डिज़ाइन ऑफ़ यूनिवर्स/Design of Universe
डार्क मैटर और डार्क एनर्जी क्या है
यह बहुत जटिल चीज है समझने के लिहाज से, क्योंकि बिना थ्री डी माॅडल के सिर्फ लिखे या फोटो वीडियो से समझ पाना बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी चाहें तो एक कोशिश कर सकते हैं।
इसे समझने के लिये सबसे पहले आपको यह समझना पड़ेगा कि इस यूनिवर्स में जो कुछ भी हम देख, महसूस या डिटेक्ट कर पाते हैं वह ऑर्डिनरी मैटर होता है और अगर हम किसी पृथ्वी जैसै पिंड पर हैं तो फिर एटम्स के रूप में यह हमारे हर तरफ है और एक सुई की नोक जैसी जगह भी इससे खाली नहीं है।
मतलब साधारण भाषा में समझें तो आप अपने दोस्त के साथ खड़े हैं तो आपको दूरी के हिसाब से अपने और अपने दोस्त के बीच खाली जगह दिखाई देगी..
लेकिन यह जगह खाली नहीं है बल्कि इसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी गैसों के खरबों एटम्स मौजूद होते हैं, जिन्हें आप हवा के रूप में देखते हैं और इसी के जरिये श्वसन करते हैं। आप आस्मान की तरफ देखते हैं तो आपको बिलकुल खाली जगह दिखाई देती है लेकिन यह खाली जगह भी खरबों एटम्स से भरी है जिसकी वजह से वातावरण बनता है...
यह वातावरण ही है जिसकी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव होता है, आप सांस ले पाते हैं, बोल पाते हैं.. बगैर वातावरण आप कुछ नहीं हैं लेकिन इस वातावरण की एक सीमा होती है.. उसके बाद?
उसके बाद खाली स्पेस है.. यह यूनिवर्स जो आप देखते जानते हैं इसमें खरबों गैलेक्सीज हैं और हर गैलेक्सी में अरबों खरबों तारे, ग्रह, उपग्रह हैं लेकिन जो यूनिवर्स का साईज है, उसके हिसाब से यह सारा ऑर्डिनरी मैटर इसका पांच पर्सेंट भी नहीं है...
फिर बाकी क्या है जो 95% के लगभग फैला है? इसकी कोई विजिबल पहचान नहीं है, न इसे डायरेक्ट डिटेक्ट किया जा सका है लेकिन अपनी सुविधा के लिये हमने इसे डार्क मैटर/डार्क एनर्जी की संज्ञा दे रखी है।
अब इसके होने न होने का सबूत क्या है फिर? तो इसे यूं समझिये कि एक चकरी सी है जिसमें मौजूद दाने बहुत कमजोर से धागे से बंधे हैं और इसे तीव्र गति से नचा दीजिये.. आप पायेंगे कि कुछ ही पलों में वह धागा टूट गया और दाने बिखर गये। इसी चीज को गैलेक्सी पे अप्लाई कीजिये, यहां कोई धागा नहीं है लेकिन यह तूफानी गति से घूम रही हैं...
कायदे से तो यह होना चाहिये गैलेक्सीज के सोलर सिस्टम्स को इस गति से घूमते हुए दूर-दूर छिटक जाना चाहिये क्योंकि इसके अंतिम सिरे आपस में जुड़ कर कोई गोल शेप नहीं बनाते कि सपोर्ट मिलता रहे, बल्कि वे खुले होते हैं तो इन्हें गोल घूमने पर बिखर जाना चाहिये..
लेकिन यह गैलैक्सीज नहीं बिखरती, बल्कि यह लगातार अपना शेप मेनटेन रखती हैं तो यह कैसे संभव है? क्या चीज है जो इन्हें बांध कर रखती है.. इसी चीज को डार्क मैटर के रूप में जाना गया। इसके साथ यह चीज जानकारी में आई कि ऐसा नहीं है कि यह कोई हाल जैसी जगह है जहां बस हर तरफ गैलैक्सी ही गैलैक्सी हैं...
बल्कि यह एक क्रम में हैं जैसे किसी एक पेड़ की शाख पर ढेर सी फूलदार टहनियां उगी हैं या कहीं एक फूलदार गुच्छा उगा हुआ है। इस चीज को क्लस्टर के रूप में देखा गया। इनके बीच में तमाम जगह खाली स्पेस है जैसे आप पेड़ की शाखाओं के मध्य ही देख सकते हैं.. इस खाली स्पेस को वायड कहते हैं।
बहरहाल अब इन गैलैक्सीज को बांधे इस सारे डार्क मैटर को भी अगर काउंट करते हैं तो भी यह छब्बीस-सत्ताईस पर्सेंट ही निकलता है तो बाकी बचे हिस्से में क्या है.. यह कोई ऐसी एनर्जी है जो इस पूरे पेड़ को गुब्बारे की तरह हवा भर के फुला रही है...
इसे डार्क एनर्जी के रूप में जाना गया। यह यूनिवर्स की सबसे बड़ी पार्टनर है लेकिन कड़वा सच यह है कि हम इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते.. बस मैथ की तरह ही हमने इसे सपोज कर रखा है।
बहरहाल, इसे सस्ते मद्दे माॅडल से समझने के लिये एक ऐसा कोई छोटा सा पेड़ बनाईये जो हवा पाने पे खुद भी कुछ हद तक फूले.. फिर किसी ट्रांसपेरेंट गुब्बारे में घुसा दीजिये और गुब्बारे में हवा भरते उसे फुलाते चले जाइये।
गुब्बारा फूलता चला जायेगा तो उससे आधी गति से ही सही पर पेड़ भी फूलता चला जायेगा और उसके बढ़ने के साथ उसकी वे शाखें, फूल, पत्तियाँ जो पहले आसपास थीं, वे एक दूसरे से बिना चले ही दूर होते जायेंगे।
अब समझिये कि यह फूल पत्तियां क्लस्टर और गैलेक्सीज हैं, उन्हें बांधे रखने वाली पेड़ की शाखें डार्क मैटर है और गुब्बारे में भरती हवा डार्क एनर्जी है.. बिना चले ही आकार वृद्धि की वजह से फूल पत्तियों का एक दूसरे से दूर होते चले जाना यूनिवर्स का एक्सपैंशन है...
और हां, आपका माॅडल फिर भी एक जगह स्थिर है लेकिन यूनिवर्स में कुछ भी स्थिर नहीं बल्कि हर चीज गति कर रही है।
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