भ्रष्टाचारी किस ग्रह से आते हैं ?
भ्रष्टाचारी किस ग्रह से आते हैं ?
आजकल देश में सबसे ज्यादा चर्चित विषय है -- भ्रष्टाचार और कुछ फैशन हो गया है कि जिसने भ्रष्टाचार पे न बोला, मानो उसका जीवन ही बेकार है। मेरा जीवन व्यर्थ न माना जाए इसलिए सोचा कि मैं भी इसकी चर्चा लगे हाथ कर ही लूं।
किसी
वक़्त में सिर्फ
चीज़ें ही ब्रांड
हुआ करती थी
लेकिन मार्केटिंग क्रांति
के इस दौर
में राहुल गांधी,
नरेंद्र मोदी जैसे
व्यक्ति ब्रांड हो गए
और भ्रष्टाचार या
विकास जैसी न्यूटर
जेंडर वाली चीज़ें
भी ब्रांड का
रूप धारण कर
चुकी हैं। विकास
नामी ब्रांड पर
तो खैर मोदी
की मोनोपली है
और अब शायद
बीजेपी इसे पेटेंट
भी करा ले
लेकिन भ्रष्टाचार के
ब्रांड को चर्चा
के लिए उन्होंने
भी चौपाल चौराहों
पे बिठा रखा
है।
देखा
जाए तो हालिया
दिनों में इस
रॉक सॉलिड ब्रांड
के दो नायक
उभर कर सामने
आये हैं -- अरविन्द
केजरीवाल और अन्ना
हज़ारे ! अब
मोदी जी को
तो छोड़िये, वो
कहते हैं कांग्रेस
में भ्रष्टाचार है
तो उनकी टीम
में भी येदुरप्पा,
कटारिया, बंगारू,गडकरी जैसे लोग
हैं। राजनीतिक पार्टियों
के आरोप प्रत्यारोप
अपनी जगह हैं
लेकिन सच तो
ये है कि
भ्रष्टाचार ने किसी
भी पार्टी को
अपने स्नेह और
वात्सल्य से वंचित
नहीं रखा और
कमोबेश सभी के
साथ उनके विकास
में बराबर कि
भागीदारी निभायी है अतएव
हम इस पार्टियों
को 'आप' की
झाड़ू से बुहार
कर किनारे करते
हैं और इस
रॉक सॉलिड ब्रांड
के अपने दोनों
नायकों अन्ना हज़ारे और
अरविन्द केजरीवाल पर वापस
लौटते हैं। अब
चूँकि इस ब्रांड
पर आवाज़ उठाने,
आंदोलन करने, धरना देने,
सरकार तक क़ुर्बान
कर देने जैसी
मोनोपली इन्हीं के पास
है तो सवाल
भी इन्ही से
करने की इच्छा
है कि आखिर
भ्रष्टाचार के जनक
कहाँ है ? भ्रष्टाचारी
किस ग्रह से आते हैं ?
क्या
कांग्रेस ने कहीं
कोई प्लांट लगा
रखा है जहाँ
इसके ब्रांड एम्बेस्डर
मैनुफैक्चर किये जाते
हैं या बीजेपी
की कोई ऐसी
फैक्ट्री है जहाँ
भ्रष्टाचारियों का उत्पादन
होता है या
सपा, बसपा, बीजेडी,
जदयू, वाम पार्टी,
तृणमूल,डीएमके,एआईडीएमके, वगैरह
ने कोई नर्सरी
डाल राखी है
जहाँ खाद पानी
देकर भ्रष्टाचारियों को
अंकुरित करके पौधों
की तरह पनपने
का मौका दिया
जाता है?
छः
सात साल पूर्व
का एक प्रसंग
याद आता है
जब मेरे छोटे
भाई ने अपना
पासपोर्ट बनवाया था। उसकी
इन्क्वायरी L.I.U. आयी थी
जैसा की नियम
है। तो L.I.U.
का जाँच अधिकारी
घर आया था
और भरपूर नाश्ता
ठूसने के बाद
पूरी दीदादिलेरी से
बताया था कि
साहब, अपना तो
पंद्रह सौ का
खुला रेट है,
बताते वक़्त उसमे
और सड़क पर
खड़ी वेश्या में
कोई फर्क न
लगा। वह इस
रॉक सॉलिड ब्रांड
का एक नमूना
भर था। सच
तो ये है
कि पब्लिक डीलिंग
से जुड़े जितने
भी सरकारी उपक्रम,
विभाग, कार्यालय हैं उनमे
इस ब्रांड एम्बेस्डरों
की पूरी फ़ौज
मौजूद है और
साथ ही दलाल
के सम्बोधन वाले
लाखों लोग भी
इसी व्यवस्था का
हिस्सा हैं जो
इस ब्रांड को
पनपने, फलने फूलने,
और इसके प्रचार
प्रसार में अहम्
योगदान देते हैं।
क्या यह दोनों
प्रजाति के लोग
कांग्रेस या बीजेपी
या किसी और
दल द्वारा निर्मित
किये जाते हैं
?
जवाब
'नहीं' है और
सही जवाब तो
ये है कि
यह सरे लोग
जो करप्शन की
गंगा में डुबकी
ही नहीं लगते
बल्कि सीधे जलसमाधि
ग्रहण किये रहते
हैं वह हमारे
बीच से आते
हैं -- हमारे अपने समाज
से आते हैं।
पॉजिटिव
रिपोर्ट भेजने के लिए
L.I.U. का अधिकारी
जब अपना खुला
रेट बताता है
तो मेरा भाई
स्वेच्छा से दे
देता है और
यूँ हाथ आये मुफ्त
के माल से
शायद वह अपने
बच्चों के लिए
कोई गिफ्ट, खाने
पीने का सामान
वगैरह ले गया
होगा जिसके बारे
में उसके परिवार
को भी पता
होगा कि वह
किन पैसों से
खरीदे गए। लेने
और देने कि
प्रक्रिया को दोनों
ओर किसी विरोध
का सामना नहीं
करना पड़ा और
दोनों ओर के
परिवारों के लिए
रिश्वत एक वर्जना
न बन कर
एक सहज स्वीकार्य
पद्धति बन गई।
लेने
और देने वाले
-- दोनों किस्म के परिवारों
में नए विकसित
होती मानसिकता वाले
बच्चे अपने दैनिक
जीवन में इस
स्वीकार्य पद्धति को देखते
बड़े होते हैं
और फिर इसी
को अपने आचरण
में समाहित कर
लेते हैं , यही
बच्चे बड़े होते
हैं तो कुछ
राजनीति में आते
हैं, कुछ सरकारी
नौकरियों में तो
कुछ दलाल बन
जाते हैं और
जब वह इस
पद्धति को सहर्ष
स्वीकारे हुए लोग
हैं तो भ्रष्टाचार
उनके लिए वर्जना
क्यों होने लगी
?
इस
ब्रांड के प्रचार
प्रसार में हम
खुद अग्रणी भूमिका
निभाते हैं जब
हम हाथ में
पैसे लिए इस
कोशिश में लगते
हैं कि कैसे
हमारी मनचाही तारिख
पर ट्रेन में
आरक्षण मिल जाये,
अस्पताल में हमारा
मरीज़ पहले देखा
जाये, हमारे मरीज़
को ज्यादा सुविधा
मिले, बिना किसी
अड़चन झमेले के
हमारे आय, जाति,
निवास प्रमाणपत्र जैसे
कागज़ जल्दी से
बन जाएँ,हमे
बिना परेशानी लोन
मिल जाये, सपाई
लैपटॉप, भत्ता, कन्या विद्याधन
जैसी सुविधाये मिल
जाएँ। गौर करेंगे
तो पाएंगे कि
सैकड़ों ऐसे काम
हैं जो आप
अपनी मर्ज़ी और
सुविधा के हिसाब
से करने के
लिए खुद रिश्वत
देने को व्याकुल
रहते हैं।
और
जो लेते हैं
-- या जो बिचौलिए
आपको एक अदद
रिश्वतखोर अधिकारी या मंत्री
तक पहुंचाते हैं,
वो दोनों किस्म
के लोग मंगल
ग्रह के एलियन
नहीं होते बल्कि
इसी समाज के
प्राणी होते हैं।
थोडा मेहनत करेंगे
तो आपको अपने
घरों में, रिश्तेदारों
में, अपने दोस्तों
में ही इस
पद्धति के ब्रांड
एम्बेस्डर मिल जायेंगे।
मज़े
की बात यह
है कि कहीं
न कहीं हम
सब इस खेल
में शामिल हैं
लेकिन विडंबना देखिये
कि जब कोई
अन्ना या केजरीवाल
भ्रष्टाचार के खिलाफ
आवाज़ उठाता है
तो हम टोपियां
लगा कर, जगह
जगह पैदल और
गाड़ियों से जुलूस
निकाल कर नारे
लगाते ऐसी हाय
तौबा मचाते हैं
जैसे हम, हमारे
घरवाले, हमारे रिश्तेदार सब
पाकसाफ हैं और
इस ब्रांड कि
मोनोपली तो सिर्फ
राजनीतिक पार्टियों ने ले
रखी है।
धन्य
है प्रभु !
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