प्रोग्राम्ड यूनिवर्स 5

www.ashfaqansari.in

हम अतीत को भौतिक रूप से नहीं जी सकते

  दूसरी कल्पना आप 'इंटरस्टेलर' से ले सकते हैंजहां नायक को टेसरेक्ट के माध्यम से अतीत में ले जाया जाता है जहां वह खुद को और अपनी बेटी के बचपन को देख तो सकता है लेकिन सामने दिखते दृश्य में वह कोई चेंज नहीं कर सकता, बस बाईनरी या मोर्स कोड से संदेश देने से ज्यादा और कोई दखल नहीं दे सकता।

  अगर हम अतीत में भौतिक रूप से जा सकते हैं या भौतिक दृश्य को देख कर उसमें दखलंदाजी करने की सामर्थ्य रखते हैं तो हम बहुत कुछ ऐसा कर डालेंगे, जिससे बार-बार वर्तमान ही चेंज होता रहेगा। जैसे अगर हम पास्ट में जा कर अपने दादा को खत्म कर दें, उनकी शादी से पहलेतो उनसे संबंधित सारे लोग जो बाद में वजूद में आये, ऑटोमेटिक खत्म होने चाहियेखुद हमारे समेत, लेकिन यहां सबसे बड़ी व्यवहारिक दिक्कत है फिर उनसे जुड़े लोगों का भविष्य क्या होगा। मतलब दादी का भविष्य, आपके पिता/चाचा/बुआ डिलीट समझिये लेकिन आपकी माता/चाची/फूफा का भविष्य?
https://ashfaqansari.in
Time Travel Concept

  या अतीत में जा कर आप किसी ऐसे शख्स को खत्म कर दें जिसका बहुत लंबा चौड़ा वंश वर्तमान में पनप चुका हो तो.. या सीधे स्टोन एज में जा कर शुरुआती मानवों को ही खत्म कर दें तो? फिर तो हर पल एक नया वर्तमान चेंज होगा।

  या मान लीजिये आप अतीत में एक मिनट भी पीछे जा सकते हैं तो अगर आप खुद को गोली मार देते हैं तो कौन मरेगाअगर मरने वाले खुद आप हैं तो आप तो एक मिनट पहले मर चुके हैं, फिर आपने खुद को गोली कैसे मारी? और अगर गोली मारने के बाद हत्यारे के तौर पर आप जिंदा हैं तो गोली आपने किसे मारी? इन्हीं बातों के आधार पर यह कल्पना सिरे से खारिज हो जाती है।

  इसीलिये जाती तौर पर मेरा मानना है कि हम समय में कभी यात्रा करने में सक्षम भी हुए, तो पास्ट या फ्युचर में या तो हम खुद आभासी रूप से पंहुचेंगेजहां वास्तविक घटना में हम खुद कुछ भी छेड़छाड़ करने में असमर्थ हों, या फिर हम भौतिक रूप से पंहुचे तो सामने दिखता अतीत या भविष्य आभासी होगाजिसे हम देख तो सकते हैं लेकिन उसमें कोई फेरबदल नहीं कर सकते। इस चीज को मैं दूसरे रूप में समझा सकता हूँ। 
https://gradias.in/product/इनफिनिटी-द-साइकिल-ऑफ़-सिवि/

हमारा रात में आसमान देखना भी समय यात्रा है

  आप रात में आस्मान देखते हैंआपका यह देखना असल वर्तमान और अतीत का संगम है। कभी आपने सोचा है कि जब आप आस्मान के सितारे देख रहे होते हैं तब असल में आप वक्त में कुछ मिनट से ले कर कई हजार, लाख, करोड़ साल पीछे तक पंहुच जाते हैं। हम जो पृथ्वी पर बैठ कर दूर दराज के तारे, ग्रह देखते हैं.. वह प्रकाश के माध्यम से संभव हो पाते हैं जिसकी गति लगभग तीन लाख किमी प्रति सेकेंड होती है, लेकिन बावजूद इसके स्पेस में चीजें इतनी दूर-दूर हैं कि उनसे चली रोशनी को हम तक पंहुचने में करोड़ों, अरबों साल तक लग जाते हैंतो होता यह है, कि किसी तारे, किसी प्लेनेट, किसी गैलेक्सी का जो व्यू हम तक अभी पंहुच रहा है, वह असल में एक घंटे से ले कर एक अरब साल से भी ज्यादा पुराना हो सकता है।
https://ashfaqansari.in
Space view in Night
  उदाहरणार्थ मान लीजिये किसी गैलेक्सी का व्यु हम तक पंहुचने में हजार साल लग जाते हैंयानि जो व्यू हम अभी देख रहे हैं वह दरअसल हजार साल पुराना है, और ठीक इस वक्त का जो व्यू होगा, वह पृथ्वी पे हजार साल बाद दिखेगाऔर यह भी हो सकता है कि वह गैलेक्सी एक साल पहले, सौ साल पहले, या इस व्यू के तत्काल बाद नष्ट हो गयी हो और हकीकत में एग्जिस्ट ही न करती होजबकि अगले हजार साल तक हमें यह इसी तरह दिखती रहेगी।

  यही आपकी अतीत में की गयी समय यात्रा है और अगर आप अपनी पृथ्वी का इतिहास ठीक इसी अंदाज में देखना चाहते हैं तो स्पेस ट्रैवल की थ्योरी समझिये। आइंस्टीन की थ्योरी कहती है कि  रोशनी की गति से कोई चीज नहीं चल सकती और यह गति इतनी कम है कि आप इस गति से चल कर भी अपने जीवन काल में अपनी गैलेक्सी से ही बाहर नहीं निकल सकते, फिर और कहीं पंहुच पाने की उम्मीद ही बेकार है। 

  इसके लिये या तो वर्महोल एक विकल्प हो सकता है, या फिर किसी ट्रांसमिशन तकनीक पे जाना होगाजहां आप पलक झपकते ही एंड्रोमेडा तक की भी दूरी तय कर सकेंयह सुनने में अजीबोगरीब है लेकिन कोई भी सिविलाइजेशन जो अंतरिक्ष यात्रा करने में सक्षम होगी, वह इसी विकल्प से अपनी यात्रा को संभव कर सकेगी।

  सपोज कीजियेआप ऐसी तकनीक विकसित कर लेते हैं तो आप पृथ्वी से अलग-अलग दूरी पर पलक झपकते ही पंहुच कर अतीत की पृथ्वी को देख सकेंगे। इससे आप हीरोशिमा न्युक्लियर अटैक, डायनासोर युग या उनके अंत की वजह अपने सामने देख सकेंगे। हां ऑफकोर्स आपके पास इतनी दूर की चीज साफ तौर पर देखने लायक ऑब्जेक्ट होने चाहियेलेकिन यहां भी आप आभासी रूप से बस देख सकेंगे, उसमें कोई भी फेरबदल नहीं कर सकेंगे।
https://gradias.in/product/गिद्धभोज/

स्पेस में वक़्त अलग-अलग गति से चलता है

  यह तो हुई अतीत की यात्राभविष्य की यात्रा के लिये आपको यह फैक्ट समझना होगा कि वक्त हर जगह ऐब्सोल्यूट यानि सबके लिये समान नहीं होता, जैसा कभी न्युटन ने दावा किया था या आपको भी लगता होगा क्योंकि जिसकी भी दिलचस्पी विज्ञान में नहीं, वह आज भी यही सोचता हैयानि जितनी देर में हमारा एक घंटा गुजरेगा, उतनी ही देर में स्पेस में कहीं भी एक घंटा ही गुजरेगाजबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।

  हकीकत में किसी चीज की ग्रैविटेशनल फील्ड और विलॉसिटी के अनुपात में वक्त अलग-अलग गुजरता हैजैसे स्पेस में पृथ्वी के मुकाबले वक्त तेज गुजरेगा, जबकि पृथ्वी पर ही गीजा के पिरामिड के आसपास वक्त बाकी जगहों के मुकाबले स्लो गुजरता हैयह फर्क सेकेंड के छोटे से हिस्से का होता है, लेकिन स्पेस में अलग-अलग जगहों पर वक्त बहुत ज्यादा तेज या बहुत धीमा हो सकता है... जैसे बृहस्पति ग्रह के मास के अकार्डिंग वहां की ग्रेविटी बहुत ज्यादा है तो पृथ्वी के मुकाबले वहां वक्त बहुत धीमी गति से गुजरेगा।
https://ashfaqansari.in
Event Horizon

  इसके सिवा किसी ब्लैक होल के आसपास वक्त बहुत धीमा गुजरता है। इसे आप 'इंटरस्टेलर' फिल्म से समझ सकते हैं, जहां गारगेन्टुआ ब्लैकहोल के पास एक प्लेनेट पर गुजरता एक घंटा भी बाहर सात साल के बराबर गुजरता है। या अगर आप ब्लैक होल के अंदर जा सकते हैं तो कुछ घंटे गुजार कर भी वापस जब आप पृथ्वी पर आयेंगे तो यहाँ बहुत कुछ बदल चुका होगा और आप एक झटके से भविष्य में पंहुच जायेंगेलेकिन एक तरह से यह वन वे है, यहां आप बस फोर्थ आयाम के सहारे आगे तो बढ़ सकते हैं लेकिन फिफ्थ डायमेंशन के सहारे अतीत में वापस नहीं लौट सकते।
  इसके सिवा गति भी टाईम पर गहरा प्रभाव डालती हैआप जितनी तेज गति से चल सकते हैं, आपके सामने गुजरने वाला वक्त उतना ही धीमा हो जायेगा। मतलब अगर आप रोशनी की गति से चल पायें तो वक्त आपके लिये लगभग रुक जायेगा। इसे आप 'क्लाक स्टॉपर' या 'एक्समेन' सीरीज की फिल्म से बेहतर ढंग से समझ सकते हैं जहां फिल्म के ऐसा करने में सक्षम कैरेक्टर इस गति से एक्ट करते हैं कि उनके सामने बाकी चीजें एकदम थमी हुई दिखती हैंया थोड़ा बहुत आप मच्छर से भी समझ सकते हैं जिसकी गति इंसान के मुकाबले बहुत तेज होती है और उसे मारने के लिये तेज गति से की गयी इंसानी हरकत भी उसे स्लो मोशन में होती हुई दिखती है, जहां वह बड़े आराम से अपना बचाव कर लेता है।

  लेकिन इसके साथ ही एक फैक्ट और जुड़ा है कि इतनी तेज गति से हरकत करते ऑब्जेक्ट को आप देख ही नहीं सकतेउदाहरणार्थ चलते सीलिंग फैन के ब्लेड, मच्छर या मक्खी के पंख। चूँकि आपने इन्हें रुकी अवस्था में देखा है तो आप जानते हैं कि यह हैंअगर स्थिर अवस्था में न देखा होता तो? फिर यह चीजें सिरे से आपके लिये होती ही नहींठीक इसी नियम से हो सकता है कि हमारे आसपास ऐसे प्राणी होंजिनकी तेज गति की वजह से हम उन्हें देख ही न पाते हों जबकि वे हमें बिलकुल स्लो मोशन में एक्ट करते देखते हों... उसी तर्ज पर स्पेस में ऐसी चीजें हो सकती हैं जिन्हें उनकी गति की वजह से हम देख ही न पाते हों।

पैरानार्मल एक्टिविटीज के संभावित कारण

  अब बात करते हैं भूत, प्रेत, सुपर नैचुरल्स, पैरानार्मल एक्टिविटीज की। आप कहेंगे कि इस लेख में उनकी क्या जरूरतलेकिन अगर हम एक संभावना के मुताबिक वाकई में एक कंप्यूटराइज्ड प्रोग्राम हैं तो इन्हें आप इस प्रोग्राम में आने वाला एरर समझियेइसलिये इस पहलू को भी परखते चलिये।
www.ashfaqansari.in
Paranormal Terror

  इन्हें ले कर जो आम धारणायें हैं वह दो तरह की हैंपहली है किसी भटकती आत्मा की और दूसरी मुसलमानों में अस्तित्व रखने वाले जिन्नात की। तो आज हमारे पास आधुनिक उपकरण और तकनीक हैं जिनसे हम किसी भी ऑब्जेक्ट की गर्मी से न सिर्फ उसके वजूद को डिटेक्ट कर सकते हैं, बल्कि उन्हें देख भी सकते हैं और इस वजह से जिन्नात का एग्जिस्टेंस तो सिरे से खारिज हो जाता है, क्योंकि जब आप उन्हें आग से बना बताते हैं तो वे ऊष्मारहित तो नहीं हो सकते।

  हां आत्मा वाले टिके रह सकते हैं लेकिन क्या वाकई आत्मा जैसी कोई चीज होती है? असल में इंसान को चलाने वाली 'चेतना' है जिसे हम ऊर्जा की एक फॉर्म कह सकते हैं। जब तक यह शरीर में है, शरीर चल रहा है और जैसे ही यह खत्मजीवन खत्म।

  जैसे हम टीवी या कंप्यूटर को देखते हैं, जो दुनिया भर की चीजें हमें दिखाता है, सुनाता है, पढ़ाता है लेकिन उसे चलाने वाली इलेक्ट्रिसिटी के खत्म होते ही वह परफार्म करना बंद कर देता है। उसे चलाने के लिये बिजली मुख्य कारक है, लेकिन उसका कोई स्वतंत्र वजूद नहीं। वह बल्ब, फैन, टीवी, मोबाईल, बैट्री, वायर जैसे किसी सहायक ऑब्जेक्ट के साथ ही परफार्म कर सकती है। बस इसी तरह ही आत्मा को भी समझिये।

  इस चीज को रेडियो से भी समझ सकते हैं कि सेल डालते ही वह आपको दुनिया भर के स्टेशन सुनाता है, लेकिन सेल निकालते ही वह डब्बा हो जाता है। वह सेल/बैट्री/इलेक्ट्रिसिटी खुद आपको कुछ नहीं सुना सकती और न उनके बगैर रेडियो कुछ सुना सकता है। दोनों तभी परफार्म करेंगे जब एक दूसरे से जुड़ेंगे। यह बैट्री ही चेतना है जबकि रेडियो आपका शरीर। बिना शरीर न चेतना किसी काम की और न बिना चेतना के शरीर किसी काम काइसी चेतना या ऊर्जा को हम साधारण भाषा में आत्मा कहते हैं।

https://gradias.in/product/गॉड्स-एग्ज़िस्टेंस/
Written by Ashfaq Ahmad

No comments