कांग्रेस, बुखारी और मुसलमान
कांग्रेस, बुखारी और मुसलमान
सोनिया गांधी के बुखारी से मिलने और समर्थन मांगने पर भाजपा की भृकुटियां तन गयीं और बुखारी के कांग्रेस को समर्थन करने वाले बयान ने तो जैसे साम्प्रदायिकता की हद ही कर दी और सारे भाजपाई और शिवसेना नेता जो बोल सकते थे -- बयानबहादुरों की तरह टीवी पर बोलने में पीछे न रहे।
उन्हें
अब तो शायद
यह याद भी
न रहा हो
कि २००४ में
यही बुखारी भाजपा
के इंडिया शाइनिंग
के समर्थन में
थे और बाकायदा
कई मुल्लाओं की
टीम ने 'आल
इंडिया क़ौमी इत्तेहाद
कमेटी' के
नाम से एक
मुहिम चलायी थी
जब इस बैनर
के अंतर्गत अटल
बिहारी बाजपेयी से आशिर्वाद
लेकर कुछ मुल्लाओं
से भरी एक
बस दिल्ली से
रवाना की गयी
थी जो देश के
कई मुस्लिम बहुल
इलाकों में जा
जाकर मुसलमानों को
यह बताती घूमी
थी कि मुस्लमान
पिछली बातों को
भूल जाएँ और
अब उनका भविष्य
एन. डी. ए
के साथ ही
सुरक्षित है।
और
साम्प्रदायिकता तब भी
नहीं है जब
आर. एस. एस.,
बजरंग दल, विश्व
हिन्दू परिषद्, जैसे घोर
हिंदूवादी संगठन तन मन
धन से भाजपा
के समर्थन में
जुटें और टोलियां
बना कर 'हिन्दू
चेतना, हिन्दू अस्मिता, हिन्दू
स्वाभिमान,' के नाम
पर लोगों को
उकसाते फिरें -- साम्प्रदायिकता तो
तब होती है
जब कोई नेता
या पार्टी मुसलमानों
से समर्थन मांग
ले। जबकि आप
हर चुनाव में
देखते होंगे कि
नेता या पार्टी
अलग अलग धर्मों,
सम्प्रदायों और जातियों
से, उनके नाम
पर बनी समितियों-
संस्थाओं से समर्थन
मांगते भी हैं
और लोग खुल
कर, पूरे रस्म
रिवाज से टीवी
अख़बार के सामने
पूरा प्रोपेगंडा करके
देते भी हैं
लेकिन उसमे कोई
सामाजिक बटवारा नहीं झलकता
-- हाँ ऐसा कोई
समर्थन मुसलमानों से माँगा
या दिया जाये
तो साम्प्रदायिकता हो
जाती है -- समाज
के बटने का खतरा पैदा
हो जाता है।
अब
आते हैं बुखारी
पर -- मुझे यह
बात बड़ी हास्यास्पद
लगती है कि
मुसलमानों के अतिरिक्त
बाकी पूरे देश
को यह क्यों
लगने लगता है
कि बुखारी का
आदेश या गुज़ारिश
पूरी क़ौम को
मान्य होगी जबकि
शायद यह भी
सबको पता हो
कि २००४ में
वह भाजपा को
मुसलमानों का वोट
न दिल पाये,
२०१२ में प्रचंड
सपाई लहर के
बावजूद अपने दामाद
को सपा से
न जीता पाये,
अपने इलाके में
शोएब कमाल का
विरोध करने के
बावजूद उन्हें जीतने से
न रोक पाये
-- मुझे तो इसमें
भी संदेह है
कि वह खुद
किसी मुस्लिम इलाके
से सभासद या
पार्षद का चुनाव
भी जीत पाएंगे।
फिर क्यों उनकी
बातों को लोग
इतना तूल देने
में लग जाते
हैं ? मैं स्वयं
भी मुस्लमान हूँ
और एक मुस्लिम
बहुल इलाके में
रहता हूँ और
मैंने तो कभी
नहीं देखा कि
कोई बुखारी की
बात पर कभी
कान भी देता
हो -- उलटे हर
राजनीतिक बयानबाजी के बाद
मैंने बुखारी को
मुसलमानों की गलियां
खाते कई बार
देखा है -- इस
बार भी।
हाँ,
मोदी की वजह
से उनका भाजपा
विरोध समझ में
आता है लेकिन
अगर प्राथमिकता या
मुख्य तत्व भाजपा
विरोध ही था
तो उन्हें यह
कहना चाहिए था
कि मुसलमान अपने
वोट बटने न
दें और हर
उस प्रत्याशी के
पीछे एकजुट हो
जाएँ जो भाजपा
कैंडिडेट को हराने
की क्षमता रखता
हो -- बजाय
इसके कि "मैं
कांग्रेस की हिमायत
का एलान करता
हूँ। "
सम्भावना
के लिए मान
लेते हैं कि
मुस्लमान यू. पी.
में उनकी बात
मान लेते हैं
तो इसका असर
क्या पड़ेगा ? यहाँ
कि ८० में
से पचास सीटें
ऐसी हैं जहाँ
कांग्रेस तीसरे या चौथे
नंबर पर है,
तो उन्हें वोट
देने से क्या
मुसलमानों का वोट
ख़राब नहीं होगा
? क्या ऐसे भाजपा
और मज़बूत नहीं
होगी ?
एक
बात और -- बुखारी
के एलान के
बाद एक उनके
भाई अचानक राजनीतिक
परिदृश्य में नज़र
आये जो बता
रहे थे कि
कांग्रेस ने मुसलमानों
के साथ क्या
क्या किया और
टीवी अख़बार वाले
उन्हें कैच करने
भी पहुँच गए।
मेरी
समझ में नहीं
आता कि बुखारी
आखिर हैं क्या
-- एक शाही मस्जिद
के इमाम, पर
इमामत न कोई
डायनेस्टी है, न
कोई संवैधानिक संस्था और
न ही कोई
राजनीतिक पार्टी, बस एक
व्यक्ति का पद
भर है, इससे
ज्यादा कुछ नहीं
और जो इस
पद पर आसीन
है, वो तो
बोलने का अधिकार
रखता भी है
-- भले हम उसके
बोलों का समर्थन
करें या विरोध
लेकिन इसका मतलब
यह कतई नहीं
होता कि उसके
घर के कुत्ते
बिल्ली भी पूरी
क़ौम के बिहाफ
में राजनीतिक बयान
बाज़ी करें। मैं
पूछता हूँ के
बुखारी के भाई
(मैं उनका नाम
लेना भी ज़रूरी
नहीं समझता ) आखिर
होते कौन हैं
मुसलमानों के लिए
कुछ भी बोलने
वाले ? उन्हें यह हक़
किसने दिया और
टीवी अख़बार वाले
उन्हें तवज्जो दे भी
क्यों रहे हैं
?
एक
सच्ची बात जो
मैं खुद मुसलमान
होने के नाते
जानता हूँ और
कह भी सकता
हूँ कोई भी
बुखारी जैसा इमाम
या मदनी जैसा
मौलाना हमारे लिहाज से
एक आम मौलाना
से ज्यादा कोई
हैसियत नहीं रखता
जिसकी अपनी कुछ
निजी समर्थकों की
भीड़ हो सकती
है पर इससे
ज्यादा हमारे लिए वह
कुछ नहीं होता
और न ही
उसकी कोई भी
राजनीतिक बयानबाज़ी हमारे लिए
कोई मायने रखती
है। जो लोग
ऐसा सोचते हैं
कि देश का
मुसलमान बुखारियों मदनियों के
कहने से चल
पड़ेगा -- वे सिर्फ
भ्रम में जी
रहे हैं।
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