पुस्तक समीक्षा: मिरोव

  

मिरोव चैप्टर 1        मिरोव चैप्टर 2        मिरोव चैप्टर 3 

ग़जब की साईंस फिक्शन है, मेरी अब तक की पढ़ी कहानियों में सर्वश्रेष्ठ। भारत में पता नहीं कितने लोग इस तरह का साईंस फिक्शन लिखते हैं, कि हर पाॅसिबव थ्योरी को साथ में साइंटिफिक वे में हर चीज़ एक्सप्लेन भी करते चलें, लेकिन इस कहानी में किया गया है। कोई अनोखी सी चीज़ अगर सामने आती है तो वह किन कारकों से संभव हो सकती है, यह चीज़ बाकायदा साथ में बताई जाती है, जो साईंस में दिलचस्पी न रखने वालों को बोर भी कर सकती है, लेकिन जिन्हें दिलचस्पी है तो उनके लिये यह सब बहुत रोमांच भरा हो सकता है।
कहानी लंबी है और तीन भागों में कंपलीट की गई है और अगर रीव्यू के ज़रिये हम इसे समझना चाहें तो सीधे इसके थर्ड और फाईनल पार्ट को समझते हैं। मज़े की बात है कि इसमें डार्क मैटर और डार्क एनर्जी वाले जिस शैडो यूनिवर्स की कल्पना की गई है, वह एक तरह से नई है, क्योंकि अब तक मुझे किसी हालिवुड फिल्म में तो ऐसा कुछ नज़र नहीं आया। हो सकता है कि किसी ने किताब में ऐसा कुछ लिखा हो लेकिन कभी ऐसा कोई चर्चा में तो नहीं आया। हां, यह संभावनाएं मैंने सुनी हैं कि चूंकि हम यूनिवर्स के मुख्य हिस्से को कोई अबूझ पहेली भर मानते हैं और जो चार-पांच प्रतिशत दिखने वाला यूनिवर्स है, उसे ही सबकुछ समझते हैं।
लेकिन हो सकता है कि यह मुख्य ब्रह्मांड न हो, बल्कि असल ब्रह्मांड वही हो, जिसे हम देख ही नहीं पाते, क्योंकि वह हमारे लिये है ही नहीं। तो अगर ऐसा होगा तो फिर वह ब्रह्मांड कैसा हो सकता है, उसका बड़ा जबरदस्त खाका इस कहानी में खींचा गया है। न सिर्फ उस यूनिवर्स का, बल्कि वहां मौजूद प्रजातियों और सभ्यताओं का भी।
जेम्स कैमरान की अवतार फिल्म पूरी दुनिया में इसलिये पसंद की गई थी क्योंकि उसमें जेम्स कैमरान ने वह सब दिखाया था जो इस दुनिया का नहीं था। नार्मली हम कहानियों में जो पढ़ते हैं और जो फिल्मों में देखते हैं, वह सब ज्ञात होता है, यानि हमारा जाना-पहचाना और हमारा देखा भाला हुआ। हम एलियंस के रूप में दुनिया से बाहर के बाहरी जीव की कल्पना भी करते हैं तो वह जैसे चार पांच देखे-भाले जीवों के मिक्सचर से तैयार कर दिया जाता है। जेम्स ने पैंडोरा के रूप में एक अलग दुनिया पेश की थी जहां किसी क्रियेटर की तरह चीज़ों को गढ़ा था जो दर्शकों के लिये एकदम नया और अनोखा था।
अवतार की मूल यूएसपी वही थी, वर्ना कहानी में नयापन कुछ नहीं था। जैसे हमारे यहां होता है, फिल्मों में दिखाते हैं कि आदिवासियों की ज़मीन पर कब्जा करने कुछ पूंजीपति पहुंचते हैं और मूल आदिवासी अपने जंगल ज़मीन बचाने की लड़ाई लड़ते हैं। जंगल ज़मीन की जगह पैंडोरा को कर लीजिये, कहानी सेम मिलेगी। उसका अनोखापन वह नये प्रकार की दुनिया थी। मिरोव थर्ड चैप्टर में वही नया और अनोखापन मौजूद है, उस छुपे हुए यूनिवर्स के रूप में जो हमारे आसपास ही है लेकिन हम उसे महसूस नहीं कर पाते क्योंकि वह अलग आयाम में है और पृथ्वी से गये लोगों को भी उसे देखने के लिये उसके हिसाब से ट्रांसफार्म होना पड़ता है।
अब उस यूनिवर्स में एक संघर्ष हजारों साल से चल रहा था, जिसमें पृथ्वीवासी भी उलझ जाते हैं। यह संघर्ष था उस यूनिवर्स को रीडिजाइन करने के नाम पर, कोई करना चाहता था तो कोई रोकना और इसी जद्दोजहद में सारे लोग फंसे चाल पे चाल चल रहे थे। अब उसी संघर्ष की शुरुआती कड़ियां पहले चैप्टर से ही जुड़ी होती हैं, लेकिन पहले चैप्टर की उस संघर्ष से इतर भी अपनी कहानी है, जहां मेमोरी इंप्लांटेशन का बहुत जबरदस्त खेल चल रहा होता है। पहले चैप्टर में अच्छा-खासा सस्पेंस है जो अंत तक दिलचस्पी बनाये रखता है और दूसरे चैप्टर की शुरुआत भी ऐसे ही एक सस्पेंस से होती है कि एक आदमी ठीक सौ साल बाद बरामद होता है जिसकी उम्र उतनी ही थी, जितनी गायब होने के वक्त थी।
पहले दो चैप्टर्स का मुख्य पात्र भी ऐसा ही एक कैरेक्टर था जो सैकड़ों सालों से जिंदा था और यह कोई जादू नहीं था बल्कि उसका भी एक वैज्ञानिक रीजन था। कहानी में भरपूर मनोरंजन तो है ही, मनोरंजन के साथ साईंस से सम्बंधित काफी जानकारी मौजूद है और साथ ही इतिहास और वर्तमान से जुड़ी काफी सारी जानकारियां सामने आती रहती हैं।
जो सबसे रोमांचक है, वह है तीसरे चैप्टर के अंत में होने वाला महायुद्ध, जिसकी कल्पना भी इतनी रोमांचक है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दिमाग में आता है कि अगर इस तरह के सीन फिल्मी पर्दे पर उतारे जायें तो कितने गजब लगेंगे। कहानी एक मजेदार ट्विस्ट के साथ खत्म होती है। कहानी में एक हल्की कमी यह ज़रूर है कि कैरेक्टराईजेशन मिक्स है। कुछ किरदारों को बहुत उभारा गया है लेकिन कुछ को अच्छी तरह ड्वैलप नहीं किया गया, जो तीसरे चैप्टर में पृथ्वी से मेन यूनिवर्स में पहुंचते हैं। मुझे लगता है कि उन पर थोड़ी और मेहनत की जानी चाहिये थी लेकिन शायद कहानी की लंबाई देखते इससे परहेज किया गया है।
ओवरऑल एक बढ़िया और मनोरंजक कहानी है जो अगर पर्दे पर उतारी जाती है तो एक बढ़िया फिल्म या वेब सीरीज बन सकती है लेकिन मुश्किल यह भी है कि सब्जेक्ट इतना भारी भरकम है कि बालिवुड वाले तो हाथ नहीं लगायेंगे और बाहर वालों को हिंदी कहानियों से मतलब नहीं होता। हालांकि यह कहानी भारतीय पात्रों के साथ भारतीय परिप्रेक्ष्य में नहीं है, बल्कि भारत के साथ अपना एक रिश्ता बनाये हुए अंतर्राष्ट्रीय किरदारों और बैकग्राउंड के साथ आगे बढ़ती है, लेकिन खैर.. पढ़ने लायक है।

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