धर्म यात्रा फाईनल


धार्मिक विद्वान हर बात का अर्थ अपने हिसाब से ही निकालते हैं


  आपने 'जुदाई' फिल्म देखी है— जहां उपासना सिंह की 'अब्बा डब्बा जब्बा' का अर्थ जानी लीवरपने अंदाज में प्रेम स्वीकृति के तौर पर निकालते हैं... आजकल इसी टाईप के धार्मिक विद्वान भी पाये जाते हैं जो सिंबोलिक भाषा में कहे गये श्लोक या आयत का अर्थ इसी अंदाज में कुछ का कुछ निकालते हैं।

  ज्यादातर धार्मिक विद्वान जानी लीवर ही हैं 'अब्बा डब्बा जब्बा' का अर्थ अपने हिसाब से बताने वाले.. मान लीजिये सौ बातें कही गयी होंगी, तो अस्सी अगर गलत साबित हो गयी तो उन्हें मिट्टी डाल कर दबा देंगे लेकिन जो बीस सही साबित हो गयीं (तुक्के के रूप में) तो उनका ढोल नगाड़े बजा कर प्रचार प्रसार करेंगे।

  अच्छा एक विडंबना यह भी देखिये कि आज की तारीख में मुसलमान यहूदियों को सबसे खतरनाक कौम मानते हैं कि यह लोग जो न कर जायें कम हैं— उनके किसी भी लिखे पढ़े को सिरे से खारिज कर देंगे, लेकिन अतीत में इन्हीं यहूदियों के धर्म के नाम पे रची गढ़ी गयी लनतरानियों को खुले दिल से अपना लिया— क्योंकि वहां अपना स्वार्थ था। 
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Jews Literature

  यह आदम हव्वा, इब्राहीम, लूत, मूसा, दाऊद, सुलेमान, जबूर, तौरात जैसा सारा साहित्य उन्हीं का रचा गढ़ा था... वर्ना यह सब लोग अपने दौर में कबीला प्रमुख, और आगे के दौर में राजा थे, जो अक्सर खुद को ईश्वर का अवतार या संदेशवाहक साबित करने के लिये कहानियाँ गढ़वा कर जन जन में प्रचारित करवाते थे, ताकि उनकी सत्ता को चुनौती न मिल सके या दूसरे स्वार्थ सिद्ध हो सकें।


ज्यादातर धार्मिक साहित्य सिर्फ महिमामंडन के लिये होता है   

  भारत में भी मौर्य काल से ले कर शुंगकाल तक (धर्म से जुड़े) और खिलजी से लेकर औरंगजेब तक (निजी महिमामंडन और राजनीति से जुड़े) यही तमाशे दोहराये गये— वर्ना ईश्वर इतना पक्षपाती तो नहीं हो सकता कि भारत में अवतार भेजने के लिये एक भी अवर्ण जाति न चिन्हित करता या पश्चिम एशिया में सब बाप बेटे भाई ही पैगम्बर होते। मतलब इतनी बड़ी सभ्यताओं, आबादियों में उसे अब्राहम का घराना ही मिला था कि एक के बाद एक पैगम्बर उसी वंश में पैदा होते रहे। 

  आपको यह अजीब इत्तेफाक नहीं लगता? एसा नहीं लगता कि गांधी फैमिली की तरह पैगम्बरी भी कोई वंशवादी परंपरा की तरह चली आ रही हो कि बाप के बाद बेटा या भाई के साथ भाई ही पैगम्बर बनेगा— इब्राहीम से ले कर मुहम्मद तक लगभग सभी एक उसी वंशवादी बेल का हिस्सा हैं— आपको ईश्वर भी इंसान जैसी सीमित बुद्धि वाला लगता है?

  किसी एक ने शुरुआती दौर में एक फार्मेट सेट किया ईश्वरीय अवतार या ईशदूत का और अगले सब उसी दुम को पकड़ कर लटकते गये। चूँकि लिखा सब ईसा के आसपास गया और उससे पहले बस जनश्रुतियों में ही जिंदा रहा तो लिखते टाईम उस कंटेंट को यहूदियों ने अपने मुआफिक एडजस्ट करके लिख दिया और आगे यह सिलसिला चलता रहे, इसलिये अगले मसीह की भविष्यवाणी कर दी— जिसे पकड़ कर ईसा लटक गये।
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Oldest Testament

  यहां से ट्विस्ट यह आ गया कि अब सब लिखित इतिहास तैयार हो रहा था तो ईसा को कैसे मसीह की मान्यता दे देते— नतीजे में हाईवोल्टेज ड्रामा क्रियेट हुआ और बाद में जब ईसा के फॉलोवर्स ने अपनी बाइबिल (न्यू टेस्टामेंट) लिखी तो उसमें पुराना सब वेरिफाई कर दिया— क्यों? क्योंकि यह उनके खुद के वेरिफिकेशन के लिये जरूरी था— इसी से तो उनकी इब्राहीम वंश में पैगम्बरी साबित होनी थी। जबकि पीछे वाले (ओल्ड टेस्टामेंट) आज तक ईसा के मसीह होने से इनकार करते रहे हैं और हमेशा से उन्हें झूठा ठहराया।

  यही काम सातवीं शताब्दी में मुहम्मद साहब ने किया— खुद किया या उनके चाहने वालों ने किया, यह तो अतीत में दफन है— लेकिन जो साफ जाहिर है वह यह उन्होंने उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया। जिन यहूदियों से तब से आज तक मुसलमान नफरत करते आये हैं, उन्हीं के कंटेंट पर वेरिफाईड की मुहर लगा दी— क्यों? क्योंकि यह खुद की प्रमाणिकता के लिये जरूरी था। पर यहां भी वही पेंच हुआ कि पीछे वालों ने (ईसाइयों यहूदियों) ने उन्हें अपने कांसेप्ट की अगली कड़ी मानने से इनकार कर दिया और एक झूठा व्यक्ति ठहराया जिसने उनके कांसेप्ट और ईशदूतों को हर लिया।

इस उधार के साहित्य में मनमाफिक एडिटिंग की गयी

  इस लेने देने में काफी एडिटिंग भी की गयी वक्त जरूरत के हिसाब से— दो संक्षिप्त उदाहरण दे रहा हूं। यहूदियों ने साफ लिखा कि यहोवा ने इब्राहीम को सपने में बेटे की कुर्बानी का आदेश दिया तो वे इसहाक (उनके कांसेप्ट में सारा पुत्र इसहाक ही पुत्र था, जबकि इस्माईल लौंडी हाजरा पुत्र) को ले के बलि के सामान सहित चल पड़े और इसहाक के पूछने पर कि हम बलि किसकी देंगे— जवाब मिला कि जिसने आदेश दिया है वह इंतजाम करेगा और बलि स्थल पर पंहुच कर इसहाक को बांध कर डाल दिया... जबकि उसी कथा को अडॉप्ट करते हुए मुसलमानों ने एक तो इसहाक की जगह इस्माईल कर दिया— फिर यह जताया कि पूछने पर इब्राहीम ने सच बात बता दी थी और इस्माईल खुद से तैयार हो गये थे। आखिर इस्माईल को महान भी साबित करना था।
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Lut's Story

  इसी तरह एनल सैक्स के दीवाने, पैगम्बर लूत के नगरवासियों को पत्थरों की बारिश से धंसा दिया (जिस जगह अब डेड सी बताते हैं) क्योंकि गुदामैथुन ईश्वर की नजर में पाप था तो इतनी कहानी तो ले ली— लेकिन आगे की कहानी डिडक्ट कर दी... क्योंकि इस कहानी का बेस नैतिकता था और आगे की कहानी में नैतिकता की धज्जियां उड़ गयी थीं जहां पुरुष संसर्ग को तरसती उनकी दोनों बेटियों ने उन्हें शराब पिला कर उनसे सहवास किया और आगे उनकी संतानें पैदा की। यानि यह कहां सूट करता कि एक पैगम्बर शराब पी कर बेटियों के साथ संसर्ग कर रहा है तो उस हिस्से को हटा ही दिया।

  बहरहाल सदियों तक दोहराई जाने वाली कहानियाँ अपने आप सच मान ली जाती हैं और फिर उन्हें सच ठहराने के लिये दसियों तरह के सबूत गढ़ लिये जाते हैं और उन कहानियों वाले 'अब्बा डब्बा जब्बा' के अपनी सुविधानुसार ट्रांसलेशन तैयार कर लिये जाते हैं— अगर आप एकदम न्यूट्रल हो कर किसी भी धर्म का साहित्य पढ़ेंगे तो आपको पचासों जगह विरोधाभास और होल नजर आयेंगे, जिन्हें उस धर्म के इंजीनियर पैबन्द लगा-लगा कर आपको दिखाने की कोशिश करेंगे।

  आर्य और सेमिटिक दोनों एक ही धारा से निकले हैं लेकिन इस मामले में मैं आर्यों को डेढ़ सयाना कहूँगा कि उन्होंने ईश्वर को बड़े फिलॉस्फिकल वे में गढ़ा कि सदियों बाद भी वे हर तरह से उसे जस्टिफाई कर सकें, (वर्तमान आधुनिक हिंदू नहीं, वैदिक धर्म/आर्यसमाजी)— जबकि सेमिटिक वालों ने यहोवा के रूप में जो ईश्वर को गढ़ने की शुरुआत की, तो पहले ही कदम पे किसी महाशक्ति के बजाय कोई कार्टून बना के रख दिया। मुसलमानों ने अंतिम लाईन पर होने की वजह से उस छवि में सुधार तो किये लेकिन निराकार बताने के बाद भी आस्मान लपेटने वाले हाथ और सिंहासन बताने जैसी चूक कर गये, जिसे रफू करने के लिये इंजीनियरों को ‘अब्बा डब्बा जब्बा’ वाली पद्धति का सहारा लेना पड़ता है।

अवतारों को गुरु की नज़र से ज़रूर देख सकते हैं

  बाकी ईसा मुहम्मद को अगर समझना ही है तो उन्हें वैसे गुरू की नजर से देखना होगा जैसे सिख देखते हैं— अगर चमत्कार और दैवीय शक्तियों के मोहपाश में बंध कर उन्हें देखेंगे तो शायद कभी नहीं समझ पायेंगे। अपने वक्त के वे समाज सुधारक थे, बागी थे, क्रांतिकारी थे लेकिन बाद में लिखने वालों ने उनके महिमामंडन के लिये उनके साथ ढेरों ऐसी बातें जोड़ दीं जिससे उनकी क्रेडिब्लिटी ही संदिग्ध हो गयी— इसका दोष बाद में लिखने वालों पर है न कि उन पर। इसी तरह वे धार्मिक किताबें हैं जिन्हें पढ़ते वक्त आपको उनके मकसद पे ध्यान देना होगा न कि उनकी कहानियों पर।


  अगर आप इन महापुरुषों को गुरू की जगह रखेंगे तो आप यह समझ सकेंगे कि वे भी इंसान ही थे तो जाहिर है कि सौ खूबियों के साथ उनमें कुछ कमियां भी हो सकती हैं— या उनकी कमियों को पर फोकस करेंगे भी तो उनके परिस्थितिजन्य कारण भी समझ में आयेंगे। इसे कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं— दुनिया में अंधश्रद्धा का कोई तोड़ नहीं। हर कोई किसी अनदेखी ईश्वरीय शक्ति पर आंख बंद किये यकीन करने को तैयार बैठा है... ऐसे में आपके आसपास के लोगों की तरफ आपका ध्यान जाता है और आप पाते हैं कि वे जंगली हैं, असभ्य हैं, बर्बर हैं और हर नियम कायदे से दूर हैं— उनकी जिंदगी उनके तरीकों की वजह से ही अनिश्चित और असुरक्षित है और आप उनमें सुधार करना चाहते हैं।
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sprituality

  तो इतना तो आपको पता होगा कि ऐसे कोई आपकी बात नहीं सुनेगा, क्योंकि आप उन्हीं के समान उनके बीच के शख्स हैं— क्या अलग है आपमें जो वे आपकी बात सुनें? ऐसे में आप खुद के ईश्वरीय अवतार होने का दावा करके लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं— पीछे से चली आ रही कहानियों पर 'वेरीफाईड' की मुहर लगा कर अपनी प्रमाणिकता साबित कर सकते हैं। इससे आपको संघर्ष तो करना पड़ेगा लेकिन आपकी शख्सियत उनसे अलग हो जायेगी। यहां आपके दावे अहम नहीं, आपका मकसद अहम है जो किसी तरह की स्वार्थ सिद्धि पर नहीं टिका, बल्कि लोगों की भलाई पर टिका है। हालाँकि इसके लिये कलेजा चाहिये, क्योकि इस मकसद के लिये आपको अपने सपने, अपना भविष्य और अपने निजी जीवन से जुड़ी सब उम्मीदें कुर्बान करनी पड़ेंगी।

  और फिर उन बिगड़े लोगों को बाज रखने के लिये मान लीजिये आप उन्हें सपने दिखाते हैं कि आप जो यहां शराब पीते हैं, यह न पियें क्योंकि इससे न सिर्फ आपके बल्कि आपके परिवार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है— यहां कंट्रोल कीजिये, स्वर्ग में आपको नदियाँ मिलेंगी शराब की। या फिर यहां जो आप यह अय्याशियां करते हो, दूसरों के घरों की बहू बेटियों को खराब करते हो— यह मत करो, और यकीन करो कि अगर यहां अपनी नफ्स पर नियंत्रण रख के पाकीजगी से जीवन गुजार लिये तो मरने के बाद जन्नत में ढेरों हूरें मिलेंगी। हो सकता है यह दावें झूठ हों, क्योंकि किसी ने इन्हें देखा नहीं लेकिन इनसे होने वाले सुधार तो जमीन पर ही देखे जा सकते हैं।

  यह तो कालांतर में अगली पीढ़ियों का दोष रहा कि वे मकसद भुला बैठीं और दावे पकड़ कर बैठ गयीं और अपने स्वार्थ के लिये (जैसे आतंकी, जिहाद के लिये शहादत, बहत्तर हूर, जन्नत का लालच) उन्हीं चीजों का प्रचार प्रसार किया। सोचिये कि नमाज का मतलब वह सलात थी कि जहां इंसान कुछ पल के लिये मेडिटेशन के सहारे अपने आसपास ब्रह्म तत्व के रूप में मौजूद ईश्वर से जुड़ सके, लेकिन फर्जी तौर पर नमाजें तहाते लोग नमाजों में नियत बांधे खड़े लोगों को, मस्जिद के पंखों और चटाइयों को देखते दुनिया भर के हिसाब किताब जोड़ते रहते हैं.. यही हाल पूजा पाठ करते, मंदिरों में घंटे बजाते हिंदुओं का है जिनके पास ध्यान की कला होते हुए भी वे फर्जी पाखंडों में फंसे हुए हैं।

धार्मिक किताबों से भी सीख ली जा सकती है 

  ऐसे ही सब किताबें थी— जिनके मकसद अपने दौर में, अपने आसपास की परिस्थितियों के हिसाब से रास्ता दिखाना था, नियम संचालन तय करना था लेकिन वे कभी असरकारक न बन पाईं— क्यों? क्योंकि लोगों ने उनके मकसद को समझने के बजाय उन्हें रट्टा मारने की चीज बना लिया। जब सभी धर्म प्यार, अमन और भाईचारे का संदेश देते हैं तो आखिर दुनिया में इतनी अफरा तफरी क्यों है? जब सभी धार्मिक किताबें आपको श्रेष्ठ आचरण की शिक्षा देती हैं तो दुनिया में इनके मानने वाले बुराइयों से भरे क्यों हैं— नफरत से भरे क्यों हैं? इस हिसाब से देखेंगे तो धर्म तो इंसान को देवतातुल्य बनाने के लिये डिजाइन किये गये थे, फिर उनसे असुरी प्रवृत्तियों वाले शैतान कैसे निकल रहे हैं?
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Religions

  आखिर आज पूरी दुनिया में इतनी नफरत, इतनी हिंसा, इतनी मारकाट क्यों हैं— क्योंकि जिन धर्मों के सहारे सामाजिक व्यवस्था तय करने की उम्मीद की गयी थी— वे फेल हो गये। यां यूँ कहिये कि धर्म नहीं फेल हुए, उनके मकसद को समझने में लोग फेल हो गये और यही वजह है कि दिखावे के तौर पर लोग धार्मिक तो बने हुए हैं, दिन रात धर्म का पाखंड कर रहे हैं लेकिन फिर भी उनके जीवन में अशांति है, नफरत है, पिछड़ापन है और पश्चिम की वे आबादियां जो नास्तिक कही जाती हैं, उन्होंने धर्म के मूल को साध लिया और वे हमसे हर हाल में बेहतर जीवन जी रहे हैं।

  धर्म हर्गिज वह नहीं जो लाखों शब्दों से भरी बकैतियों के रूप में उसके ठेकेदार आपको समझाते हैं बल्कि वह है जो आपके स्वभाव में छुपा है, लेकिन जिसे आप जब तब दबाते रहते हैं क्योंकि वह आपके हित या स्वार्थ से टकराता रहता है.. और ईश्वर अगर है तो कहीं किसी जादूगर या जल्लाद की तरह आस्मान पर बैठ कर आपको देख नहीं रहा, बल्कि आपके आसपास है, आपमें है।
Written by Ashfaq Ahmad

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