जाति, वंशवाद, अवसरवादिता की राजनीतिक रबड़ी
जाति, वंशवाद, अवसरवादिता की राजनीतिक रबड़ी
कल के भाजपा - लोजपा गठबंधन ने एक बार फिर नैतिकता और शुचिता के पैरोकारों को धता बताते हुए एक बात तो साबित कर दी कि राजनीति में नैतिकता, शुचिता, विचारधारा जैसे शब्द सिर्फ मंच और टीवी पर बोल कर लोगों को उल्लू बनाने के लिए होते हैं वर्ना हकीकत में अवसरवादिता ही राजनीति का एकमात्र शाश्वत सत्य है।यह अवसरवादिता नहीं तो और क्या है कि जो पासवान कभी मोदी के नाम पर एन डी ए छोड़ कर चले गए थे और जो सिर्फ चार दिन पहले 'इंडियन-एक्सप्रेस' को दिए इंटरव्यू में बीजेपी और मोदी को बुरी तरह कोसते हुए दिखायी देते हैं उन्हें सिर्फ चार दिन में भाजपा साफ़ सुथरी दिखायी देने लगती है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से मोदी को मिली वो क्लीन चिट दिखायी देने लगती है जो अब तक बुढ़ापे में आँखों पर जमी चर्बी के कारण नहीं दिख रही थी लेकिन उनके विचारों से अवगत हो कर बीजेपी वालों ने नए सिरे से धो मांज कर उन्हें थोड़े नज़दीक से दिखायी तो दिख गयी। उन्हें भी और उनके शहज़ादे को भी।
यह
अवसरवादिता नहीं तो
और क्या है
कि जो मोदी
देश भर में
वंशवाद के खिलाफ
ज़हर उगलते नज़र
आते हैं, उसे
ख़त्म कर डालने
का संकल्प दिखाते
हैं , उन्हें ना
बिहार में पासवानों
का वंशवाद दिखता
है ना पंजाब
में बादलों का
और न महारास्ट्र
में ठाकरे कंपनी
का। वह खुद
को और अपनी
पार्टी को जाति-धर्म से
ऊपर बताते हैं,
जातियों की राजनीति
करने वाली सपा
बसपा पर भाले
बरछी चलाते हैं
लेकिन जाति की
राजनीतिक ठेकेदारी करने वाले
पासवान और उदितराज
उन्हें प्रिय हो जाते
हैं और कोई
आश्चर्य नहीं कि
चुनाव बाद बसपा
भी पहले की
तरह साथ आना
चाहे तो उसकी
भी जातीयता आधारित
राजनीति पर भी
भाजपा की स्वीकृति
की मुहर लगने
में कुछ ही
मिनट लगें।
असल
में चाहे मंचों
से बेरोक-टोक
फेका-फेकी करने
वाले मोदी हों
या झाड़ू वाली
पार्टी के कोई
चाटुकार कवि … यह जिस
वंशवाद का रोना
रोते हैं
वह हर तरह
के समाज में
संस्कृति का एक
स्वीकार्य हिस्सा है। महाराज दशरथ भी
अपनी सत्ता अपने
पुत्रों को सौंपते
हैं और हस्तिनापुर
कि सत्ता भी
कुरु वंशियों के
हाथ में ही
रहती है, अकबर
से लेकर बहादुर
शाह ज़फर सत्ता
मुग़लों के हाथ
में ही रहती
है -- यह वंशवाद
नहीं है? हर
बिज़नेस मैन की
ख्वाहिश होती है
कि उसका बेटा उसका
कारोबार सम्भाले, डाक्टर का
बेटा डाक्टर बनता
है, इंजीनियर का
बेटा इंजीनियर, यह
वंशवाद नहीं है?
बल्कि देखा जाये
तो राजनीति ही
अकेली वो फील्ड
है जहाँ सत्ता
ट्रांसफर नहीं होती
बल्कि हर किसी
को जनता के
बीच जाकर अपने
विधायक या सांसद
होने की स्वीकृति
लेनी पड़ती है।
जब
'आप' के झाड़ूछाप
'कवि' अमेठी पहुँच
कर नारा लगते
हैं कि मैं
वंशवाद ख़त्म करने
आया हूँ तो
वह यह भूल
जाते हैं कि
अमेठी में कोई
सिंहासन नहीं रखा
था जिस पर
गांधी परिवार ने
राहुल गांधी को
बिठा दिया और
न अमेठी कोई
चम्बल का बीहड़
है कि कांग्रेस
के बन्दूक धारी
डाकुओं ने जबरन
उनका राज्याभिषेक करा
दिया। राहुल गांधी
ने बाकायदा चुनाव
लड़ा और अमेठी
के लोगों से
अपनी संसद सदस्य्ता
की स्वीकृति ली।
क्या राहुल गांधी
या अखिलेश यादव
को सिर्फ इसलिए
चुनाव नहीं लड़ना
चाहिए कि उनके
पिता राजनीति में
थे या हैं। लोकतंत्र
है -- हर कोई
चुनाव लड़ सकता
है और जनता
वोट दे तो
सांसद या विधायक
बन्ने का हक़
रखता है तो
राहुल गांधी यह
हक़ आखिर वंशवाद
कैसे हो जाता
है ?
टी-स्टाल वाले मीडिया
के बनाये प्रधानमंत्री
हों या कभी
उनकी ही शान
में कवितायेँ पढ़ने
वाले कवि या
और भी जो
टीवी और रैली
के मंचों से
वंशवाद के खिलाफ
आग उगलने वाले
लोग हैं उन्हें
राहुल गांधी का
वंशवाद नज़र आता
है लेकिन उन्हें
तब वंशवाद नहीं
नज़र आता जब
बीजू पटनायक की
कुर्सी नवीन पटनायक
सँभालते हैं, जब
मुलायम और करूणानिधि
अपने बेटों को
ही नहीं आगे
करते बल्कि घर
खानदान के और
लोगों को भी
राजनीति में ले
आते हैं, जब
लालू यादय, राम
विलास पासवान, अजीत
चौधरी, मुफ़्ती सईद, फारूख
अब्दुल्ला अपने
बेटों को आगे
करते हैं, एन टी
रामाराव की सत्ता
उनके दामाद चन्द्र
बाबू के हाथ
लगती है तो
राजशेखर रेड्डी की गद्दी
उनके सुपुत्र जगन
रेड्डी सँभालते हैं।
वंशवाद
पर सबसे आक्रामक
दिखने वाले मोदी
को यह वंशवाद
राहुल गांधी में
तो नज़र आता
है लेकिन अपने
साथ खड़े प्रकाश
बादल-सुखबीर बादल
में वो नहीं
दिखता, दिवंगत बाल ठाकरे-उद्धव ठाकरे में
वह नहीं दिखता।
वह राहुल गांधी
को शहज़ादा
बुलाते हैं लेकिन
अपने साथ खड़े
शहज़ादे वरुण गांधी
और शहज़ादी वसुंधरा
राजे नहीं दिखती,
उन्हें वंशवाद तब भी
नहीं दिखता जब
राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह,
लालजी टंडन जैसे
उनके नेता अपने
बेटों के लिए
टिकट मांगते और
उन्हें चुनाव लड़वाते हैं।
वंशवाद
पर हो-हल्ला
मचाने वाले लोगों की एक
ही तकलीफ समझ
में आती है
कि नेहरू से
इंदिरा और राजीव
से राहुल तक
चार पीढ़ियों का
वंशवाद हो गया
लेकिन देश के
बाकी नेताओं के
पास दो ही
पीढ़ियों का वंशवाद
है , लेकिन अब
यह तो उन
नेताओं के बाप-दादाओं-परदादाओं की
गलती है कि
वह क्यों नहीं
चुनाव लड़े, क्यों
नहीं नेता बने।
बहरहाल,
ऐसे सभी लोगों
को मेरी सलाह
है रोज़ सब्र
का नियमित सेवन
करें क्योंकि राहुल
गांधी ने शादी
नहीं की तो
हो सकता है
के गांधी परिवार
का वंशवाद उन्हीं
तक सीमित रह
जाये लेकिन वंशवाद
के बाकि जो
ध्वज-वाहक हैं
उन्होंने की है
और जो बाकी
हैं वह करेंगे
भी तो उम्मीद
कर सकते हैं
कि वो पीढ़ियों
तक इस देश
में इस वंशवादी
व्यवस्था को कायम
रखेंगे और लोगो
की गांधी परिवार
से वंशवाद की
शिकायत ख़त्म हो जायेगी।
Ashfaq Ahmad
Ashfaq Ahmad
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