सल्तनत और मुगल 1

 

सल्तनत और मुगल

1206 ई0 भारतीय इतिहास का एक ऐसा साल था, जिसमें केन्द्रीय शासन एक ऐसे धार्मिक शासकों के समूह के हाथ आ गयी जो यहाँ के जनसाधारण के धर्म से एकदम उलट था। यह दिल्ली सल्तनत का इस्लामी शासन था जिसमें राजनीतिक स्थायित्व, प्रशासनिक कुशलता, सांप्रदायिकता, युद्ध, लूटमार, षड्यंत्र, नए सुंदर स्थापत्य, आर्थिक विकास के साथ कृषि/कामगारों के शोषण का एक नया अध्याय शुरू होता है।

जनसाधारण लोगों के शोषण का जो कार्य पहले स्थानीय स्तर पर या विकेन्द्रीकृत तरीके से होता था अब इसमें स्थानीयता के साथ-साथ अभूतपूर्व केंद्रीकृत व्यवस्था के साथ विशेषकर कृषक वर्ग पर लागू हुआ। कृषि क्षेत्र में शासन का इतना हस्तक्षेप शायद पहले कभी नहीं देखा गया था। कुछ मामलों में ये कृषि क्षेत्र में सुधारवादी भी था लेकिन अधिकांशतः यह कृषि क्षेत्र के लिए शोषणकारी रहा।

मुहम्मद गोरी के अचानक मृत्यु के कारण भारतीय क्षेत्रों में जीते गए क्षेत्रों के लिए कोई विशेष प्रबंध न हो पाया था।

गोरी के तीन मुख्य सेनानायकों यलदौज, कुबाचा और कुतुबुद्दीन ऐबक के बीच सत्ता का संघर्ष शुरू हुआ जिसमें अंतत कुतुबुद्दीन ऐबक को सफलता मिली, इसे दिल्ली सल्तनत का संस्थापक माना जाता है। असल में गोरी ने जिन क्षेत्रों को जीता था उनमें सल्तनत का प्रभाव नाममात्र ही था बल्कि अभी भी यहाँ पर स्वतंत्रत स्थानीय सामन्तो और जागीरदारों का दबदबा कायम था।
एक तरह से कह सकते हैं कि मुस्लिम सत्ता अभी तक केवल बड़े शहरों तक ही फैली थी, इन शहरों के अधीन आने वाले अधिकाँश क्षेत्र और वहां की जनता पर स्थानीय शक्तियों का शासन चलता था।

इल्तुतमिश जो कि असल मायने में ऐबक का उत्तराधिकारी बनके उभरा, उसके समय में दिल्ली सल्तनत को मजबूत करने का प्रयास किया गया, बंगाल के साथ-साथ वर्तमान यूपी और बिहार के अधिकांश क्षेत्रों को दुबारा जीतकर सल्तनत के शासनव्यवस्था के अंतर्गत लाया गया(दुबारा इसलिए क्योंकि इसके पहले के तुर्क-मुस्लिम आक्रमण एक तरह से एक बड़े हमले और लूट-पाट जैसा ही था, न कि वहाँ पर स्थायी शासन शुरू करने जैसा)।

1226 से इल्तुतमिश ने रणथंभौर, मंदसौर , जालौर(चौहानों से) और बयाना(आगरा के आसपास का क्षेत्र, तबतक आगरे की स्थापना न हुई थी) जीता। उसने जोधपुर, अजमेर और नागौर पर भी कब्जा कर लिया।
उसने पश्चिम की ओर लाहौर, भटिंडा, उच्छ और मुल्तान भी जीतकर सिन्ध तक बढ़ गया था। 1232 तक उसने ग्वालियर(प्रतिहार शासक से) को भी कब्जे में कर लिया।
हालांकि उसे नागदा के गुहिलोतों और गुजरात के चालुक्यों से हार के साथ बहुत नुकसान झेलना पड़ा।

इन आक्रमणों के दौरान भिलसा और उज्जैन का लूट भी शामिल है जहाँ पर नरसंहार के साथ महाकाल मंदिर को नष्ट करने का कार्य किया गया।

स्थापत्य के क्षेत्र में इसने बंदायूँ का प्रसिद्ध जामा मस्जिद, नागौर में अतार्किन का दरवाजा और क़ुतुबमीनार के निर्माण का कार्य जारी रखा था।

इल्तुतमिश के समय ही एक बार मंगोल चंगेज खां के आक्रमण का अंदेशा हो गया था लेकिन इल्तुतमिश के सूझबूझ से यह संकट टल गया। वरना भारत को भी चीन, मध्यएशिया और रूस के जैसे एक और बड़े विध्वंश को झेलना पड़ जाता, दिल्ली सल्तनत तो वहीं खत्म हो जानी थी!

इल्तुतमिश को सल्तनत के तीन प्रमुख स्तम्भों के निर्माणकर्ता के रूप में जाना जाता है जिसमें थे:- इक्ता-प्रणाली, सैन्य-संगठन और मुद्रा-प्रणाली को सुव्यवस्थित करना। जीते गए क्षेत्रों में इसने स्थानीय सामन्तो और जागीरदारों को हटाकर अपने तुर्की इक़्तेदार नियुक्त किये, साथ ही दोआब क्षेत्र के कृषि-उत्पादकता के महत्व को देखते हुए इन क्षेत्रों में 2000 कुशल तुर्क-सैनिकों की नियुक्ति की गई ताकि इसके आर्थिक क्षमता का अधिक से अधिक लाभ लिया जा सके। पहली बार सल्तनत में एक केंद्रीकृत सैन्य संगठन को तैयार किया गया, दल "चालीसा" इसी के समय बनी। मुद्रा के अंतर्गत एक मानक के चांदी का टंका और ताम्बे का जीतल चलाया गया जो विशेष टकसालों से निकलते थे, इन सिक्कों पर टकसालों का नाम भी दर्ज रहता था। बगदाद के खलीफा से सनद प्राप्त कर इसने दिल्ली सल्तनत को एक आधिकारिक इस्लामी राज्य के रूप में स्थापित किया(दिल्ली सल्तनत क्या असल में एक इस्लामी राज्य था? इसपे अलग से लिखूँगा)।

क्रमशः
#सल्तनत_और_मुगल

Written by Dr. Ankit Jaiswal

1 comment:

  1. ताज उद्दीन यालदौज और नसीर उद्दीन कुबाचा, सर पूरा नाम लिखिए

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