पानी के दुश्मन
पानी के दुश्मन नागरिक
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Pani Ki Barbadi |
- सुविधाभोगी वर्ग की फिजूलखर्ची
आज फिर घर से पालीटेक्निक जाते हुए
रिंग रोड पर स्मृति पार्क के सामने से गुजरते हुए उन फुटपाथ के विक्रेताओं को देख
कर मूड बुरी तरह खराब हुआ जो आजकल बड़े-बड़े प्लास्टिक के बाथटब बेच रहे हैं। रोज
ही खराब होता है देख कर.. कोई नई बात नहीं।
थोड़ा गुस्सा उन बेचने वालों पर
आता है लेकिन ढेर सारा गुस्सा पर्यावरण के लिये एकदम संवेदनहीन हो चुकी सरकारों पर
आता है। यह नजारे उत्तर भारत के हर शहर में मिल जायेंगे, लखनऊ कोई अपवाद
नहीं है.. और मेरी तरह हर जगह वह लोग भी मिल जायेंगे जिनका खून ही खौल जाता हो यह
देख कर।
क्या है यह.. एक साधन सम्पन्न
सुविधाभोगी समाज की नंगई,
बेशर्मी, अपने
संसाधनों के प्रति निम्नतम दर्जे की क्रूरता। जरा सोचिये कि पानी की हमारे जीवन
में क्या उपयोगिता है और फिर सोचिये कि इसकी उपलब्धता क्या है और इससे उत्पन्न
संकट एक पूरे समाज के लिये कितना भयावह हो सकता है। दूर न जा सकें तो नेट पर ही
सर्च कर लीजिये.. वह शहर,
वह गांव, वह
बस्तियां, जहाँ
एक-एक बाल्टी पानी पाने के लिये कई-कई किलोमीटर तक का संघर्ष है।
- एक बाल्टी पानी के लिये भी कहीं संघर्ष होता
है..
मैं मुंबई में रहा हूँ जहाँ एक-एक
हंडे पानी के लिये आधी रात तक जागना पड़ा
है, घंटा
भर तक लाईन में लगना पड़ा है। मैं दिल्ली में रहा हूँ जहाँ पानी की यह क्रिटिकल
कंडीशन है कि अच्छे-अच्छे रईसी दिखाने वाले परिवार टैंकरों के आगे लाईन लगाते हैं।
जहाँ पीने के लिये नलों से मीठा पानी बस एक बार थोड़ा देर के लिये आता है और बाकी
टाईम समुद्र सा खारा पानी दिया जाता है,
जिससे नहाना तक मुश्किल होता है।
मैंने मध्यप्रदेश, राजस्थान और
गुजरात के पानी से जूझते वह इलाके नहीं देखे,
जहाँ पानी की एक-एक बूंद के लिये संघर्ष है लेकिन उनकी वेदना समझ सकता हूँ।
फिर देखता हूँ अपने होम टाऊन सीतापुर को जहाँ पानी जमीन के नीचे से उपलब्ध है तो
उसका अंधाधुंध दोहन हो रहा है।
लगभग सभी सम्पन्न परिवारों ने
सबमर्सिबल या जेट की बोरिंग करा रखी है और जरूरत एक लोटे की हो तो एक बाल्टी पानी
बहाया जाता है। छत पर लगी रंगीन टंकियां भर कर घंटों बहती रहती हैं। ढेरों
फैक्ट्रियां हैं जो दिन रात पानी खींच कर सूत धागा रंगती हैं और उस रसायनयुक्त
पानी को शहर की इकलौती नदी में छोड़ के उसे भी विषैला कर रही हैं। कहीं किसी के
माथे पे शिकन नहीं दिखती,
कहीं भविष्य को ले कर जरा भी चिंता नहीं दिखती।
लखनऊ में जिस बिल्डिंग में मेरा
फ्लैट है, तीन
सबमर्सिबल की बोरिंग हैं और पूरा दिन पानी चढ़ता रहता है। मेरे एन नीचे के फ्लैट
वाली मैडम दिन में तीन चार बार वाशिंग मशीन चलाती हैं, दो कपड़े भी
धुलने हों तो बिना मशीन के नहीं धुलते। नीचे पार्किंग में रोज सुबह पाईप चला कर
सबकी गाड़ियां धोई जाती हैं और यह कोई अनएजुकेटेड लोग नहीं हैं, बल्कि सब
बढ़िया पढ़े लिखे, साधन
सम्पन्नता से लैस कुलीन लोग हैं और मौका पड़े तो पर्यावरण पर दो पन्नों का भाषण भी
ठेल दें.. लेकिन इनकी हरकतें देखेंगे तो यह सबसे बड़े जाहिल दिखेंगे।
ऐसे ही यह बाथटब खरीदने वाले लोग
हैं.. पहले सिर्फ बेबी बाथटब माॅल वगैरह में बेचे जाते थे लेकिन अब उसका सस्ता
वर्शन फुटपाथ पर उपलब्ध है। देख कर जी मचल रहा है, बच्चा जिद कर रहा है.. आप तो पैसे वाले हैं, खरीद ले जाईये।
रोज पानी भरिये, थोड़ी
देर पानी में किलोलें कीजिये और बहा दीजिये। आपको क्या पड़ी है कि सोचें पानी के
बारे में। पानी की कीमत के बारे में.. आपके पास पैसा है, सबमर्सिबल पंप
है और जमीन के नीचे पानी है.. तो जी भर के उड़ाइये लेकिन यह पानी हमेशा नहीं
रहेगा।
- पानी की बर्बादी में लगभग सभी शामिल हैं..
जब बहुत छोटा था, तब मेरे पुराने
शहर में बस एक पानी की टंकी हुआ करती थी और वह भी पुराने शहर के लिये काफी थी। नये-नये
बसते मोहल्लों में चूँकि पाइप लाइन नहीं थी,
तो थोड़ी बहुत भी सही आर्थिक स्थिति वाले हैंडपंप लगवा लेते थे, जिससे आसपास
वालों का भी काम चल जाता था।
इसके सिवा तब पानी चूँकि
चालीस-पैंतालीस फीट पर उपलब्ध था तो कुछ कुंए भी हुआ करते थे। फिर आबादी बढ़ती गयी, समृद्धि बढ़ती
गयी... कुछ और जगहों पर सरकारी बोरिंग करवा दी गयी, ज्यादा गहरी बोरिंग वाले इंडिया मार्का हैंडपंप लगवाये जाने
लगे, पैसे
वालों ने जेट पंप लगवाना शुरू कर दिया और पानी का अंधाधुँध दोहन होने लगा।
भूगर्भीय जलस्तर लगातार गिरता
गया... कुंए पट कर वजूद खो बैठे। घर-घर दिखने वाले हैंडपंप बेकार होते गये और फिर
लोगों के जेट पंप भी जवाब देने लगे। तो अब और ज्यादा गहरे उतर कर सबमर्सिबल पंप
लगवाये जाने लगे जो हवा के प्रेशर से और ज्यादा तेज पानी फेंकते हैं।
नगर पालिका ने शहर में ढेरों मिनी
ट्यूबवेल बोरिंग करवा दी है,
जिससे किसी को पानी की दिक्कत न हो... इनकी पंपों की जिम्मेदारी भी आसपास रहने
वालों के पास है।
तो अब शहर की सूरतेहाल यह है कि
पानी कितना कीमती है, इसे
जाने बिना लोग मोटर ऑन करके छोड़ देते हैं और आप जगह-जगह धड़ल्ले से बहती टंकियां
देख सकते हैं... मिनी पंप भी अपनी मर्जी से लोग ऑन करके घंटों छोड़ देते हैं, यहां तक कि
पाइपलाईन भी इस प्रेशर को झेल न पाने के कारण कई जगह से फट जाती है और घंटों यूँ
ही पानी बहता रहता है।
जरूरत एक बाल्टी की होती है तो
ताजे और ठंडे पानी के चक्कर में बहाया दस बाल्टी जाता है।
पाॅश इलाकों के घरों में नौकर
(जिन्हें रत्ती भर भी पानी की कीमत पता नहीं होती) रोज गाड़ियों को धोने, द्वार धोने और
सामने की सड़क जमीन तर करने के लिये पानी बहाते हर तरफ दिख जायेंगे।
- नदी को प्रदूषित करती फैक्ट्रियां
एक भयंकर समस्या शहर में मौजूद
बड़ी-बड़ी वे फैक्ट्रियां भी पैदा करती हैं,
जो डाई हाऊस चलाती हैं... जो दिन भर सूत-धागा रंगने के लिये पानी जमीन से
खींचा करती हैं और डाई के बाद केमिकल और कलरयुक्त पानी को शहर की इकलौती सराय नदी
में छोड़ती रहती हैं।
आसपास के उन कस्बों में, जहां नदी की
सुविधा नहीं, वहां
कईयों ने तो रिवर्स बोरिंग तक करा रखी है... यानि जमीन से साफ पानी निकाल कर
इस्तेमाल किया गंदा और खतरनाक पानी वापस जमीन में... और यह तो एक शहर का उदाहरण है, कमोबेश हर तरफ
हालात एसे ही लगातार खतरनाक हो रहे हैं।
सोचिये कि पानी जैसे कीमती तत्व को
लेकर हमारी संवेदनशीलता क्या है... भूगर्भीय जल लगातार नीचे जा रहा है और पानी के
दूसरे स्रोत के रूप में काम आने नदी सीतापुर की सरांय से लेकर लखनऊ की गोमती तक
गंदे नाले में तब्दील हो रही हैं और पानी के तीसरे स्रोत वर्षा के जल संचयन की
दिशा में तो अभी कोई ठोस रूपरेखा तक नहीं बनाई गयी।
क्या आप आने वाले पानी रहित कल के
लिये खुद को तैयार पा रहे हैं?
सरकार को छोड़िये... जहां धर्म और जातिवाद राजनीति के मुख्य पहलू हो जायें, वहां सामाजिक
सरोकारों की उम्मीद अतिशियोक्ति ही है... लेकिन झेलना हमें है, हमारी अगली
पीढ़ी को है।
हम खुद क्या कर रहे हैं... बस इसपे
गौर कीजिये। अगर हम ही पानी की इस अंधाधुँध बर्बादी को रोकने का संकल्प लें तो
क्या अपनी नस्लों के लिये हमारा यह योगदान कम होगा?
अपने बारे में नहीं सोच सकते तो अपने बच्चों के बारे में सोचिये, जिन्हें अभी
बड़ा होना है और इस संकट से जूझना है और हो सके तो वक्त रहते विरोध की एक आवाज बन
जाइये ताकि अंधी बहरी सरकारें संज्ञान लें और इस तरह पानी की बर्बादी को
प्रोत्साहित करने वाली सभी चीजों पे सख्ती से रोक लगायें.. वर्ना हमें तो कम
भुगतना है, हमारी
अगली पीढ़ियों को बहुत भुगतना पड़ेगा।
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