछ अपुष्ट सूत्रों के अनुसार इल्तुतमिश की बेगम शाह तुर्कान के हस्तक्षेप से परेशान होकर कुछ असंतुष्ट सरदारों का भी समर्थन मिला था रजिया को)।

जल्द ही जब तुर्क सरदारों ने यह महसूस किया कि रजिया के शक्तिशाली होने पर 40 तुर्क सरदारों की दल-चालीसा(चिहलगानी) का पतन हो सकता है तो उन्होंने रजिया के खिलाफ षडयंत्र शुरू कर दिए। दूसरी ओर उलेमा वर्ग ने कहा कि रजिया ने पर्दा करना छोड़ दिया है, यह शरीयत के खिलाफ है।

रजिया ने इसके लिए एक नई नीति शुरू की। तुर्क सामन्तो के जगह वह गैर-तुर्क मुस्लिम सरदारों को प्रोत्साहन और पदोन्नति देने लगी,इनमें हबशी अबीसीनियाई(अफ्रीकी) सरदार मालिक याकूत प्रमुख था, जिसे रजिया ने अमीर-ए-अखुर(अस्तबल का प्रधान) का पद दिया। याकूत रजिया का इतना घनिष्ट था कि रजिया को घोड़े पर बैठते समय वह हाथों से सहारा देता था। मध्यकालीन लेखकों में जिनमें फरिश्ता प्रमुख है, इसके अनुसार इनके बीच प्रेम संबंध था(इसी को लेकर के हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की रजिया सुल्ताना फ़िल्म बनाई गई है जिसमें धर्मेंद्र को काले रंग में दिखाया गया है)। हालाँकि तत्कालीन इतिहासकार मिनहाज सिराज इस आरोप को सिरे से खारिज करता है।

चूँकि तुर्क सरदार खुद को अन्य मुस्लिम सरदारों से नस्लीय तौर पर उच्च समझते थे इसलिए गैर तुर्क सामंतों के आने के वजह से उनका असंतोष और बढ़ने लगा। रजिया ने दो तुर्क सरदारों मलिक एतगीन और मलिक अल्तूनिया को विशेष स्थान दे रखा था जबकि इन्हीं दो सरदारों ने रजिया को सत्ता से हटाने का मुख्य षड्यंत्र रचा, जिन्हें रजिया के वजीर का भी समर्थन प्राप्त हो गया था। षडयंत्रों और विद्रोह को दबाने के किये जब रजिया राजधानी से दूर गयी तो दिल्ली सिंहासन पर तुर्क सरदारों ने रजिया के सौतेले भाई बहराम शाह को बिठा दिया।

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अल्तुनिया को सरदारों ने नायब ममालिकत का पद न दिया तो वह विद्रोही सरदारों से अलग हो गया जिसका फायदा रजिया ने उठाया और उससे संपर्क स्थापित कर उससे विवाह कर लिया। रजिया ने अल्तुनिया के साथ मिलकर दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। रजिया युद्ध में पराजित हो गयी और भटिंडा आते समय रास्ते में कैथल के पास उसकी हत्या कर दी गयी।

रजिया का शासन केवल साढ़े तीन साल का रहा लेकिन यह मध्यकालीन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रथम कि वह भारत की पहली महिला मुस्लिम शासिका थी। द्वितीय कि उसे जनता के समर्थन पर सत्ता मिली। तृतीय कि रजिया ने पहली बार तुर्क इक्तादारों की शक्ति को तोड़कर गैर-तुर्क सरदारों को शासन में उच्च पदों पर सम्मिलित किया, इस मामले में वह अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक की अग्रगामी थी। रजिया एक बुद्धिमान शासिका थी जिसने ख़्वारिज्म के शासक को मंगोलों द्वारा निष्काषित होने पर शरण तो दिया पर मंगोलों के विरुद्ध कोई सैनिक सहायता करने से इनकार कर दिया, इल्तुतमिश ने भी अपने शासन के दौरान ऐसा ही किया था।

रजिया के अंदर राजनैतिक दूरदर्शिता और योग्यता का अभाव नहीं था फिर भी रजिया सफल न हुयी तो इसके पीछे शक्तिशाली तुर्क सरदारों और उलेमा वर्ग का विरोध था। तुर्क सरदारों के पास जहाँ प्रशासन और सैनिक शक्ति मौजूद थी तो वहीं उलेमा वर्ग अपने उच्च धार्मिक स्थान के कारण आम जनों के मत/विचार को नियंत्रित और प्रभावित कर सकता था।

तत्कालीन लेखकों ने रजिया सुल्तान के असफलता के लिए केवल एक कारण गिनाए हैं कि वह महिला थी इसलिए असफल हो गयी। तत्कालीन इतिहासकार मिनहाज सिराज लिखता है कि रजिया के अंदर एक महान, संप्रभु और सुल्तान के लिए आवश्यक सभी गुण और योग्यताएं मौजूद थीं। सुल्तान बनने पर उसने महिलाओं के वस्त्र त्याग दिये, चोगा(काबा) और टोपी(कुलाह) पहनने लगी। वह हाथी की सवारी करती थी। मर्दों के लिए वह इसलिए अयोग्य थी क्योंकि वह एक औरत थी।

आधुनिक इतिहासकार के. ए. निजामी लिखते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में वह सबसे श्रेष्ठ थी।

रजिया अपने सिक्कों पर उमदत-उल-निस्वां की उपाधि के नाम से जानी जाती थी। फिर भी रजिया के कब्र का निश्चित पता आजतक नहीं हो पाया है, 3 जगहों पर उसके असल कब्र होने के दावे किए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वो एक पुरुष शासक न थी।

क्रमशः
#सल्तनत_और_मुगल
Pic:- दिल्ली के तुर्कमान गेट के पास रजिया का उपेक्षित कब्र।

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