स्पेस कम्यूनिकेशन/Space Communication
क्या एलियन हमें सन्देश भेजते हैं
कितना अच्छा लगता है न यह सुनने में कि हमने स्पेस में सिग्नल्स भेजे कि अगर कहीं कोई बुद्धिमान प्रजाति है तो वह उन्हें सुन कर हमसे संपर्क करे। या हमारे वैज्ञानिक पूरी मेहनत से लगे हैं कि दूसरी सिविलाइजेशंस की तरफ से भेजा गया कोई सिग्नल हमारी पकड़ में आ सके और जब तब "वाऊ" या "काॅस्मिक रोअर" की तरफ अपना दिमाग खपाते रहते हैं.. लेकिन क्या वाकई इन सब बातों का कोई मतलब है?
पहले तो यह समझिये कि स्पेस में यह सिग्नल्स वाला कम्यूनिकेशन इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वेव ही है, यानि हम प्रकाश की गति से सिग्नल भेज और रिसीव कर सकते हैं.. लेकिन यह गति कम्यूनिकेशन के लिये कितनी लुल्ल है, इसे कुछ उदाहरणों से समझते हैं।
आपका दोस्त चांद पर है और वहां से कुछ पूछता है तो वो मैसेज एक्चुअल टाईम से 1.3 सेकेंड लेट मिलेगा और आप फौरन जवाब दे देते हैं तो वह जवाब आपके दोस्त को इसी एवरेज में मिलेगा लेकिन उसके लिये यह टाईम ढाई सेकेंड लेट हो जायेगा।
चलिये आपके दोस्त को मंगल पर भेज देते हैं, जब वह पृथ्वी से मैक्जिमम दूरी पर हो और वहां उसके सामने एक खतरनाक एलियन जीव आ जाता है, वह पूछता है कि अब क्या करूँ.. आपको यहाँ वह मैसेज साढ़े बाईंस मिनट बाद मिलेगा और आप बतायेंगे कि बीड़ू, तुझे चलने के लिये जो बैसाखी दी थी, वह एक ऑटोमेटिक गन है, शूट कर दे उसे।
यह मैसेज साढ़े बाईस मिनट बाद मार्स पे पहुंचता है यानि टोटल डिले पैंतालीस मिनट.. तब तक वह एलियन जीव आपके दोस्त को खा पी कर आराम कर रहा होगा।
चलिये थोड़ा दूर चलते हैं.. सबसे नजदीकी हैबिटेबल प्लेनेट प्राॅक्सिमा बी पर नासा एक मानव मिशन भेजता है और एक लंबी यात्रा करने के बाद वे वहां पहुंचते हैं तो पाते हैं कि यह प्लेनेट तो किसी इम्पैक्ट में नष्ट हो गया।
वे नासा को मैसेज भेजते हैं जो यहाँ सवा चार साल बाद मिलता है, फिर नासा का रिप्लाई जाता है कि ब्रो वापस आ जाओ दुखी मन से.. लेकिन रिप्लाई भी सवा चार साल बाद पहुंचता है यानि टोटल डिले साढ़े आठ साल.. तब तक उस दल को परमानेंट खुश हुए भी आठ साल गुजर चुके।
इसके बाद जो दूसरा नजदीकी हैबिटेबल प्लेनेट है ट्रैपिस्ट वन ई, उस तक संदेश पहुंचाने और रिसीव करने का टाईम डिफरेंस अस्सी साल का है यानि चालीस साल अप और चालीस साल डाऊन.. यह सबसे नजदीकी तारामंडलों का हाल है और अपनी गैलेक्सी में ही इतनी दूरी तक यह सिस्टम्स मौजूद हैं कि सिग्नल भेज कर रिप्लाई पाने में लाख साल से ऊपर लग जायेंगे।
फिर सबसे पड़ोसी गैलेक्सी एंड्रोमेडा तक अपना सिग्नल भेजने, उनका रिप्लाई पाने या उनका सिग्नल पाने में लाखों साल का वक्त लग जायेगा.. फिर इन सिग्नल्स का कोई मतलब रह जाता है? या उससे भी पार, उन लाखों करोड़ों गैलेक्सीज में, जहाँ हमसे भी बेहतर जीवन उपलब्ध हो सकता है, इस कम्यूनिकेशन में लगने वाला टाईम कोई उम्मीद बाकी रहने देता है?
फिर यह तो सिग्नल पाने की संभावना हुई, जबकि इन सिग्नल्स के रास्ते में मौजूद बाधायें इनकी स्ट्रेंथ या एनर्जी खत्म कर देते हैं और यह डिस्टार्ट हो जाते हैं.. फिर भी आपको लगता है कि आप सिग्नल भेज या पा सकते हैं? एक स्पेस मिशन की यह सबसे बड़ी बाधा है कि किसी इमर्जेंसी की हालात में सामने वाले क्विक रिस्पांस पा ही नहीं सकते।
इस डिस्टर्बेंस से बचाने के लिये वैज्ञानिक न्यूट्रीनो के माध्यम से कम्यूनिकेशन का विकल्प ढूँढने की कोशिश में हैं क्योंकि न्यूट्रीनो बिना अपनी स्पीड और स्ट्रेंथ गंवाये हर ऑब्जेक्ट से पार हो जाते हैं लेकिन फिलहाल अभी तक इस दिशा में कोई कामयाबी तो नहीं मिली।
अब सोचिये कि आपसे पचास हजार प्रकाशवर्ष दूर से भेजा गया कोई सिग्नल आपने डिटेक्ट कर भी लिया, उसने आपको कोई उम्मीद भी दे दी कि वे पृथ्वी पर आना चाहते हैं, लेकिन जो चीज पचास हजार साल पहले भेजी गयी थी, उसका अब आपके लिये मतलब ही क्या है?
इतने टाईम में तो उस ग्रह का पता नहीं क्या हो चुका हो। फिर भी आप उन्हें बुलाने के लिये उसका रिप्लाई भेजते हैं जो वहां वालों को पचास हजार साल बाद मिलेगा.. तो उनके लिये भी उसका क्या मतलब रहा? मान लीजिये वे फिर भी बुलावे पर चल देते हैं तो वे मान लीजिये किसी जादू से चार दिन में आ भी जायें तो इस बीच टाईम गैप एक लाख साल का होगा.. तब तक तो शायद हम खत्म हो चुके हों।
इस सिलसिले में एक अकेली उम्मीद यही है कि आपको ऐसे किसी प्लेनेट का पक्का पता हो कि वहां कोई एडवांस सिविलाइजेशन है और वहां तक आप कोई वर्महोल क्रियेट कर पायें तो यह सिग्नल्स त्वरित गति से भेजे जा सकते हैं.. लेकिन ऐसे प्लेनेट्स का पता लगाना कि जिन पर कोई इंटेलिजेंट सोसायटी हो.. सिग्नल्स भेजने से ज्यादा मुश्किल है।
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