एक महान आचार्य

एक महान आचार्य




आचार्य विनोबा भावे क्यों इतने विशेष थे 


क्या आप आचार्य विनोबा भावे के बारे में जानते हैं, ज़रूर जानते होंगे क्योंकि जिसने स्कूल की सीमाओं में प्रवेश किया है उसने इनके बारे में ज़रूर पढ़ा होगा, लेकिन उनकी ज़िन्दगी के कुछ ऐसे अनछुए पहलू भी हैं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है, चलिये उन्ही पहलुओं की बात करते हैं।


मैं अब तक विनोबा भावे को एक ऐसे संत के रूप में जानता था जिसने आजादी की लड़ाई में गांधी जी के साथ बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में एक गांव है, गागोदा. यहां के चितपावन ब्राह्मण थे, नरहरि भावे. गणित के प्रेमी और वैज्ञानिक सूझबूझ वाले. रसायन विज्ञान में उनकी रुचि थी।

उनकी ग्रंथ संपत्ती – 1) ‘ॠग्वेद्सार’ 2) ‘ईशावास्य वृत्ती’ 3) ‘वेदान्तसुधा’ 4) ‘गुरुबोधसार’ 5) ‘भागवतधर्मप्रसार’ के रूप में हमारे बीच सुरक्षित है ... भारत सरकारने 1983 को उन्हें मरणोत्तर ‘भारतरत्न’ ये सर्वोच्च खिताब देकर उनके कार्यो का और योगदान का सम्मान किया... उन्होंने जवानी से लेकर बुढ़ापे तक अपनी जिंदगी देश सेवा में लगा दी और कभी कोई पद स्वीकार नहीं किया, जिसने गोकशी रोकने के लिये भूख हड़ताल करते अपनी जान तक दे दी।
उनके बारे में आपको बहुत कुछ विकिपीडिया पर मिल जायेगा लेकिन जो नहीं मिलेगा उसके बारे में यहाँ लिखा जा रहा है... पहली बार उन्होंन 1916 में गांधी जी का दामन थामा और फिर गांधी जी के कहने पर वह महाराष्ट्र के वर्धा जिले में कायम किये गये आश्रम की देखभाल में लग गये। इसी आश्रम में विनोबा भावे जी ने स्थानीय बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। 

उन बच्चों में एक मुस्लिम बच्चा भी था जो उनसे शिक्षा लेने के लिये आश्रम आता था, एक दिन उसी बच्चे ने अपने उस्ताद से सवाल किया-- "गुरु जी, क्या आप मुझे कुरान शरीफ भी पढ़ा सकते हैं?" आचार्य बच्चे के इस अनपेक्षित सवाल पर अवाक रह गये किंतु उन्होंने यह नहीं कहा कि वह कुरान नहीं पढ़ा सकते, बल्कि उन्होंने बच्चे को भरोसा दिलाया कि वह उसे कुरान जरूर पढ़ायेंगे, लेकिन थोड़े वक्त बाद।

अपने मुस्लिम शिष्य से वादा करने के बाद आचार्य पर एक ही धुन सवार हो गई कि कुरान पढ़ना कैसे सीखा जाये। वह कुरान का अंग्रेजी अनुवाद पहले पढ़ चुके थे, लेकिन अरबी से अन्जान होने की वजह से कुरान पढ़ने में असमर्थ थे, इसके लिए उन्होंने वर्धा के एक स्थानीय क़ारी से बाकायदा अरबी सीख कर कुरान पढ़नी शुरू की।
वह चाहते थे कि वह कुरान की तिलावत में पूरी तरह महारत हासिल कर लें, इसलिए उन्होंने हर दिन आल इंडिया रेडियो पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम तिलावत कुरान मजीद को बगौर सुन्ना शुरू किया और इस तरह उन्होंने अपने तलफ्फुज़ को दुरुस्त किया और पूरी तरह अरबी लहजा अख्तियार करने की पूरी कोशिश की। 

इस अनथक मेहनत और कोशिश की वजह से विनोबा जी को एसी महारत हासिल हो गई कि जब वह तिलावत करते तो सुनने वाले आश्चर्यचकित रह जाते। विनोबा भावे जी के सहयोगी अच्युत भाई देशपांडे लिखते हैं कि जब आचार्य कुरान की तिलावत करते थे तो उनकी आँखों से आँसू जारी हो जाते थे। 

उनकी तिलावत से सुनने वालों पर एक अलग ही असर होता था। उन्होंने लिखा है कि जब मौलाना अबुलकलाम आजाद वर्धा के आश्रम में गांधी जी से मिलने आये तो वहीं गांधी जी ने विनोबा जी से दरख्वास्त की, कि वह मौलाना के सामने तिलावत करें। जब विनोबा भावे जी ने तिलावत शुरू की तो मौलाना हैरान रह गए... उन्हें यकीन नहीं हुआ कि गांव के किसी कारी से सीख कर कोई कुरान की इतनी बेहतरीन तिलावत भी कर सकता है। 

बाद में उन्हें बताया गया कि तिलावत में इतनी महारत हासिल करने के लिए विनोबा भावे जी ने कितनी मेहनत की है। देशपांडे जी ने लिखा है कि सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खाँ अक्सर वर्धा के आश्रम में आया करते थे और आचार्य से कुरान शरीफ के बारे में गुफ्तगू किया करते थे।

इसी गुफ्तगू में विनोबा भावे ने गफ्फार खाँ से कहा था कि उनको मक्की आयात की तिलावत करते वक्त बेहद सुकून मिलता है और उनको बहुत पसंद है कि वह उन आयात की तिलावत करें जो मक्के में नाज़िल हुईं थीं। इस पर गफ्फार खाँ ने कहा कि उनको भी मक्की आयात की तिलावत में एक खास सुकून मिलता है। 

विनोबा भावे ने कुरान पाक को समझने के लिए अरबी जबान को भी अच्छी तरह समझा और कुरान करीम के मुख्तलिफ भाषाओं में मौजूद तरजुमों का अध्ययन किया, लेकिन देश की आजादी की लड़ाई की जद्दोजहद में लगातार जेल जाने और भूदान की तहरीक को आगे बढ़ाने के सिलसिले में विभिन्न शहरों के दौरे करने के बावजूद भी आचार्य कुरान के अध्ययन में लगे रहे और देश के कई हिस्सों में कुरान की शिक्षा पर शानदार लेक्चर देने की वजह से बहुत मकबूल भी हुए। 

भूदान की मुहिम आगे बढ़ाते हुए भूदान सम्मेलन में शामिल होने के लिये वह अजमेर गये तो वहां उन्होंने कुरान के आफाकी पैगाम पर जबर्दस्त तकरीर करके सबको हैरान कर दिया। अजमेर के रूहानी माहौल ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और उन्होंने अपनी सारी व्यस्तताओं को ताक पर रखकर कुरान मजीद का हिंदी तर्जुमा करने का फैसला किया। 

इससे पहले वह सूरे फातिहा और सूरे इखलास का मराठी में तर्जुमा कर चुके थे। विनोबा भावे जी चाहते थे कि वह कुरान की आयात का आनुवाद तो करें लेकिन उनको एक नये अंदाज में सजा कर रखें।
इसी ख्याल के तहत उन्होंने "कुरान सार" और "रूह-अल कुरान" के हिंदी और उर्दू में कुरान की आयात का आनुवाद करके एक विषय से संबंधित आयात को एक जगह कर दिया... इन किताबों में विनोबा भावे जी ने कुरान की सिर्फ 1065 आयात का तर्जुमा पेश किया है लेकिन तरतीब का अंदाज बेहद अलग है। 

उन्होंने एक ही मौज़ू की आयात जो अलग अलग सूरतों में नाज़िल हुईं थीं, उनको एक ही जगह पर कर दिया है। अगर आपको शिर्क से संबंधित अल्लाह के अहकामात देखना है तो वह आपको एक ही जगह मिल जाएंगे। तौहीद के मुताल्लिक आयात की तलाश है तो रूह-अल कुरान में सब एक ही जगह मिल जाएंगी। औरतों के बारे में हुक्म -ए-इलाही क्या है, इससे संबंधित आयात एक जगह मौजूद हैं... जिहाद क्या है और कहां कहां जिहाद वाजिब है, इससे संबंधित आयात आपको एक जगह पर मिल जायेंगी। 

जाहिर है कि इतनी मेहनत और तहकीक का काम करने के लिये उन्हें एक दो मददगारों की भी जरूरत थी, तो उन्होंने अपने खास साथी अच्युत भाई देशपांडे को निर्देश दिया कि वह भी कुरान पढ़ना सीखें। उन्होंने बड़ी मेहनत और लगन से कुरान पढ़ना सीखा और उनके साथ निर्मला ताई देशपांडे ने भी कुरान पढ़ना सीखा और उन लोगों ने कुरान के तर्जुमे की प्रिंटिंग वगैरह में विनोबा भावे जी की मदद की।

• रूह-अल कुरान और कुरान सार की प्रिंटिंग के बारे में देशपांडे ने एक दिलचस्प वाकया लिखा है कि मैं एक पेटी में कुरान सार का मसौदा लेकर ट्रेन से बनारस जा रहा था। ट्रेन में जबर्दस्त भीड़ थी जिसकी वजह से पेटी हाथ से गिर गई और ट्रेन को जंजीर खींच कर रोकना पड़ा, लेकिन तब तक ट्रेन का पहिया पेटी पर से गुजर चुका था। पेटी पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थी लेकिन जब उसे खोल कर देखा तो पहिया सिर्फ वहीं पर चला था जहां हरूफ नहीं थे। 

अफसोस की बात यह है कि विनोबा भावे के इस कारनामे से मुसलमानों की नई पीढ़ी बिल्कुल अनजान है जबकि इस तरह के लोगों की हालाते जिंदगी और कारनामों को मंजरे आम पर लाकर आज के सांप्रदायिकता और असहिष्णुता भरे माहौल से ज्यादा बेहतर ढंग से लड़ा जा सकता है।

With gratitude: Shakeel Shamsi

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