गॉड्स एग्जिस्टेंस फाईनल

इंसान किसी सिविलाइजेशन का एक्सपेरिमेंट हो सकता है

  बहरहाल, इस पूरे सिस्टम को अगर सिमूलेशन मानते हैं तो एक संभावना यह भी बनती है कि यह किसी एडवांस सिविलाइजेशन का कोई एक्सपेरिमेंट हो या फिर भविष्य के इंसान ही यह प्रोग्राम बना कर अपना अतीत देख रहे हों। बहरहाल कुछ भी होयह तय है कि अगर किसी ने हमें बनाया है तो फिर हमारे लिये वही ईश्वर है और यकीनन इस संभावना को मान्यता देते ही आपको यह मानना पड़ेगा कि ऐसा है तो फिर ईश्वर दो हैंएक वह है जिसने इस पूरे सिस्टम को बनाया और दूसरा वह है जिसे इंसानों ने बनाया।
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Holographic-Quantum-Reality

  इंसानों ने जिसे बनायाउस पर अपनी समझ, फितरत, और अब तक हासिल ज्ञान के हिसाब से अपनी कल्पनायें अप्लाई कर दी... कहीं निराकार तो कहीं तीन चार मुंह वाला बना दिया, कहीं नूर यानि रोशनी से बिना शेप साईज बना दिया, कहीं आस्मान दाहिने हाथ में पकड़ा दिया तो कहीं सिंहासन पर बिठा दियाऔर उस पर अपने इंसानी जज्बात भी उसी रूप में अप्लाई कर दिये कि वह इंसानों की तरह ही चापलूसी से खुश होता है, इंसानों की तरह दुखी होता है और इंसानों की तरह ही आगबबूला भी हो जाता है और हिंसात्मक रूप से सजा देने की धमकी देने लगता है।
  अब अगर हम गाड्'स एग्जिस्टेंस की संभावना पर चर्चा कर रहे हैं तो फरिश्तों, नबी/पैगम्बर और अवतारों के बारे में भी कोई संतोषजनक उत्तर खोजने होंगे क्योंकि ईश्वर के कांसेप्ट के साथ यह चीजें भी अनिवार्य रूप से जुड़ी हैं। पहले फरिश्तों के बारे में बात करते हैं जिनके लिये यह अवधारणा है कि वे स्प्रिचुअल मैटर से बने हैं यानि ऐसा पदार्थ जो इस दुनिया का नहीं।

  एक आस्तिक-नास्तिक की बहस में केंट हॉविंड से यह सवाल पूछा गया था कि स्प्रिचुअल फोर्स के रूप में फरिश्ते पदार्थ से बने किसी ऑब्जेक्ट को कैसे इफेक्ट कर सकते हैं और मैटर से बने पेन की नोक पर स्प्रिचुअल मैटर से बने कितने फरिश्ते डांस कर सकते हैं?

  उनका जवाब था कि एक इंसान के तौर पर भले हम मैटर से बने हैं लेकिन खुशी, दुख, क्रोध, जलन जैसे जज्बात आखिर किस मैटर से बने हैंलेकिन फिर भी वे पदार्थ से बने हमारे शरीर को इफेक्ट करते हैं या नहीं? अगर गुस्से में हम सड़क पर पड़े केन को ठोकर मार कर दूर उछाल देते हैं तो यहां एक नथिंग मटेरियल से पैदा हुआ गुस्सा पदार्थ से बने केन और हमें, दोनों को इफेक्ट कर रहा है या नहीं।

  फरिश्ते की स्प्रिचुअल फोर्स को हम इन जज्बात या भावनाओं के रूप में डिस्क्राईब कर सकते हैं जो हमें नार्मल से अलग व्यवहार करने पर मजबूर करते हैं और चीजें एक साथ केमिकल रियेक्शन के रूप में आपके दिमाग में रहती हैं। जो भी बड़े-बड़े पंखों वाले हांड़ मांस के बने फरिश्तों की कल्पना करता हैउसे इस तरह के सवालों के जवाब नहीं मिल सकते कि स्प्रिचुअल मैटर किसी मैटर को कैसे इफेक्ट कर सकता है और पेन की टिप पर कितने फरिश्ते डांस कर सकते हैं। फरिश्ते यानि बस एक ऐसी स्प्रिचुअल फोर्स जो किसी माध्यम से आपको 'नालेज' भी दे सकते हैं और कोई अच्छा या बुरा काम भी करवा सकते होंइससे ज्यादा स्पेस उन्हें नहीं दिया जा सकता।
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प्रोग्राम्ड सिस्टम में किसी प्रोफेट की क्या भूमिका हो सकती है

  अब आइये नबी/पैगम्बर, अवतार की भूमिका परअगर आप संपूर्ण ब्रह्मांड को एक ठोस हकीकत मानते हैं तो फिर आपको यह समझना होगा कि आपकी हैसियत एक एटम में बंद प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान से ज्यादा नहींजिन्हें नंगी आंखों से देखा भी नहीं जा सकता और खरबों एटम्स हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं... या लंबे चौड़े रेगिस्तान में खड़े हो कर उंगली पर रेत का एक कण ले कर यह समझ लीजिये कि इस कण के अंदर आप है और तब सोचिये कि एटम या रेत के कण के बाहर मौजूद एक इंसान के तौर पर आप उसके अंदर मौजूद कुछ जीवों या कणों के लिये कोई गाइडलाईन जारी करने की जहमत उठायेंगे?
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  जाहिर है आपका जवाब नकारात्मक होगाऐसे में आप इन दोनों चीजों को एक साथ नहीं मान सकते, कि पूरा यूनिवर्स एक हकीकत है और इसके एक लगभग न दिखने वाले ग्रह पर सूक्ष्म बैक्टीरिया से भी गयी गुजरी हैसियत वाले इंसानों के लिये कोई गाईडलाईन जारी करने के लिये कुछ नबी/पैगम्बर, अवतार भेजे गये हैं। हम इस यूनिवर्स को ठोस हकीकत मानते हैं तो असल में हम सिरे से इसके मकसद को ही समझने में फेल हैंफिर नबी/पैगम्बर या अवतार तो बहुत बाद की बात हैं।

  मतलब पृथ्वी जैसे एक ग्रह पर जीवन के लिये अनुकूल स्थितियाँ बनाना और उसके आसपास इतना बड़ा ब्रह्मांड रच देना कि उसके एक प्रतिशत हिस्से तक भी हमारी पंहुच न होकहीं से तर्कसंगत नहीं। हम प्रकाश की गति की लिमिट में बंधे हैं जो तीन लाख किलोमीटर पर सेकेंड के सर्वोच्च शिखर पर होते हुए भी स्पेस के साईज के अकार्डिंग चींटी की चाल से भी गयी गुजरी है कि इस गति से हम एक जीवन में दूसरे सौरमंडल तक भी बमुश्किल पंहुच पायेंगेअपनी गैलेक्सी से निकलने में कई पीढ़ियां चुक जायेंगी तो स्पेस में कहीं और पंहुचने की कल्पना ही बेमानी है, फिर उस स्पेस का हमारे लिये मतलब ही क्या रह जाता है।

  लेकिन अगर हम हाफ इल्यूजन या फुल सिमुलेशन वाले ऑप्शन पर जाते हैं तो यह चीजें प्रासंगिक हो जाती हैं। इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि हमारा कंप्यूटर ठीक ठाक काम कर रहा होता है कि उसमें कुछ वायरस आ जाते हैं जो फाइलों को करप्ट करने लगते हैं और उसे ठीक से फंक्शन नहीं करने देतेतब हम कंप्यूटर में एंटीवायरस इंस्टाल करते हैं जो ढूंढ ढूंढ कर उस वायरस को खत्म करता है ताकि कंप्यूटर फिर ठीक से काम करने लगे। इस एंटीवायरस को ही हम नबी/पैगम्बर या अवतार की संज्ञा दे सकते हैं।
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सही खुदा या गलत खुदा

  बहरहालअगर आप आस्तिक हैं और खुदा/ईश्वर पर यकीन रखते हैं तो थोड़ा चिंतन कीजिये, मनन कीजिये और तय कीजिये कि कहीं आपने गलत खुदा का दामन तो नहीं पकड़ रखा। एक आस्तिक के तौर पर जब आप अपनी शिकायतों की पोथी ले कर इधर-उधर सवाल करते हैं कि खुदा है तो ऐसा क्यों है या वैसा क्यों हैवह जरूरत के टाईम सामने क्यों नहीं आता या जरूरत के वक्त लोगों की मदद क्यों नहीं करता... तो असल में यह आपकी कमी है कि आप सवाल उस खुदा से और उस खुदा के लिये पूछ रहे हैं जो इंसानों द्वारा निर्मित है।
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  अगर कोई खुदा वाकई है तो वह हर्गिज नहीं है जिसे आप दुनिया में मौजूद धर्मों से संबंधित खुदा के रूप में जानते हैं। वह अगर होगा तो इन सब चीजों से निर्लिप्त होगायह तय है और यहां यह जो 'क्यों-क्यों' करके हजारों सवाल हैं वह दरअसल आपको खुद से करने चाहिये न कि उससेक्योंकि एज ए क्रियेटर आप खुद अपनी क्रियेशन पर वह सब नहीं थोपना चाहेंगे, जिसके खिलाफ अभी आपके मन में सवाल उठते हैं।
  तो अगर ईश्वर में यकीन रखते हैं तो रांग गॉड से पीछा छुड़ाइये और राईट गॉड का दामन पकड़िये... अपने सवालों के जवाब आपको खुद मिल जायेंगे।
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Written by Ashfaq Ahmad

1 comment:

  1. पहली बार आपका पेज पढ़ा अच्छा लगा सारे आर्टिकल पढ़ना है बहुत खूबसूरत मेरा भी एक चिंतन था कि खुदा अपनी नाफरमानी वालो को सजा देता है उसे चापलूसी पसंद है तो फिर कैसा खुदा

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