तीसरे मोर्चे का जिन्न



तीसरे मोर्चे का जिन्न


देखा जाये तो 2 मार्च को लखनऊ में हुई मोदी की रैली में ऐसा नया कुछ नहीं था जिस पर खास ध्यान दिया जाये, सिवाय इसके कि उनकी बातों में तीसरे मोर्चे को लेकर उनकी चिंता झलकी। यह चिंता सिर्फ उन्हें नहीं बल्कि उनकी स्पांसर शिप पर हज़ारों करोड़ लुटाने वाले अम्बानी और वालमार्ट जैसे कारोबारियों को भी होगी, पर कारोबार तो एक किस्म का जुआ ही है और जुए में हार की रिस्क तो रहती ही है। हार गए तो भी खर्च किये पैसों का बिल दिखा कर भाजपा पर दबाव तो बना ही सकते हैं कि अब आगे वो आर्थिक सुधारों, इनसे जुड़े मुद्दों, या एफ डी आई जैसे मसलों पर कोई विरोध करे।   

जिस धुआंधार तरीके से मोदी का प्रमोशन और मार्केटिंग की जा रही है उससे देश की जनता पर इतना प्रभाव तो पड़ा है कि कोई अनाड़ी विश्लेषक भी बता सकता है कि भाजपा की सीटों की संख्या बढ़ेगी, मगर कितनी ... बीजेपी देश के २८ राज्यों में से सिर्फ १०-११ राज्यों में ही प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराती है और ऐसे में कोई यह मान ले कि उसकी सीटें २५० तक पहुँच जाएंगी तो यह उसका अति-उत्साही आकलन ही माना जायेगा। रहे उसके सहयोगी तो उनमे भी अकालियों को छोड़ कर सब नाम के ही हैं।  इंडियन जस्टिस पार्टी टाइप के जो छोटे दल हैं, वह सिर्फ दलों की संख्या में ही इजाफा कर सकते हैं,सीटों में नहीं। राम विलास पासवान सौदेबाजी में भले सात सीटें पा गए लेकिन दो से ज्यादा जीतने की उम्मीद कहीं से नहीं। शिवसेना, मनसे की वजह से लगातार कमज़ोर हुई है और अकेले बादल पिता-पुत्र तो एन डी को सारा पंजाब दिलाने से रहे।  ऐसे में मोदी और संघ दोनों को पता है कि सरकार बनाने के लिए जो भी करना है उसे खुद करना है और तीसरे मोर्चे के नाम पर बड़े और प्रभावी उपस्थिति वाले दल अगर अलग पंचायत बना कर बैठ गए तो एन डी ए की ज़रूरी बहुमत जुटाने की मुहिम चारों खाने चित हो जायेगी।

यह तीसरा मोर्चा भी अजीब है -- एसा लगता है जैसे कोई बोतल में बंद जिन्न है जो आम चुनाव के वक़्त जाग जाता है।  इसमें शामिल दल ये अच्छी तरह समझते हैं कि तीसरा मोर्चा तभी अस्तित्व में सकता है जब कांग्रेस इतनी कमज़ोर हो जाये कि  सौ के अंदर सिमट जाये और इसकी सम्भावना सिर्फ २०-२५ % ही रहती है -- लेकिन फिर भी यह दल आम चुनाव के वक़्त तीसरे मोर्चे के नाम पर इकट्ठे होते हैं तो सिर्फ इसलिए कि इनकी प्रासंगिकता बनी रहे, वर्ना कहीं ऐसा हो कि केंद्र का चुनाव है और देश के ज्यादातर मतदाता दो राष्ट्रीय पार्टियों वाले गठबंधनों में बंट जाएँ और चुनाव द्विदलीय हो कर रह गए तो दिल्ली में इनकी उपयोगिता ही क्या रह जायेगी, इसलिए ज़रूरी है कि हर चुनाव में तीसरे मोर्चे का जिन्न बोतल से बरामद किया जाये और अपने अपने राज्य के लोगों को यह सपना बेचा जाये कि मुलायम भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं, जय ललिता भी, नवीन पटनायक भी और ममता दीदी भी, ताकि उनके वोटर और सपोर्टर उनके साथ ही खड़े रहें कहीं मोदी या राहुल के चक्कर में पाला न बदल लें।

लेकिन इस चुनावी जिन्न का एक रोचक पहलू यह भी है कि जितना यह कांग्रेस-बीजेपी या तमाम बुद्धिजीवी पत्रकारों को अप्रासंगिक लगता है उतना अप्रासंगिक है भी नहीं। असल में इसके होने या होने का का रिश्ता फ़िलहाल बीजेपी से कहीं भी नहीं लेकिन कांग्रेस के मज़बूत या कमज़ोर होने से ज़रूर है। अगर कांग्रेस मज़बूत रहती है और जैसे तैसे १५० से २०० सीट निकाल लेती है तो तीसरे मोर्चे का जिन्न परिणाम डिक्लेयर होते ही वापस बोतल में चला जायेगा और साम्प्रदायिकता बनाम धर्म-निरपेक्षता के नाम पर इस मोर्चे के दल ही अपने मनमाफिक सौदों के हिसाब से कांग्रेस के पीछे इकट्ठे हो जायेंगे, जैसा २००४ या २००९ के चुनाव परिणाम के बाद हुआ। फिर बीजेपी कितना भी अच्छा प्रदर्शन कर ले ( उसके विस्तार को देखते हुए यह सम्भव नहीं कि वह २५० सीटें जीत लेगी ) -- उसे विपक्ष की कुर्सियां ही मिलेंगी।
जबकि अगर कांग्रेस इतनी कमज़ोर रहती है कि १०० में सिमट जाये तो तीसरे मोर्चे का जिन्न पूरे शबाब पर जायेगा , उस स्थिति में भाजपा अपने सहयोगियों के साथ मिल कर २२० के आंकड़े पर भी खड़ी हो तो भी उसकी और कांग्रेस की सीटों की संख्या ३२० हो पायेगी और बाकि २२३ सीटें तीसरे मोर्चे और अदर पार्टियों के पास रहेंगी।

तब भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस तीसरे मोर्चे को को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा देगी जैसा वह पहले भी कर चुकी है ,ऐसी स्थिति में उसके और बीजेपी के साथ खड़े दल भी सौदेबाज़ी के साथ उधर ही खिसक जायेंगे। अभी प्रधानमंत्री पद को लेकर तीसरे मोर्चे के घटक दलों में मतभेद हो सकते हैं लेकिन तब इंद्र कुमार गुजराल टाइप के मजबूर प्रधानमंत्री का कोई विकल्प तलाश कर ही लिया जायेगा।

हलाकि ऐसा नहीं है कि इस तमाशे में बीजेपी के लिए कोई सम्भावना नहीं , अगर कांग्रेस १२० से १५० तक रह जाती है और एन डी का आंकड़ा भी २२० तक रहता है तो तीसरे मोर्चे की सम्भावनाएं झाग की तरह बैठ जाएँगी और तब मोर्चे में शामिल जय ललिता, नवीन पटनायक और ममता मोर्चे को वापस बोतल में बंद करके अपने मनमाफिक सौदों के आधार पर एक बार फिर एन डी के साथ खड़े दिखाई देंगे जैसा वह पहले भी कर चुके हैं।

Ashfaq Ahmad

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