काली बिल्ली



क्या मतलब है काली बिल्ली का?


दुनिया में विभिन्न तरह की दर्शन परंपराएं रही हैं। एक गुरुजी थे जो एक प्राचीन दर्शन परंपरा के वाहक थे। उनकी दर्शन परम्परा के अनुसार हिमालय पर्वत पर एक स्थान पर स्थित अंधेरी गुफाओं में एक रहस्यमय काली बिल्ली रहती है। जो उस बिल्ली के दर्शन पा ले वह भव बंधनों से मुक्त होकर सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है।

उन गुरुजी के सैकड़ों अनुयायी थे जो गुरुजी के निर्देशन में रात दिन उन अंधेरी गुफाओं में काली बिल्ली को खोजते रहते थे। लेकिन दुर्भाग्य से आज तक न तो गुरूजी को और न ही उनके किसी अनुयायी को उस काली बिल्ली के दर्शन हुए थे। लेकिन फिर भी उनका अटूट विश्वास था कि वह काली बिल्ली वहीं है और कभी न कभी वे उसे खोज ही लेंगे।
उनके इस अटूट विश्वास का कारण थे वे प्राचीन ग्रंथ जिसमें कुछ प्राचीन ऋषियों ने अपने अनुभवों का संकलन किया था। जिसमें उन्होंने उस काली बिल्ली के साक्षात्कार का दावा किया था। हालाँकि आज तक किसी के द्वारा उस बिल्ली के साक्षात्कार किये जाने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं था लेकिन फिर भी उनकी उस प्राचीन ग्रन्थ और उन प्राचीन ऋषियों पर अटूट आस्था थी।

उस काली बिल्ली को न खोज पाने का दोष वे अपनी अक्षमता को ही देते थे। यही नहीं उन्होंने अपनी दार्शनिक मान्यताओं के पक्ष में बड़े बड़े तर्कसंग्रह भी लिख रखे थे जिसमें उन्होंने तर्कों के द्वारा ये सिद्ध किया था कि उस काली बिल्ली का अस्तित्व है और वह उन अँधेरी गुफाओं में ही रहती है। उनके तर्क गजब के थे। वे किसी को भी अपने तर्कों से निरुत्तर करने की क्षमता रखते थे।
एक बार एक खोजी पत्रकार जो स्वभाव से संदेहवादी था उन गुरूजी के आश्रम उनकी दर्शन परम्परा को जानने के उद्देश से पहुंचा। जो पहली चीज जो उसने वहां नोटिस की वह ये कि उनके सभी अनुयायी आज भी उन सदियों पुराने तरीकों से ही बिल्ली की खोज कर रहे थे।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने गुरूजी से पुछा, “गुरूजी कृपया मुझे ये बताइए जब आज वैज्ञानिक प्रगति के कारण तमाम ऐसे साधन उपलब्ध हैं जो आपकी खोज में सहायक हो सकते हैं तो आप लोग उनका उपयोग क्यों नहीं करते?

आज भी आप इन अँधेरी गुफाओं को हाथों से टटोलकर बिल्ली की खोज कर रहे हैं जबकि आज हमारे पास सर्चलाइट, रात्रि में देखने में सक्षम नाईटविजन कैमरे और तापमान के बदलाव को पकड़ने वाले थर्मल कैमरे समेत तमाम साधन मौजूद हैं जो घुप्प अँधेरे में एक पतंगे की हलचल को भी पकड़ने में सक्षम हैं तो बिल्ली तो चुटकियों में पकड़ में आ जाएगी। आखिर क्या कारण है इन आधुनिक वैज्ञानिक साधनों का उपयोग न करने का?
गुरूजी: हम इन साधनों को आजमा चुके हैं, ये बेकार हैं और हमारे किसी काम के नहीं।

पत्रकार: आजमा चुके हैं मतलब? कब? कैसे?

गुरूजी: अभी कुछ समय पहले एक वैज्ञानिक दल सभी उपकरणों के साथ आया था। वे कई दिनों तक अपने उपकरणों के द्वारा उस बिल्ली को खोजते रहे लेकिन उनको कोई बिल्ली नहीं मिली।
पत्रकार: यदि आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण उस बिल्ली को नहीं खोज सके तो निश्चित ही वहां कोई बिल्ली नहीं है। यदि होती तो वह निश्चित ही पकड़ में आ जाती।

गुरूजी: वह बिल्ली कोई साधारण बिल्ली नहीं है जिसको इन उपकरणों से खोजा जा सके। विज्ञान अभी बच्चा है। उसको अभी बहुत कुछ सीखना है। ये भावनाओं की बात है, अनुभूति की बात है विज्ञान इसको नहीं समझ सकता।
पत्रकार: लेकिन आपके पास उस बिल्ली के होने का कोई प्रमाण भी तो मौजूद नहीं है। न ही आज तक किसी वैज्ञानिक खोज में उसके होने की पुष्टि हुयी फिर आप दावे के साथ कैसे कह सकते हैं कि वहां कोई बिल्ली है?

गुरूजी: क्या किसी के पास बिल्ली न होने का प्रमाण है? वैज्ञानिक खोजों की बात मत करना वो अपूर्ण हैं उनको हम नहीं मानते।

पत्रकार: लेकिन वहां बिल्ली होने का दावा तो आप ही कर रहे हैं तो ये आपकी ही जिम्मेदारी है कि आप उसके होने का प्रमाण दें।

गुरूजी: हमारे पास प्रमाण है। हमारे शास्त्र ही उसके होने का प्रमाण हैं। जिन ऋषियों ने उसका साक्षात्कार किया उनके अनुभव इन शास्त्रों में संकलित हैं और वो हमारे लिए सब प्रमाणों से बढ़कर हैं।

पत्रकार: ये शास्त्र सदियों पुराने हैं जब की खोज के साधन सीमित थे, इस दुनिया के बारे में हमारी जानकारी बहुत कम थी और विज्ञान अपनी शैशवावस्था में था। आज जब हमारे पास आधुनिक खोजों के रूप में ज्ञान का विशाल भंडार मौजूद है तो हमें अपनी ख़ोज में उनका उपयोग करना चाहिए। इसके द्वारा हम बेहतर निष्कर्षों पर पहुँच सकते हैं। सम्भव है कि उन ऋषियों ने भूलवश अँधेरे में किसी चट्टान को ही काली बिल्ली समझ लिया हो। या फिर हो सकता है जब उन ऋषियों ने जब उसका साक्षात्कार किया हो तब वहां कोई बिल्ली रही हो, जो अब वहां नहीं है। हालाँकि सदियों पहले सीमित साधनों के जरिये उन्होंने इन गुफाओं को खोजा यह भी अपने आप में एक उपलब्धि है, लेकिन इन निष्कर्षों को अंतिम नहीं माना जा सकता। और फिर भला किसी के व्यक्तिगत अनुभवों को प्रमाण कैसे माना जा सकता है?

गुरूजी(आवाज में तल्खी के साथ): देखो! तुम अब अपनी सीमा लाँघ रहे हो। हमारे शास्त्रों और ऋषियों पर ऊँगली उठाते हो! चार किताबें क्या पढ़ लीं अपनी परम्पराओं पर ही उँगलियाँ उठाने लगे। अपनी ही जड़ों को खोदते तुम्हें शर्म नहीं आती। तुम जैसे मैकाले पुत्रों की वजह से भारत की आज ये दुर्दशा है।

(गुरूजी ने पास में बैठे अपने चेले को हाथ के इशारे से चिलम तैयार करने को कहा)

चलो अब निकलो यहाँ से हमारे ध्यान का समय हो रहा है।
और वह पत्रकार उन गुरूजी की कूपमंडूकता से व्यथित होकर वहां से उठकर चल दिया। उसके जाते ही गुरूजी ने उच्च गुणवत्ता युक्त गांजे से तैयार की गई चिलम से एक कश खींचा और अपने मुहं और नथुनों से धीरे धीरे धुआं छोड़ते हुए अधखुली आँखों से दर्शन की गहराईयों में उतरने लगे।

Written by Arpit Dwivedi


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