मानव विकास यात्रा 2

मानव विकास यात्रा


होमो सेपियंस की कामयाबी

  संज्ञानात्मक क्रांति को अगर हम किनारे भी कर दें तो यह तो निश्चित था कि सेपियंस दक्ष लड़ाके और रणनीतिकार थे, तभी वे पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में बसने वाली सभी प्रजातियों पर अपना वर्चस्व कायम करने में कामयाब रहे थे।

  होमो इरेक्टस बीस लाख साल के सफर के दौरान जो न कर पाये— वह सेपियंस ने तीस हजार साल पहले कर लिया... यानि भाषा का विकास। अपनी बात कहने या दूसरों के बारे में बात करने के लिये उन्होंने बहुत से ध्वनि संकेत विकसित कर लिये और वे उस पोजीशन में पहुंच गये जहां वे कुछ साझा मिथक गढ़ के परस्पर सहयोग की एक नीवं डाल सकते थे। यहीं से छोटी-छोटी मत मान्यताओं, आत्माओं, देवताओं जैसी मिथकीय श्रंखला की शुरुआत हुई।
मानव विकास यात्रा
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  यह छोटे-छोटे समूहों के समाज बनने के लिये कितना जरूरी तत्व था— इसे कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि एक साधारण जीव बुद्धि भोजन, प्रजनन और खतरे के तीन बिंदुओं पर ही सक्रिय रहती है और उनके आपसी संकेत या भाषा बस यहीं तक सीमित रहती है। प्रजनन सम्बंधी संकेतों को अगर छोड़ दें, जो दो विपरीत लिंगी जीवों तक सीमित हो सकते हैं तो भी समूह के बाकी सदस्यों के बीच ज्यादातर कम्यूनिकेशन खतरे और भोजन को ले कर ही होते हैं। यानि वे अपने समूह के सदस्य को यह बता सकते हैं कि वहां खाना है या सावधान, उधर खतरा है— पर यह कम्यूनिकेशन बहुत नाकाफी है।

कम्युनिकेशन का महत्त्व

  कल्पना कीजिये कि एक शेर के इलाके में दूसरा शेर आ जाये— तो वह भाषा के अभाव में उसे अपना प्रतिद्वंद्वी ही समझेगा और सोचेगा कि वह भी उसके खाने वाले इलाके में हिस्सेदारी करने आया है और दोनों में हिंसक झड़प हो जायेगी, जिसमें कोई एक मारा भी जा सकता है— जबकि हो सकता है कि दूसरा शेर बस घूमते हुए बिना किसी मकसद के ही उधर आ निकला हो, लेकिन भाषा के अभाव में यह बताने में वह सक्षम नहीं था।
  अब इसी फ्रेम को उल्टा कीजिये और मान लीजिये कि शेरों ने कम्यूनिकेशन के लिये पूरी भाषा सीख ली है और कई साझा मिथक गढ़ लिये हैं— इंसानी एतबार से यह मिथक धर्म हो सकता है, राज्य/देश हो सकता है या कोई मल्टी नेशनल कंपनी हो सकती है। तो पहला शेर दूसरे शेर से परिचय पूछता है और वह खुद को उसी धर्म, या राज्य या कंपनी से सम्बंधित बताता है जिससे पहला शेर खुद भी सम्बंधित हो तो दोनों के बीच अजनबी होते हुए भी एक आत्मीयता पैदा हो जाती है क्योंकि दोनों एक साझा मिथक से जुड़े हुए हैं और तब हो सकता है कि पहला शेर दूसरे शिकार को दावत दे और दोनों सहभागी की तरह शिकार पर निकल लें।
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  जाहिर है कि जानवर ऐसा नहीं कर सकते, मनुष्यों की बाकी प्रजातियां भी नहीं कर पायीं लेकिन सेपियंस ने यह कमाल कर दिखाया। भाषा ही गॉसिप का आधार बनी... लोग भोजन, प्रजनन और खतरे से इतर समूह के दूसरे लोगों के बारे में बात कर सकते थे। कौन भरोसे के काबिल है कौन नहीं, यह तय कर सकते थे और यह परस्पर गपबाजी और सहयोग छोटे समूहों को बड़े समूहों में बदल सकता था।
  लेकिन एक सामाजिक अनुसंधान के मुताबिक गपशप में बंधे समूह का आकार बस डेढ़ सौ लोगों तक सीमित होता है— यानि ज्यादातर लोग डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों से न तो आत्मीय ढंग से परिचित हो सकते हैं और न ही उनके बारे में गपशप कर सकते हैं तो फिर बड़े समूह कैसे बनें... इसके लिये उन मिथकों की जरूरत महसूस हुई जिनके सहारे दो नितांत अजनबी लोगों के बीच भी परस्पर सहयोग की भावना विकसित हो सके और यूँ उन्होंने अतीत में धर्म, मत-मान्यताओं, प्रकृति की अबूझ शक्तियों में आस्था के रूप में उन मिथकों का गढ़न किया जो भविष्य में राज्य/देश या मल्टीनेशनल कंपनी के रूप में विस्तारित हुए।

बड़े समूहों का जुड़ाव कैसे हुआ

  कल्पना कीजिये कि आप लखनऊ में रहते हैं, घूमने के लिये चेन्नई जाते हैं जहां एकदम अजनबी शख्स से आपकी मुलाकात होती है, आप उसे नोटिस नहीं करते— लेकिन जैसे ही बातों में जाहिर होता है कि वह भी आपकी तरह ही मुसलमान है तो आपमें तत्काल एक आत्मीयता बन जाती है, यहां आप दोनों के बीच मिथक के रूप में 'धर्म' साझा हो रहा है। या आप कंपनी के किसी काम से लंदन जाते हैं और वहां आपको कोई अजनबी आपके जैसा ही मिलता है जिससे बात करते ही आप जान जाते हैं कि वह भी आपकी तरह ही भारतीय है तो फौरन उस नितांत अजनबी से भी आपका आत्मीयता का सम्बंध हो जायेगा— यहां आपके बीच साझा होने वाला मिथक 'राष्ट्र' है।
  या आप हनीमून पे मसूरी जाते हैं जहां आपके बगल में ही ठहरा एक जोड़ा जो आपके लिये नितांत अजनबी है और आम हालात में आप उससे ‘हाय-हैलो’ से आगे जाना पसंद न करते, लेकिन जैसे ही आपको पता चलता है कि वह बंदा भी आपकी ही तरह 'टाटा' कंपनी का एम्पलाई है— फौरन ही आपका उससे परिचय स्थापित हो जाता है और अब आप दोस्तों की तरह ढेर सी बातें कर सकते हैं। यहां आप दोनों के बीच साझा हो सकने वाला मिथक 'कंपनी' है।

  तो इस भाषाई कामयाबी ने जहां हम सेपियंस के बड़े समूहों को नियंत्रित किया वहीं इन साझा मिथकों ने आगे आने वाली दुनिया में अजनबियों के बीच भी समन्वय की एक बुनियाद खड़ी की। आज इंटरनेट के प्रसार ने पूरी दुनिया को एक ग्लोबल विलेज में बदल दिया है और हमारी दूसरों के प्रति समझ को इतना विकसित कर दिया है कि हम दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले नितांत अजनबी शख्स से बिना डरे बात कर सकते हैं— उससे दोस्ती कर सकते हैं लेकिन हमेशा से ही ऐसा नहीं था।
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  अजनबियों के बीच परस्पर सहयोग के लिये जिन बड़े मिथकों ने बड़ी भूमिका निभाई वे निश्चित ही धर्म और राष्ट्र थे। बिना किसी जान पहचान के भी मक्का में हज के लिये, या वेटिकन में या कुंभ में लाखों लोग एक साथ जुट सकते हैं— ठीक इसी तरह एक राष्ट्र सौ करोड़ से ऊपर अजनबियों को भी एक कर सकता है।
  एक मल्टीनेशनल कंपनी भी इस सिलसिले की प्रमुख कड़ी है— जहां हजारों, लाखों लोग भी बिना एक दूसरे को जाने मिलजुल कर परस्पर सहयोग से काम करते हैं। तो सेपियंस के रूप में हमारे सर्वाइवल की दिशा में पहली कामयाबी भाषा ही थी— वह भाषा जिसने हमें उन मिथकों को गढ़ने का मौका दिया जो संसार के दो छोर पर रहने वाले दो अजनबियों को भी एक कर सके।

  जबकि होमो इरेक्टस की अपने पूरे सफर के दौरान उस शेर जैसी स्थिति बनी रही जो अपने इलाके में दिखे दूसरे शेर के बारे में यह नहीं जान सकता था कि वह उसके इलाके में खाना ढूंढने आया है या बस ऐसे ही घूमता हुआ आ निकला है... वह बस उसे अपना प्रतिद्वंद्वी घुसपैठिया समझता है और उसे अपने इलाके से खदेड़ने के लिये अपनी जान की परवाह न करते हुए भी उस पर झपट पड़ता है।

  संभवतः यही कम्युनिकेशन आधारित खूबी सेपियंस के बड़े समूह तैयार करने में मददगार साबित हुई और वे और ज्यादा ताकतवर हो कर दूसरी प्रजातियों का दमन करने में कामयाब रहे जो छोटे छोटे समूहों में बंटी हुई थीं और इस तरह हम अकेली जीवित प्रजाति बचे।


Written by Ashfaq Ahmad

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