मानव विकास यात्रा
होमोसेपियंस अकेली प्रजाति क्यों है
पिछले कई हजार सालों से हम अकेली अपनी प्रजाति
को देखने के इतने आदी हो गये हैं कि हमारे लिये यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि
पृथ्वी पर कभी मनुष्यों की और भी प्रजातियां रहा करती थीं लेकिन पूर्वी अफ्रीका से
होमो सेपियंस नामी जिस प्रजाति का उभार हुआ— उसने अफ्रीका से निकल कर पूरे वैश्विक
पटल पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया और बाकी प्रजातियों का वजूद ही मिट गया।
तब से हम अकेली प्रजाति हैं और बड़े आराम से
शुरुआती मानवों के रूप में मनु शतरूपा,
आदम हव्वा टाईप कल्पना को गढ़ लेते हैं और आंख बंद कर के उन पर यकीन कर लेते
हैं— लेकिन सोचिये कि अगर वे विलुप्त हुई प्रजातियां भी सर्वाइव कर जातीं तो इन
कहानियों का क्या होता।
फिर इन आदिम जोड़ियों की पहचान क्या होती? किस हिसाब से
मरने के बाद वाली कहानियाँ गढ़ी जातीं और पुनर्जन्म की अवधारणा फिर इन प्रजातीय
सीमाओं में बंधी होती या आत्मा सेपियंस से निकल कर डेनिसोवा और उससे निकल कर
नियेंडरथल्स की भी सैर कर रही होती और सभी प्रजातियां क्या एक जैसे ईश्वरीय
कांसेप्ट पर यकीन कर रही होतीं?
बहरहाल अगर हम मानव विकास यात्रा
को ठीक से समझें तो होमो इरेक्टस ने अतीत में सबसे लंबी पारी खेली है और इसका
रिकार्ड तोड़ना हमारे यानि वर्तमान प्रजाति के बस की भी बात नहीं। होमो सेपियंस
डेढ़ लाख साल पहले से सफर शुरु करते हैं और सत्तर हजार साल पहले वे अफ्रीका से
निकल कर धीरे-धीरे विश्व भर में फैल जाते हैं।
और शुरुआती संघर्षों को छोड़ दें तो
जब से कृषि क्रांति हुई और यह प्रजाति संगठित समाजों के रूप में परिपक्व होनी शुरू
हुई तब से अब तक बहुत छोटे अरसे में ही हमने इतनी तरक्की कर ली है कि अगले बस एक
हजार साल में ही हम दो तरह के परिणामों की संभावना पर सिमट कर रह गये हैं कि या तो
हम अपने प्लेनेट को छोड़ कर अंतरिक्ष में विचरने वाली स्पिसीज बन के रह जायेंगे या
यहीं लड़ भिड़ कर, अकाल, भयंकर रूप से
असंतुलित होती पृथ्वी की प्रतिक्रियात्मक आपदाओं या किसी तरह के ग्लोबल संक्रमण का
शिकार हो कर खत्म हो जायेंगे।
हिस्ट्री ऑफ़ ह्युमन |
और हमारी पृथ्वी पर कुल यात्रा दो लाख साल भी न रह पायेगी जबकि होमो
इरेक्टस ने बीस लाख साल लंबी पारी खेली है। हम ठीक-ठीक नहीं जानते कि होमो सेपियंस
के रूप में वर्गीकृत की जाने वाली प्रजाति कब, कहां और कैसे विकसित हुई लेकिन ज्यादातर वैज्ञानिकों की राय
है कि पूर्वी अफ्रीका के कई हिस्सों में डेढ़ लाख साल पहले वे सेपियंस के रूप में
पहचाने वाले वह लोग वजूद में आ चुके थे जो दिखने में लगभग हमारे ही जैसे थे।
ऐसे में जहन में यह सवाल उठना लाजमी है कि अगर हम सेपियंस का उदभव वहां से
ही मानें तो डेढ़ लाख साल में हम कहां से कहां पहुंच गये तो आखिर होमो इरेक्टस बीस
लाख साल तक वजूद में रहने के बावजूद कैसे कोई भी तरक्की न कर पाये— और लाखों साल
के सफर में वे अपनी शुरुआती अवस्था में ही कायम रहे और एक दिन लुप्त हो गये...
आखिर क्या फर्क रहा उनके और हमारे बीच?
इसका कोई क्लियर जवाब किसी के पास नहीं— बस सबकुछ अनुमानों पर ही आधारित
है। हां अगर हम इसे समझना चाहें तो यूँ समझ सकते हैं कि मनुष्यों की सभी
प्रजातियां किसी कपि से इवॉल्व (डार्विन की इवॉल्यूशन थ्योरी) हुई थीं लेकिन उनमें
वे गुण हमेशा बने रहे और वे गुण आज भी सारे जीवों में (मनुष्यों को छोड़ कर)
विद्यमान हैं कि उनका सारा जीवन तीन बिंदुओं के इर्द गिर्द ही चलता है— भोजन, खतरा और
प्रजनन।
भाषा मानव विकास यात्रा में बहुत बाद की चीज है— पर कम्यूनिकेशन के तय
संकेत शुरुआती दौर से हैं और सभी जीवों में पाये जाते हैं। सभी बड़े जीवों के बीच
कम्यूनिकेशन इन्हीं तीन बिंदुओं पर आधारित होता है। मनुष्यों की शुरुआती
प्रजातियां भी इससे मुक्त नहीं थीं। थोड़े क्रूर शब्दों में कहा जाये तो वे जानवरों
से इवाल्व हुए थे और जानवरों जैसा ही जीवन जीते थे।
छोटे-छोटे समूह होते थे (बिना भाषा और परस्पर सहयोग के लिये साझा मिथकों के
अभाव में बड़े समूह नहीं बन सकते) और कोई मुस्तकिल ठिकाना नहीं। भोजन की तलाश में
मारे-मारे फिरना और अपनी सारी ऊर्जा इस खोज में खपा देना। इनमें कोई आज के जैसी
वर्जनायें नहीं होती थीं— यानि एकल पति पत्नी सम्बंध जैसी। कोई किसी के साथ भी सो
सकता था और बच्चों की कोई पैतृक पहचान निश्चित नहीं होती थी— वे समूह की साझा
सम्पत्ति होते थे।
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उन्होंने अपनी पूरी यात्रा इन्हीं तीन बिंदुओं पर सीमित रह कर की और उस दौर
की सभी प्रजातियों (बाद के होमो सेपियंस समेत) ने इसी नियम का पालन किया और उन्हें
आज की तारिख में हम भोजन खोजी या भोजन संग्रह कर्ता के रूप में परिभाषित करते हैं।
कोई भी उपजाऊ घाटी या क्षेत्र पांच सौ के लगभग आदिम मनुष्यों का पेट पाल सकती थी
तो उसी हिसाब से उस क्षेत्र में समूह रहते थे और सदस्यों की संख्या बढ़ जाने पर वे
अलग गुट में बंट जाते थे। यह सब लाखों साल यूँ ही चलता रहा और वैसी कोई तरक्की उन
प्रजातियों ने नहीं की— जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं या जिसे हमने देखा है।
फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि होमो सेपियंस ने पूरी दुनिया पर वर्चस्व स्थापित
कर लिया— बाकी प्रजातियों को खत्म कर दिया और एक तरह से देखा जाये तो सिर्फ दस
हजार सालों में इतनी तूफानी गति से तरक्की कर डाली कि पृथ्वी तो पृथ्वी, इंसान अब
अंतरिक्ष में विचरते दूसरे ग्रहों पर भी बसने के बारे में सोचने लगा है।
इस बात को समझने के लिये एक धारणा यह दी जाती है कि सत्तर हजार साल और तीस
हजार साल पूर्व के पीरियड में सोचने और कम्युनिकेट करने के तरीकों के अविर्भाव को, जिसे हम
संज्ञानात्मक क्रांति या काग्नीटिव रिवॉल्यूशन के नाम से जानते हैं— किसी चीज ने
जन्म दिया जिसके बारे में हम पक्का कुछ नहीं जानते लेकिन एक मान्य सिद्धांत यह है
कि किसी आकस्मिक जेनेटिक म्यूटेशंस ने सेपियंस के दिमाग की अंदरूनी वायरिंग को बदल
दिया और उन्हें अलग ढंग से सोचने,
समझने और भाषा का इस्तेमाल करते हुए कम्युनिनेट करने में सक्षम बना दिया। अब
यह म्यूटेशन सेपियंस के बजाय नियेंडरथल्स के दिमाग में क्यों नहीं हुआ जो सेपियंस
से साईज में बड़ा दिमाग रखते थे— इस बारे में वैज्ञानिकों के पास कोई क्लियर मत
नहीं है।
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होमो इरेक्टस और होमो सेपियंस के बीच तीस हजार साल पहले हुई भाषा क्रांति
और बारह हजार साल पहले हुई कृषि क्रांति ही वह प्रमुख अंतर थे जिन्होंने उनके
मुकाबले हमें इतने कम वक्त में यहां ला खड़ा किया और इस फास्टेस्ट विकास यात्रा का
सबसे भयानक पहलू यह भी है कि मात्र पांच सौ साल पहले हुई वैज्ञानिक क्रांति ने न
सिर्फ हमारे विकास को असीमित गति दी है बल्कि बहुत तेजी से यही क्रांति हमें अपने
या प्लेनेट के अंत की तरफ भी ले जा रही है।
Written by Ashfaq Ahmad
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