मानव विकास यात्रा फाईनल
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होमोसेपियंस का आर्थिकीकरण
समाज तीन मुख्य व्यवस्थाओं पर पलते
रहे हैं.. धार्मिक, आर्थिक
और राजनीतिक। सेपियंस ने जब दरबदरी छोड़ स्थाई बस्तियां बसानी शुरू की थीं तो
उन्हें परस्पर सहयोग के लिये धार्मिक व्यवस्था की जरूरत पड़ी थी और जब एक स्थाई
बसावट के साथ छोटे छोटे समाजों का खाका खिंचा तो इसके बेहतर संचालन के लिये आर्थिक
व्यवस्था की आवश्यकता महसूस हुई और जब वे इन दोनों व्यवस्थाओं को अपना चुके तब
सामूहिक रूप से बड़े समाजों के संचालन के लिये राजनीतिक व्यवस्था की जरूरत महसूस
हुई।
छोटे समाजों ने राजकीय व्यवस्था को
आकार दिया और इन व्यवस्थाओं को मिलाकर साम्राज्य बना। साम्राज्य एक राजनैतिक
व्यवस्था है जिसका मतलब ही ऐसे अनेकों समाज पर स्वीकार्य शासन है, जिनकी अलग
पहचान, संस्कृति
और स्वतंत्र अधिकार क्षेत्र होता है.. लेकिन इस व्यवस्था के साइड इफेक्ट कालांतर
में उन हजारों छोटी-छोटी संस्कृतियों के लिये खतरनाक साबित हुई जो बड़े साम्राज्यों
द्वारा लील ली गयीं। पिछले ढाई हजार साल से दुनिया का हर नागरिक किसी न किसी
साम्राज्य के ही आधीन रहा है।
रोमन साम्राज्य ने नूमान्तियाई, अवेर्नियाई, हेल्विशियाई, सामनाईट, ल्युसेंटियाई, उम्ब्रियाई, इस्ट्राकेनियन
जैसे सैकड़ों समाजों को लील लिया जिनके लोग स्वंय को उन समाजों के नागरिकों के रूप
में पहचानते रहे थे, अपनी
भाषा बोलते थे, अपने
देवताओं की पूजा करते थे,
उनकी लोककथायें किवदंतियां सुनाया करते थे.. उनके वंशज रोमनों के आधीन रह कर
उनकी तरह सोचने, बोलने
और उपासनायें करने लगे थे। यही काम सातवीं सदी से दसवीं सदी के बीच इस्लामिक
साम्राज्य ने किया था जिसने समूचे खाड़ी क्षेत्र की संस्कृतियों को लील लिया था।
पहली संहिता की उत्पत्ति
अब साम्राज्य बनने शुरू हुए तो उस
व्यवस्था की भी जरूरत महसूस हुई जिसे हम कानूनी नियमावली के रूप में जानते हैं..
यानि एक राजकीय व्यवस्था द्वारा अपराधों का निर्धारण और उस अनुपात में दिया जाने
वाला दंड। इस तरह की जो पहली संहिता इतिहास में दर्ज हुई उसे हम कोड ऑफ हम्मूराबी
के रूप में जानते हैं जो 1776 ईसा
पूर्व बेबीलोन में अस्तित्व में आई थी। बेबीलोन मेसोपोटामिया का सबसे बड़ा नगर और
उस वक्त का सबसे बड़ा साम्राज्य था.. जो मेसोपोटामिया के ज्यादातर हिस्सों, आज के ईराक, सीरिया और ईरान
के कुछ हिस्सों तक फैला था। हम्मूराबी एक राजा के रूप में अमर ही उस विधि संहिता
की वजह से हुआ।
बहुत से मुसलमान आपको यह कहते हुए
मिल जायेंगे कि शरा के रूप में उन्होंने किसी समाज में विधि व्यवस्था शुरू की थी
लेकिन यह सच नहीं। शरा कोड ऑफ हम्मूराबी का ही परिष्कृत रूप था, जिसे बाद के
यहूदी और इसाई समाजों ने भी उसी तरह कुछ परिवर्तनों के साथ अपनाया हुआ था। हालाँकि
योरप और पश्चिमी एशिया के उन समाजों से हजारों किलोमीटर दूर भारत में भी मनुस्मृति
के रूप में विधि संहिता मौजूद थी लेकिन चूँकि उसका कोई काल निर्धारित नहीं तो
विश्व पटल पर उसे इस तरह का क्रेडिट नहीं दिया जाता, लेकिन इतना तो तय है कि यह भी शरा से पहले की ही है।
बहरहाल, अब अगर हम
साम्राज्यों पर फोकस करें तो इस तरह का पहला साम्राज्य 2250 ईसा पूर्व
सारगोन द ग्रेट का अक्कादियाई साम्राज्य था जो मेसोपोटामिया के किश नाम के नगर से
शुरू हुआ था। सारगोन न सिर्फ मेसोपोटामियाई नगर/राज्यों को जीतने में कामयाब रहा
था, बल्कि
उसकी सत्ता का विस्तार भूमध्यसागर से ले कर फारस की खाड़ी तक रहा था और वह इतिहास का
पहला ऐसा शासक था जो यह दावा करता था कि उसने सारी दुनिया को जीत लिया है।
साम्राज्यों की उत्पत्ति
सारगौन ने साम्राज्यवाद की ऐसी
अवधारणा स्थापित की, कि
अगले 1700 सालों
तक असीरियाई, बेबीलोनियाई
और हिटाईट राजा सारगोन के एक रोल माॅडल के रूप में अपनाते रहे और वह भी विश्व
विजेता होने का दावा करते रहे। इस परंपरा को 550 ईसा पूर्व सायरस द ग्रेट ने और भी प्रभावशाली ढंग से आगे
बढ़ाया और साम्राज्यवाद का यह गुरूमंत्र दिया कि हम आपको आपके हित के लिये जीत रहे
हैं।
सारी दुनिया के बाशिन्दों की खातिर
सारी दुनिया पर हुकूमत करने का ख्याल चौंकाने वाला था लेकिन सायरस के समय से ही यह
साम्राज्यवादी धारा और भी समावेशी और व्यापक होती गयी, बाद में
अलेक्जेंडर द ग्रेट, हेलेनिस्टियाई
राजाओं, रोमन
सम्राटों, मुस्लिम
खलीफाओं, हिंदुस्तानी
राजवंशों से होती सोवियत प्रधानों और अमेरिकी राष्ट्रपतियों तक पहुंची। इनके साथ
ही इससे इतर वे साम्राज्य भी लंबे समय तक रहे जो लोकतांत्रिक या कम से कम
गणतांत्रिक थे, मसलन
अंग्रेजी साम्राज्य जो इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य था, या डच, फ्रांसीसी, बेल्जियाई और
पूर्व के अमेरिकी साम्राज्यों के साथ ही नोवगोराड, रोम,
कार्थेज, एथेंस
के पूर्व आधुनिक साम्राज्य।
सायरस की तर्ज की साम्राज्यवादी
विचारधारा अपने फारसी माॅडल से अलग स्वतंत्र रूप से मध्य अमेरिका, एडियाई और चीन
में भी विकसित हुई। चीन के पारम्पारिक राजनैतिक सिद्धांत के मुताबिक स्वर्ग पृथ्वी
की सारी वैध सत्ताओं का स्रोत है,
स्वर्ग की सत्ता शासन के लिये सबसे योग्य व्यक्ति या परिवार को चुनती है और
उन्हें स्वर्ग का शासनादेश प्रदान करती है। संयुक्त चीनी साम्राज्य के पहले सम्राट
चिंग शी हुआंग्दी का दावा था कि विश्व की छहों दिशाओं में मौजूद हर चीज सम्राट की
है।
साम्राज्यों ने जहां बहुत सी छोटी
और बड़ी संस्कृतियों का एकीकरण किया,
वहीं अपनी संस्कृति थोपने की प्रक्रिया भी जारी रखी। इसे खुद अपने देश और खुद
पर अप्लाई करके समझ सकते हैं। आज का भारत साम्राज्यवादी ब्रिटेन की संतान है जहां
अंग्रेजों ने इस उपमहाद्वीप के निवासियों पर हर तरह के जुल्म किये, हत्यायें की
लेकिन उन्होंने आपस में लड़ते रजवाड़ों,
रियासतों को भी एक किया और इतनी जनजातीय विविधता के बावजूद एक साझा राजनैतिक
चेतना को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई।
उन्होंने न्यायप्रणाली की नींव रखी, प्रशासनिक
ढांचे की रचना की, आर्थिक
एकीकरण के संदर्भ में निर्णायक महत्व रखने वाले रेलमार्गों का जाल खड़ा किया। आजाद
होने के बाद भारत ने भी पश्चिमी लोकतंत्र के ब्रिटिश माॅडल को ही अपनाया, अंग्रेजी आज भी
पूरे उपमहाद्वीप की अकेली संपर्क भाषा है। अंग्रेजों के दिये क्रिकेट और चाय का हर
भारतीय दिवाना है.. कितने ऐसे भारतीय होंगे जो अपनी खुद की संस्कृति के नाम पर
अंग्रेजी साम्राज्य की थोपी गयी इन विरासतों को ठुकरा सकें? क्या हम अब
इन्हें या विदेशी कहे जाने वाले मुस्लिम बादशाहों की छोड़ी विरासतों को अपनी ही
संस्कृति के रूप में स्वीकार नहीं कर चुके?
Written by Ashfaq Ahmad
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