पुस्तक समीक्षा: द ब्लडी कैसल

 


द ब्लडी कैसल 

हमने बिग बाॅस देखा है, जहां एक घर होता है, कई कंटेस्टेंट्स होते हैं और उन्हें लगातार फिक्स कैमरों के ज़रिये नज़र में रखते हैं, उन्हें बीच-बीच में टास्क दिये जाते ररहते हैं और फिर उनके मुख्य मोमेंट्स को एक डेढ़ घंटे के एपिसोड में समेट कर टीवी पर परोस दिया जाता है कि दर्शक उन्हें देखें, जज करें और उनके बिहाफ में वोट करें। जो ज्यादा वोट पायेगा, वह विनर होगा। यह शायद एक इंग्लिश शो बिग ब्रदर का हिंदी अडाॅप्शन था, जो अब कई देशों में देखा जाता है।
अगर इस परिकल्पना को थोड़ा और ब्राड करते हुए इसकी थीम बदल दी जाये तो? मतलब कुछ ऐसा कि इसे हाॅरर रियलिटी शो में कनवर्ट कर दिया जाये, कंटेस्टेंट्स को एक अलग-थलग जगह पर पहुंचा दिया जाये और उन्हें हर तरह की छूट दे दी जाये कि वे जो चाहें करें, मसलन रेप से ले कर मर्डर तक। किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं और कोई टास्क नहीं। प्रोग्राम टीम अपनी तरफ़ से बस इतना करेगी कि वह इंसान और तकनीक के जरिये अपने तरीके से उन्हें डराने की कोशिश करेगी।
और इस बीच उनके हर मोमेंट को न सिर्फ अनगिनत फिक्स कैमरों, बल्कि ड्रोन कैमरों तक से फिल्माया जायेगा और उस दिन भर के मटेरियल से मतलब भर का कंटेंट निकाल कर ओटीटी पर डाला जाये, जहां किसी तरह की सेंसरशिप लागू नहीं होती और प्रतिभागियों के बीच के सेक्स और हिंसा तक के पलों को पूरी निर्ममता से परोसा जायेगा। ओटीटी और डार्क वेब के दर्शक उन्हें देखेंगे, उनके लिये वोट करेंगे और उन पर सट्टा लगायेंगे, जिससे अंत में एक विनर चुना जायेगा जो डर का सबसे बेहतर ढंग से सामना करेगा।
यह किताब द ब्लडी कैसल इसी परिकल्पना को पन्नों पर उतारती है। डार्क वेब पर इस तरह के लाईव मर्डर वाले कांटेस्ट तक होते रहते हैं, जिस पर कुछ हालिवुड मूवीज भी बन चुकी हैं, लेकिन एक प्रापर हाॅरर रियलिटी शो जैसा अभी तक कुछ नहीं दिखाया गया है तो कह सकते हैं कि एक तरह से नया आइडिया है। सवाल यह था कि भला वैज्ञानिक सोच के तार्किक लोग भला भूत-प्रेत जैसी चीजों से कैसे डराये जा सकते हैं और वह भी तब जब उन्हें उस जगह पर भेजने से पहले एक्सपर्ट के जरिये उनकी काउंसिलिंग कराई गई हो और उन्हें यक़ीन दिलाया गया हो कि ऐसी कोई पारलौकिक शक्तियां या गतिविधियां असल में हमारा भ्रम भर होती हैं।
लेकिन फिर हम देखते हैं कि कैसे प्रोग्राम टीम उन कंटेस्टेंट्स के दिमाग़ों से खेलना शुरु करती है और वे सबकुछ जानते समझते हुए भी न सिर्फ डर का शिकार होते हैं बल्कि मारे भी जाते हैं। यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि जब कहानी इस खास प्वाइंट पर पहुंचेगी तो लेखक के मुस्लिम बैकग्राउंड से होने के चलते आपको यह भ्रम हो सकता है कि शायद लेखक एक केस के नाम पर जानबूझकर मुस्लिम कम्यूनिटी को विक्टिमाइज करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि जिस केस का जिक्र कहानी में लिया गया है, वह कल्पना नहीं बल्कि वास्तविक ही था।
पर जब आप कहानी के आखिरी पड़ाव पर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि असल में वह प्वाइंट उन कंटेस्टेंट्स को डराने की राह में एक की-फैक्टर था और सारी कहानी उसी प्वाइंट के इर्द-गिर्द रख कर बुनी गई थी, जबकि उस थीम को खड़ा करने वाले को उस केस या उस केस के शिकार लोगों से कोई मतलब नहीं था, उसने तो बस इस केस का एक अनोखा इस्तेमाल किया था, जिस पर इस सारे प्रोग्राम का दारोमदार था।
तो अंतिम पृष्ठ तक पहुंचने से पहले कोई धारणा बनाने से बचें। कुछ लोगों को ऊपरी तौर पर कहानी गुमनाम या माइंड हंटर से मिलती लग सकती है लेकिन ऐसा है नहीं। गुमनाम की तरह टापू होना सिमिलर हो सकता है लेकिन इस कहानी में वह लोकेशन इतनी इम्पोर्टेंट नहीं थी, कोई भी जगह ली जा सकती थी। माइड हंटर में कोई इंसान ही शिकार कर रहा था साथ के लोगों का, जबकि इसमें कोई बदला नहीं था और न ही कोई इंसान था लोगों के मरने के पीछे। तो कुछ जाहिरी समानताओं के दम पर उनसे मिलता-जुलता कहना ज्यादती है। इतनी निर्ममता से देखेंगे तो अब तक हर कहानी कही जा चुकी है और लोग बस अलग-अलग ट्रीटमेंट के सहारे उन्हीं को दोहरा रहे हैं। फिर तो सारी कहानियां बेमतलब हो जायेंगी।
कहानी एक ऐसे विचार को आगे बढ़ाती है, जो अभी नहीं तो दो चार साल बाद हमें ओटीटी पर वाकई में देखने को मिल सकता है, भले वह हाॅरर जाॅनर में न रखा जाये। साइक्लोजी के ज़रिये कैसे लोगों के दिमाग़ से खेला जा सकता है, यह कहानी बड़ी बारीकी से इस बात को स्थापित करती है। किताब का मूल्य 250 है जो इसके 250 पृष्ठों के अनुकूल है, लेकिन मेरे हिसाब से इसे थोड़ा और कम होना चाहिये था।

Written by Himani Pundir on Facebook

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