हाय .....यह टैक्सी/ऑटो वाले
हाय .....यह टैक्सी/ऑटो वाले
लखनऊ की सड़कों पर सवारियों और ऑटो-टैक्सी वालों की चिकचिक कोई नई बात नहीं, रोज़ ही और लगभग यत्र-वत्र सर्वत्र ही यह नज़ारा आम उपलब्ध रहता है।
यह
नज़ारे देख कर मन अनायास ही देश के पेट्रोलियम मंत्री की तरफ चला जाता है। समझ नहीं
पाता कि उन्हें बेवक़ूफ़ कहूं, अदूरदर्शी या फिर अपनी ही सरकार का दुश्मन। सामने चुनाव
देख कोई भी सरकार इस तरह के बचकाने कदम नहीं उठती जैसा CNG के मामले में वर्तमान सरकार
ने उठाया। पहले एकाएक उसकी कीमत बढ़ाई जाती है और कुछ ही दिन की रस्साकशी के बाद बढ़े
दाम वापस घटा दिए जाते हैं। इस से जो थोड़ा मुनाफा मिला भी होगा तो वो बाद में सरकार
की छवि को लगे आघात की भरपाई नहीं कर सकता।
गौर
कीजिये कि लगभग सभी बड़े शहरों को डीज़ल-पेट्रोल जनित वायु-प्रदूषण से मुक्त करने के
लिए CNG का प्रयोग शुरू किया गया और इसके उपयोग को प्रोत्साहित करने के तमाम उपाय भी
अपनाये गए। यहाँ तक कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट
में तो इसे अनिवार्य ही कर दिया गया। नतीजे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के तौर पर प्रयोग
होने वाले ऑटो, टैम्पो, टैक्सी, सिटी बस, मारुती वैन, मैजिक और स्कूल बसें तक सभी इस
ईन्धन पर निर्भर हो गए। अब ऐसे में CNG के दाम बढ़ाने का मतलब पब्लिक ट्रांसपोर्ट के
पूरे ढांचे का चरमरा जाना ही होता है। कोई भी वाहन मालिक अपनी जेब से तो यह बढ़े हुए
पैसे देने से रहा -- ज़ाहिर है कि वह सवारियों से ही वसूल करेंगे और महंगाई से त्रस्त
जनता को और जेब ढीली करनी पड़ेगी।
समस्या
पेट्रोलियम मंत्रालय की इस कवायद के कारण दूसरे तरीके से पैदा हो गयी है। जब CNG के
दाम बढ़ने के बाद वाहन मालिकों ने किराया बढ़ाया तो सवारियों ने भी मन मसोस कर इस बढ़े
हुए किराये को एडजस्ट कर लिया और थोड़े दिन की किचकिच के बाद गाड़ी जैसे तैसे पटरी पर
आ ही पायी थी कि सरकार ने CNG के दाम वापस घटा दिए। लखनऊ क्षेत्र में CNG के दामों
में 15 रूपये की वृद्धि हुई थी और वापस जब दाम घटे तो 18 रूपये की कमी की गयी, यानि
दाम पहले से भी 3 रूपये ज्यादा कम हुए लेकिन जो बेचारे, और खुद को दयनीय प्रदर्शित
करने वाले यूनियन बाज़ टैक्सी- टेम्पो वाले CNG के दाम बढ़ते ही प्रति सवारी चार से पांच
रूपये ज्यादा लेने में एक पल भी नहीं हिचके थे वह CNG के दाम घटने के बाद
भी किराया कम करने को राज़ी नहीं। कहीं कहीं कुछ शरीफ लोग जो इस धंधे में हैं उन्होंने
अपनी यूनियन के दिशा-निर्देशों और सरकारी आदेश का मान रखते हुए दो रूपये कम
कर दिए हैं लेकिन उनके बीच उन दबंगों की संख्या कई गुना ज्यादा है जो सीना ठोंक के
कहते हैं कि दाम बढ़ गए तो बढ़ गए -- सवारी बैठे न बैठे, पैसे कम नहीं लेंगे और राह चलते
इन्ही दबंगों से होती नोकझोक आपको अक्सर दिखायी देगी। अगर किसी सवारी
ने ज्यादा हिम्मत दिखायी तो यह उसके साथ मारपीट करने से भी बाज़ नहीं आते।
हकीकत
में यह ऑटो-टैक्सी वाले टीवी अख़बार में खुद को दयनीय, पीड़ित, और कितना भी अच्छा बताएं लेकिन जब आपका पाला इनसे पड़ेगा तो आपको एहसास
होगा कि आप दबंगों की किसी संगठित सेना से सामना कर रहे हैं। कुछ शरीफ लोग तो हर जगह
होते हैं लेकिन वे अपवाद होते हैं। बाकी CNG के दाम बढ़े थे तो बढ़ा किराया देने में तकलीफ नहीं थी पर
CNG के दाम और भी ज्यादा कम हो जाने के बावजूद जब किराया बढ़ा के देना पड़े तो सवारी
के मन से इस सरकारी अदूरदर्शिता पर कांग्रेस
और मोइली के लिए बद्दुआओं के सिवा और कुछ नहीं निकलता। यह जानते हुए कि हर बड़े शहर
का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम CNG पर निर्भर है, इस तरह दामों से छेड़छाड़ ठीक नहीं और
इससे उपजी दिक्कत लोगों को निजी वाहनों की ओर आकर्षित करेगी और डीज़ल-पेट्रोल जनित वायु-प्रदूषण
फिर पहले जैसा होते देर नहीं लगेगी।
Ashfaq Ahmad
Ashfaq Ahmad
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