मानी और मानवियत
कौन है मानी और क्या था उसका चलाया धर्म
ईरान की हिस्ट्री में "मानी" ऐसा व्यक्तित्व गुज़रे हैं जिनका ज़िक्र करने को दिल चाहता है क्योंकि उनका ज़िक्र जान बूझ कर किताबों में कम मिलता है!!
यह तीसरी सदी का एक शख़्स था जिसने "मानवियत" धर्म की बुनियाद रखी थी!!
अब यह मज़हब बाक़ी नहीं है मगर लेकिन एक ज़माने में इस के मानने वालों की तादाद बहुत ज़्यादा थी!
यह प्राचीन मजहबों का दिलचस्प मिकस्चर था!!
मानी के अनुसार जरतुष्ट ,जीसस ,और गौतम बुद्ध नबी थे!!
वह इस सिलसिले के आखिरी नबी है!!
यह मज़हब एक हज़ार साल क़ायम रहा!!
बेबीलोन में एक शहजादा "बाबक" रहता था!
वह अपने बाप दादा के ज़रतुष्ती मज़हब से बेज़ार हो गया!
सच की तलाश में वह मसीही राहिबों से मिला और उनका मज़हब अपना लिया !
अपनी प्रेगनेंट बीवी को छोड़ कर वह राहिब हो गया!!
216 AD में उस की बीवी ने एक बेटे को जन्म दिया ,नाम रखा "मानी"
जब मानी छह साल के हुए तो बाप आ कर ले गए और यूं मानी की परवरिश मसीही राहीबों के साथ हुई!!
24 साल की उम्र में मानी ने ऐलान किया के "मुझ पर एक फरिश्ता ख़ुदा की मैसेज लाता है मैं नबी हूं , मैं ही वह नबी हूं जिसके आने की भविष्यवाणी जीसस कर चुके हैं !!
उसने अपने मज़हब में दो ख़ुदा रखे एक अच्छाई का या ख़ैर का खुदा,एक बुराई का या शर का खुदा!!
फारस में उस वक़्त सासानी हुकूमत थी,उस के बादशाह "शापुर" ने मानी को फारस बुलवाया और उस का मज़हब अपना लिया!!
शाही सरपरस्ती मिलने से यह मज़हब तेज़ी से फैला!!
जर्तुष्ट के पुरोहितों को यह बात अच्छी ना लगी!
उन्होंने बादशाह से कह कर एक सवाल जवाब की महफ़िल करवाई!
इस में मानी की हार हुई!
बादशाह की बेइज्जती हुई!!
मानी की गिरफ़्तारी का हुक्म हुआ!
मानी रातों रात भाग निकले अफ़ग़ानिस्तान,कश्मीर ,लद्दाख होते हुए चीनी तुर्किस्तान जा पहुंचे!
वहां अपनी तालीमात में महात्मा बुद्ध की तालीम को ऊपर रखा!
शापुर की मौत के बाद उसका बेटा "हरमज"गद्दी पर बैठा,उसने मानी को ईरान बुला लिया!!
मानी ने फिर अपने धर्म का प्रचार शुरू कर दिया और अवाम में बहुत चाहा जाने लगा!
ज़रतुष्ट पुरोहितों से फिर बर्दाश्त ना हुआ और हर्मज के भाई बेहराम से बगावत करवा दी!!
हरमाज को क़त्ल करके वह ख़ुद बादशाह बना और फॉरेन मानी को गिरफ्तार करवा लिया!!
उसको 23 दिन खुले में ऐक खंबे से बांध कर रखा!2 मार्च 276 A D में उसके मरने के बाद भी लाश को कई दिन लटकाए रखा!!
मानी मज़हब के मानने वालों को भी काफ़ी तादाद में क़त्ल कर दिया गया!!
उस के धर्म में सात वक़्त की नमाज़ थी, रोज़े थे और बुत परस्ती मना थी,मज़हब पर शक करना सख्ती से मना था!!
सब से ख़ास बात यह के मानी "मूसा" को नबी नहीं मानते थे!!
उनकी किताब को शैतानी किताब कहते थे!
मानी की मौत के बाद भी उनका मज़हब रूस ,अफ्रीका,स्पेन और यूरोप तक फैला,एक हज़ार साल तक ज़िंदा रहा,अब इस के मानने वाले नहीं हैं!!!
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