चंद्रमा/Moon

 


क्या चाँद पर जीवन संभव है  

चांद हमारे लिये किसी दूसरे तारे से कम अहम नहीं, कुंवारे लोग उसमें अपना महबूब तलाशते हैं और शादी होने के बाद उसका जेंडर चेंज करके उसे अपने बच्चों का मामा बना देते हैं लेकिन हम जिस सोलर सिस्टम में हैं, आइये देखते हैं कि उसमें किसके पास कितने चांद हैं..

बुध तो सूरज के इतने नजदीक और छोटा है कि इसके पास चांद यानि प्राकृतिक उपग्रह होना पाॅसिबल नहीं था.. शुक्र के पास हो सकता था लेकिन नहीं है, यह वैज्ञानिकों के लिये बहुत बड़ी उलझन है।
पृथ्वी के पास एक है और पृथ्वी पर जीवन के संचालन के लिहाज से यह एक ही महत्वपूर्ण है, दो होते तो हमें मौसमों की बहुत ज्यादा मार झेलनी पड़ रही होती.. मंगल के पास दो हैं, जूपिटर के पास 79 हैं, सैटर्न के पास 53 कनफर्म्ड 29 अनकर्फ्म्ड यानि टोटल 82 हैं, यूरेनस के पास 27 और नेप्चून के पास 14.. प्लूटो के पास भी चार-पांच तो हैं ही।
इनमें काबिले जिक्र टाईटन और योरोपा है जिस पर इंसानों के बसने की संभावनायें ढूंढी जाती हैं क्योंकि इनकी कंडीशन्स के हिसाब से सिंगल सेल लाईफ तो यहां होनी लगभग कनफर्म्ड ही है।
सबसे खास हमारे पास अपना चांद है, जिसमें सबकी दिलचस्पी रहती है, यह पृथ्वी के पास कहाँ से आया.. इसे ले कर पहले तो माना गया कि यह कैप्चर्ड प्लेनेड है जो पृथ्वी के साथ ही बना था लेकिन बाद में पृथ्वी की ग्रेविटी में फंस कर इसका उपग्रह बन गया लेकिन बाद में जब इसकी कंपोजीशन की जांच की गयी (चांद की राॅक के एक टुकड़े से जो मून मिशन से लाया गया) तो यह पृथ्वी के काफी सिमिलर निकला, जिससे यह अंदाजा लगाया गया कि यह पृथ्वी का ही हिस्सा है।
इसे लेकर जो मुख्य थ्योरी बनी वह यही थी कि जब यह ग्रह बन रहे थे तब कोई बड़ा पिंड पृथ्वी से टकराया और इसका मटेरियल हवा में उछल गया जिससे पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक रिंग ऑफ फायर बन गयी, जो बाद में असेंबल्ड हो कर चाँद बनी। अब चांद के मास देखते हुए मैथमेटिकल इक्वेशन और सिमूलेशन के माध्यम से उस टकराने वाले पिंड का आकार निकाला गया तो वह मंगल ग्रह के बराबर निकला, जिसे नाम दिया गया "थिया"।
चांद के मास को देखते हुए यह अपने होस्ट प्लेनेट से जिस दूरी पर है, वहां पिंड टायडल लाॅकिंग के शिकार हो जाते हैं.. यानि यह अपने एक्सिस पर इतनी धीमी गति से घूमते हैं कि इनका एक ही हिस्सा हमेशा अपने होस्ट प्लेनेट या स्टार के सामने रहता है। इसी वजह से हमें हमेशा चांद का एक ही हिस्सा दिखाई देता है।
बाद में जब इसके डार्क या फार साईड यानि पीछे वाले हिस्से को देखा गया तो पता चला कि वहां सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे थे, कोई समतल जगह नहीं.. जबकि सामने जो हिस्सा दिखता है उस पर काफी समतल हिस्सा है। जब इसके क्रस्ट की जांच की गयी तो पता चला कि इसके दोनों हिस्सों में काफी फर्क है, यानि सामने का हिस्सा काफी पतला है जबकि पीछे का हिस्सा काफी मोटा।
यही वजह थी कि बाद में जब गैस जायंट्स के अलाइनमेंट्स से उल्काओं की बारिश हुई तो सामने का क्रस्ट जगह-जगह टूट गया और वहां से बहा लावा सतह पर समतलीकरण का साधन बना जबकि पीछे गड्ढे बन कर रह गये। यह गड्ढे पृथ्वी पर भी बने होंगे लेकिन यहां जियालाॅजिकल एक्टिविटीज होती रहती हैं जिससे सतह बदलती रहती है जबकि चांद पर ऐसा कुछ नहीं होता इसलिये वे गड्ढे आज भी देखे जा सकते हैं।
इस बनावट के आधार पर पहले तो माना गया कि रिंग ऑफ फायर से दो चांद बने थे जो बाद में मर्ज हो गये लेकिन इस थ्योरी में दूसरी कमियां थीं तो बाद में जो नयी थ्योरी बनी वह यह थी कि चूंकि शुरू में यह लगातार हजारों साल तक एक धधकती हुई पृथ्वी के सामने झुलसता रहा तो इसकी नियर साईड की सर्फेस झुलस गयी और पतली रह गयी, जबकि फार साईड उस आंच से बची रही तो मोटी हो गयी जैसे होनी चाहिये थी।
वैज्ञानिक अब इसी साईड को अपने स्पेस मिशन्स के लिये लांचिंग पैड की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं क्योंकि वातावरण न होने से टेलिस्कोपिक ऑब्जर्वेशन बढ़िया हो सकता है, ग्रेविटी की कमी से एस्केप विलाॅसिटी की सुविधा मिल सकती है, फिर वहां ईंधन की भी सुविधा है क्योंकि वहां काफी मात्रा में वाटर आईस मौजूद है जिससे ईंधन के तौर पर प्रयोग किया जाने वाला हाइड्रोजन लिया जा सकता है.. खतरा बस काॅस्मिक रेडिएशन का है क्योंकि वहां कोई नेचुरल सुरक्षा नहीं मिलती तो यह ठिकाने उन्हें भूमिगत बनाने होंगे।

क्या चाँद वाकई टूट कर जुड़ा था

अब बात करते हैं एक संभावना की जिस पर अक्सर इधर-उधर चर्चा होती है, कि क्या कभी किसी जादू से इसके दो टुकड़े हुए थे.. तो इसके कोई साइंटिफिक सबूत उपलब्ध नहीं, फिर थ्योरिटकल रूप में भी यह असंभव है कि आप किसी पिंड को स्पेस में दो टुकड़ों में बांट दो तो वे वापस यूं जुड़ जायें कि कोई निशान न बचे।

इसे ऐसे समझें कि जब आप इसे बीच से काटेंगे तो इसका कोर जो भीषण तापमान , प्रेशर और पृथ्वी की ग्रेविटी से इंटरैक्शन के चलते गर्म रहता है.. वह खुले स्पेस के सम्पर्क में आने पर जम कर कठोर हो जायेगा और फिर दो पिंडों का मर्जर तब मुमकिन नहीं रह जाता कि दो बड़े पत्थर वापस जुड़ जायें.. यह चीज तब हो सकती है जब पिंड ही लिक्विड अवस्था में हो।
साथ ही एक अड़चन और है, कि पिंड कागज की तरह नहीं फट सकता, उसकी बनावट में लाखों छोटी बड़ी चट्टानें होती हैं जो पिंड के टूटते ही छिटक जायेंगी और हल्का मटेरियल पृथ्वी की ग्रेविटी की वजह से अंदर की तरफ आकर्षित होगा और पृथ्वी पर बमबारी शुरू हो जायेगी..

दूसरे किसी चमत्कार से जुड़ना संभव मान भी लें तो जुड़ने में हजारों साल का वक्त लगेगा और उसके बाद भी उसकी ज्योग्राफिकल पहचान बाकी रह जायेगी। तो दिल की तसल्ली के लिये मानने को कुछ भी मान सकते हैं लेकिन टेक्निकली यह चीज मुमकिन नहीं।
Written by Ashfaq Ahmad

No comments