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क्या सच में पृथ्वी पर नूह वाली बाढ़ आई थी ?

अगर दुनिया के नक्शे को फैला कर देखें तो मुख्य आबादियों के चार बिंदु नजर आयेंगे। सबसे मुख्य तो योरप और मिडिल ईस्ट की जिसे आप मेडेटेरेनियन सी के आसपास रख सकते हैं पूर्व की तरफ फैलाव के साथ.. दूसरी जो भारत कहे जाने वाले संपूर्ण क्षेत्र की तरफ फैली थी.. तीसरी जो हिमालय के पार, एशिया के सबसे पूर्व में थी और पैसिफिक तक फैली थी और चौथी जो बाकी आबादियों के साईज की तो नहीं थी पर इस लिहाज से मुख्य थी कि वह दो तरफ विशाल महासागरों से घिरे अमेरिकी कांटीनेंट में थी।
इन चारों जगहों पर जनश्रुतियों से चली आई बाढ़ की एक कहानी मिलेगी जो बहुत पहले के अतीत से जुड़ी है, और जिसकी ऐतिहासिकता के तो सबूत नहीं पर चूंकि वह धर्म की चाशनी के साथ परोसी गयी है तो लगभग पहुंची सभी आबादियों तक उसकी पहुंच है। एशिया के पूर्वी किनारे पर बसे चीनियों के पास उनके किसी महापुरुष के साथ दर्ज है तो अटलांटिक और पैसिफिक से घिरे अमेरिका में एज्टेक लोगों के पास उनके किसी देव पुरुष के साथ। दक्षिण एशिया में पूरे भारत को रखें तो यह सातवें मनु वैवस्वत के साथ जुड़ी है और योरप और मिडिल ईस्ट में यह नूह के साथ जुड़ी है।
अब चूंकि इन दो जगहों के धर्म और इनके फाॅलोवर्स पूरी दुनिया में फैले हैं तो यह कहानी पूरी दुनिया में मिलेगी, जिस पर हाॅलीवुड वाले रसेल क्रो के साथ फिल्म भी बना चुके हैं। कहानी मूल रूप से बाइबिल की थी, जिसे बाद में मुसलमानों ने अडाॅप्ट किया तो सहज रूप से यह थोड़ी एडिटिंग के साथ कुरान में भी उपलब्ध है। कहानी के ज्यादा गहरे में उतरने की जरूरत नहीं.. वह शायद सभी ने सुन रखी होगी कि धरती पर पाप बहुत बढ़ गया तो ईश्वर ने पापियों को सजा देने के लिये एक विश्व व्यापी बाढ़ पैदा की और नूह को इस बात की खबर पहले से थी तो उन्होंने एक बड़ी कश्ती बनाई जिसके जरिये, जानवरों, परिंदो और अपनी अगली पीढ़ी को बचाया।

चलिये कहानी के व्यावहारिक पहलू पर फोकस करते हैं.. क्या ऐसा हो सकता है कि मात्र कुछ दिन (सात दिन) के अल्टीमेटम पर नूह आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड में पाये जाने वाले कंगारू या कीवी पकड़ लायें? या सुदूर अमेरिका से ले कर चीन तक खास क्षेत्र में पाये जाने वाले कैपिबारा से ले कर कुआला जैसे पशु पक्षी पकड़ लायें? या उनके बस में था कि वे आर्कटिक पर पाये जाने वाले पोलर बियर या अंटार्कटिका में पाये जाने वाले पेंग्विन पकड़ लायें?
चलिये किसी चमत्कार से मान लेते हैं कि ऐसा कर भी लिया गया तो भी उससे बड़ा सवाल यह है कि अलग-अलग जमीन और तापमान के रहने वाले पशु पक्षी किसी एक जगह पर कैसे रह सकेंगे? आप उम्मीद करते हैं कि उत्तरी ध्रुव की बर्फ में रहने वाला भालू किसी गर्म जगह पर रह लेगा या रेगिस्तान में रहने वाले ऊंट शुतुरमुर्ग किसी बर्फीली जगह पर रह लेंगे। कोई एक वातावरण कुछ जानवरों और परिंदों के लिये तो सूटेबल हो सकता है लेकिन सबके लिये नहीं।
फिर मांस पर जिंदा रहने वाले शेर, भेड़िये, लकड़बग्घे इस तरह पकड़ने ही मुमकिन है और न उन्हें यूं एक जगह रखना। फिर इतनी बड़ी भीड़ एक जहाज पर (चाहे वह कितना भी बड़ा हो) एक लंबे वक्त के लिये (लगभग छः महीने तक) रखना है तो उसके लिये बहुत सारे खाने का प्रबंध भी करना पड़ेगा.. खास कर मांसाहारी जानवरों के लिये। अब इतना बंदोबस्त एक जहाज पर व्यवहारिक रूप से मुमकिन नहीं, बाकी आस्था में दिमाग बंद करके चमत्कार मान लीजिये तो अलग बात है।
अब दिमाग वाली बात यह है कि अगर चमत्कार को किनारे रखते हैं तो कोई साधारण समझ का इंसान भी बता देगा कि कहानी असली नहीं है, क्योंकि इसे सच बनाने के लिये काफी चमत्कार चाहिये होंगे.. लेकिन इस सबसे परे एक चीज जो सोचने वाली है कि अगर इसे धार्मिक चमत्कार से दूर रखें तो भी पृथ्वी पर एक बड़ी बाढ़ का जिक्र तो मिलता है क्योंकि इससे सम्बंधित कहानी अलग-अलग उन संस्कृतियों में मौजूद हैं जो भौगोलिक रूप से पूरी दुनिया को कवर करती हैं।
तो ऐसी किसी बाढ़ की क्या वजह हो सकती है और क्या ऐसी कोई बाढ़ संभव थी??


अपने समय से आगे की सभ्यतायें कहाँ लुप्त हो गयीं?

अगर टाईम स्केल पर हम साढ़े चार हजार साल पीछे जायें तो दुनिया की अधिकांश सभ्यतायें छोटे-छोटे समूहों में बंटी थीं और विकास के मामले में उन्होंने कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की थी बल्कि ब्रोंज एज को जीते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थीं लेकिन उसी दौर में इजिप्ट और इंडस वैली की सभ्यतायें अपने समय से बहुत आगे थीं। उनके और ग्लोब की दूसरी सभ्यताओं के बीच विकास के पैमाने पर काफी फर्क था। वे सभ्य थीं, आधुनिक थीं, उनके पास नगरों को बसाने का सही प्लान था और वे इंजीनियरिंग कर रही थीं।
हड़प्पा के उन्नत होने के पुरातत्विक प्रमाण उनके नगरों के अवशेष से मिलते हैं जबकि इजिप्ट की उस आधुनिक सभ्यता की झलक ग्रेट पिरामिड, स्फिंक्स, हैथोर के डंडेरा लाईट कांप्लेक्स और एबिडस के हायरोग्लिफ्स से मिलती है। यह पिरामिड किस तरह उस जमाने में बनाया गया होगा जब लोहे तक की खोज नहीं हुई थी, न पहियों का इस्तेमाल शुरू हुआ था.. न कोई टेक्नोलॉजी ही थी उस वक्त बाकी दुनिया में.. यह अपने आप में एक रहस्य है और आज भी इस पर माथापच्ची होती है।
इसमें ज्योग्राफी, से लेकर ज्योमेट्री, वातानुकूलन से ले कर स्टार कांस्टिलेशन तक सबकुछ एक रहस्य है जो उस दौर में बेहद मुश्किल चीज थी। यह ओरायन बेल्ट के तीन सितारों के साथ अलाइन है, नार्थ पोल के साथ अलाइन है और इसके स्ट्रक्चर से इस बात की झलक भी मिलती है कि एरियल व्यू का भी ध्यान रखा गया है जो उस दौर में संभव नहीं था। इसके बारे में ज्यादा जानने के लिये यूट्यूब पर इससे सम्बंधित वीडियो देख सकते हैं।
वहीं हैथोर मंदिर में डंडेरा कांप्लेक्स नाम की जगह है जहाँ दीवारों पर उकेरे डंडेरा लाईट के चित्र इस बात की गवाही देते हैं कि उन लोगों को बिजली के इस्तेमाल की जानकारी थी। इसकी झलक कुछ और पेट्रोग्लिफ्स में मिलती है जहां लोगों के हाथ में टाॅर्च जैसी कोई चीज दर्शाई गयी है और इसी को ले कर शोधकर्ताओं का नया दावा है कि यह पिरामिड असल में वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी प्रोडयूस करने के लिये बनाये गये पाॅवर प्लांट थे और इससे सम्बंधित सुराग और थ्योरी विस्तार से यूट्यूब पर देख समझ सकते हैं।
वहीं एबिडस में मौजूद हायरोग्लिफ्स में कुछ आकृतियां हेलीकाप्टर, यूएफओ और सबमरीन को दर्शाती नजर आती हैं जिसकी वजह से बहुत से लोगों का यह मानना है कि उस वक्त एलियन वहां आते थे, और वही वहां के लोगों को ज्ञान देते थे। उस दौर में तकनीकी लिहाज से असंभव लगते पिरामिड उन्हीं की मदद और सुपरविजन से बने थे। अब ऐसा नहीं भी है तो भी इस तरह की आकृतियां उन मिस्रवासियों के दिमाग में थीं तो इससे कम से कम एक अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि तकनीकी मामलों में उनकी समझ बाकी ग्लोबवासियों से कहीं ज्यादा थी और यही उनके उन्नत होने का सबूत थी।
उसी काल खंड में हड़प्पा सभ्यता थी जो तकनीकी तौर पर उन जैसी तो नहीं थी लेकिन इंजीनियरिंग की समझ उनमें भी बहुत जबरदस्त थी और उन्होंने बेमिसाल इंजीनियरिंग का प्रयोग करते हुए आधुनिक तर्ज के शहर बसाये हुए थे जो उन्हें ज्ञात इतिहास में तब आसपास पाई जाने वाली आबादियों से आगे करता था। इस सभ्यता का अरब सागर के किनारे से लगा एक बेहतरीन शहर था धोलावीरा, जो वहां आबाद था जहां आज गुजरात का रण है और दूर-दूर तक सिवा नमक के और कुछ नहीं दिखता लेकिन कभी यहाँ हड़प्पा सभ्यता का एक बंदरगाही शहर हुआ करता था।
फिर करीब चार हजार साल पीछे.. यह सभ्यता लुप्त हो गयी। किसी जगह कोई बड़ी आपदा आये तो वह जगह बर्बाद हो जाती है और लोग इधर-उधर चले जाते हैं लेकिन पूरी सभ्यता को तो लुप्त नहीं कहा जाता.. फिर इनके लिये क्यों यह माना गया कि यह खत्म हो गये? क्योंकि इंसान जगह छोड़ सकता है, मगर उसका ज्ञान तो उसके साथ ही रहेगा। अगर वे इस रीजन को छोड़ कर किसी और जगह बसे होते तो उस ज्ञान का इस्तेमाल वहां करते और उनकी इंजीनियरिंग की एक कंटीन्युटी बनती जिसकी झलक वर्तमान तक मिलती लेकिन चूंकि इनके मामले में ऐसा नहीं हुआ और न उस दौर में किसी नगर में इनके ज्ञान और भाषा की पुनरावृत्ति मिलती है तो यह मान लिया गया कि यह पूरी सभ्यता ही लुप्त हो गयी।

उनके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं कि वे कौन थे, क्या भाषा बोलते थे, सारे मारे गये या बच कर कहीं और चले गये.. हमें कुछ पता नहीं। ऐसा होना तो मुश्किल है कि किसी आपदा या आफत में इतने लंबे चौड़े क्षेत्र में फैली पूरी सभ्यता ही खत्म हो जाये मगर यह माना जा सकता है कि उनकी जगह पूरी तरह खत्म हो गयी थी, वे छुटपुट इधर-उधर सालों साल जूझते बचे भी होंगे तो पूर्वी भारत की तरफ आबादियों में आ मिले होंगे या अब के पश्चिमी पाकिस्तान की.. उस दौर के लोग संभल ही न पाये होंगे और नई पीढ़ी वह ज्ञान कैरी न कर सकी होगी जिससे इस उन्नत सभ्यता के बचे खुचे लोग वहीं जा खड़े हुए होंगे जहाँ उस वक्त बाकी दुनिया की आबादियां खड़ी थीं।
लेकिन इसी आधार पर हम यही थ्योरी खुफू के दौर के उन प्राचीन मिस्रवासियों पर लागू नहीं करते जबकि वे भी अपने दौर में कुछ अलग ही और अपने वक्त से आगे के ज्ञान को जी रहे थे लेकिन फिर वह दौर भी आया कि इनका वह आधुनिक ज्ञान गायब हो गया। सारी आधुनिक टेक्नोलाजी खत्म हो गयी और वह सबकुछ इतिहास में दफन हो गया। इस दौर में एक 140 साल लंबे चले अकाल का जिक्र जरूर मिलता है जिसने उस वक्त की केंद्रीय व्यवस्था को ढहा दिया था। बाद के दौर में बिखरा-बिखरा मिस्र फिर एकत्र हुआ.. साम्राज्य बना और फैरो कहे जाने वाले शासकों ने लंबे वक्त तक शासन किया लेकिन अपने उस गौरवशाली अतीत को रिपीट नहीं कर पाये। उन्होंने भी बहुत से निर्माण कराये मगर ऐसा कुछ न बना पाये जो उनके पुरखे बना गये थे कि जिन्हें ले कर उपजे सवालों के जवाब आज भी लोग ढूंढ रहे हैं।
अगर इस ग्लिच को सही रूप में रेखांकित करते हुए यह माना जाये कि वह आबादी, जो उस ज्ञान को कैरी कर रही थी, जिसे ले कर ठीक ठाक जवाब हम आज भी नहीं तलाश पाये हैं.. चार हजार साल पूर्व के आसपास इंडस वैली की सभ्यता की तरह ही किसी तरह लुप्त हुई है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसे में सवाल यह बनेगा कि दो हजार ईसा पूर्व के आसपास ऐसा क्या हुआ होगा कि अपने समय से आगे चलती इन दोनों आबादियों को इतिहास में दफन हो जाना पड़ा। मिस्र के मामले में अगर उस डेढ़ सदी चले अकाल को रख सकते हैं जबकि सिंधु घाटी सभ्यता के विलोपन के पीछे भी एक वजह लंबे अकाल को माना जाता है तो यह भी कह सकते हैं कि उस दौरान एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्र प्राकृतिक जलवायु के डिस्टर्बेंस का सामना कर रहा था.. क्या इसकी वजह सूरज का वायलेंट आचरण हो सकता है?

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