पुस्तक समीक्षा: इनफिनिटी द साइकल ऑफ़ सिविलाइज़ेशन
कैसी है इनफिनिटी
एक खूबसूरत ग्रह (ग्रेडिअस) था और उस पर रहने वाले करोड़ों कैथियंस (इंसान), जिनमें ज्यादातर लोग मानते थे उन्हें बेंडौरह या एलाह (ईश्वर) ने बनाया है और उन्होंने इसके लिये क्रिस्टोफर और एडविना (एडम और ईव) के रूप में नर और मादा का एक जोड़ा भेजा, जिससे चल कर इंसानी नस्ल फली फूली।
उस दुनिया में भी इसी पैटर्न पर मान्यता रखने वाले ढेरों धर्म हैं और उनके अपने-अपने पैगम्बर और धर्म प्रवर्तक हैं और ईश्वर सभी कैथियंस के कर्मों को न सिर्फ डिसाईड करते हैं बल्कि उनका लेखा जोखा भी रखते हैं और जब आर्मगेड्डन (कयामत) का वक्त आयेगा तब हर तरफ तबाही होगी और हर कोई मारा जायेगा। फिर यह गोल दुनिया एक मैदाने हश्र में तब्दील कर दी जायेगी जहां कैथियंस को उनके कर्मों के हिसाब से शुबूगा (नर्क) या हैवियन (स्वर्ग) की सजा या इनाम दिया जायेगा।
लेकिन उस दुनिया में भी फ्राईड इरविन (डार्विन) जैसे ढेरों लोग और उनके फाॅलोवर्स मौजूद थे जो इन धार्मिक कथाओं को सिरे से नकारते थे और इवाॅल्यूशन के रूप में वर्तमान तरक्की को क्रमिक विकास का परिणाम बताते थे। उनके पास अपनी बात के संदर्भ में न सिर्फ अकाट्य तर्क थे बल्कि ढेरों फाॅसिल्स और पुरातत्विक प्रमाण मौजूद थे जो बताते थे कि किस तरह कैथियंस धीरे-धीरे तरक्की करते यहाँ तक पहुंचे हैं। वे क्रिस्टोफर और एडविना के रूप में दो लोगों से शुरु हुई इंसानी नस्ल की बात को सिरे से नकारते थे और इस बात से साफ इनकार करते थे कि बेंडोरह या एलाह जैसी कोई शक्ति है जिसने कैथियंस को ग्रेडिअस पर भेजा है।
लेकिन आस्तिक और विज्ञानवादियों के बीच चलते इस सतत संघर्ष के बावजूद कैथियंस की हरकतों से ठीक पृथ्वी की तरह एक बात तो सच साबित होती है कि वे किसी एलियंस की तरह ही अपने ग्रह से रिश्ता बनाना सीख नहीं पाये थे जो यह साबित करता कि वे ग्रेडिअस के मूल प्राणी हैं और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और गलत पर्यावरणीय नीतियों के चलते खुद अपने ग्रह को मौत के मुंह तक पहुंचा देते हैं और धार्मिकों की किताबों में वर्णित वह आर्मगेड्डन सामने आ जाती है जब ग्रह का क्रस्ट टूट जाता है और अंदर का लावा उबल पड़ता है सबकुछ तहस नहस करने के लिये और कयामत आ जाती है। न कोई मैदाने हश्र सजता है और न लोगों को शुबूगा या हैवियन की सजा या इनाम देने कोई बेंडोरह या एलाह प्रकट होता है और सारे लोग मारे जाते हैं।
लेकिन इस आफत से पहले ही एक ऐसा राज रिवील होता है जो दोनों ही विचारधाराओं (आस्तिक-नास्तिक) को सर के बल उलट देता है और जो सच निकल कर सामने आता है, वह उन दोनों विचारधाराओं के बीच का होता है। दोनों ही विचारधाराओं के मानने वाले आधे सही साबित होते हैं तो आधे गलत.. और जो सक्षम थे, उन्होंने इंसानी (कैथियंस भी पृथ्वी वासी इंसानों का ही अंश थे) नस्ल को आगे बढ़ाने का रास्ता खोज लिया था और वे उस रास्ते पर आगे बढ़ गये थे।
पूरी किताब आस्था और अनास्था के परिप्रेक्ष्य में बेहतरीन तर्क-वितर्क को प्रस्तुत करती है और दोनों में से कोई भी पक्ष कहीं से कमजोर नहीं पड़ता लेकिन यह और बात है कि सच कुछ और निकल कर सामने आता है। अब जो सच सामने आता है वह एक पाठक के तौर पर हमें यह सोचने पर जरूर मजबूर करता है कि ग्रेडिअस और कैथियंस के बहाने यह कहानी पृथ्वी और हम इंसानों की तो नहीं? हम इंसानों के साथ भी कहीं कुछ वैसा तो नहीं हुआ जैसा इस किताब में बताया गया है और कहीं वाकई यहां भी हम आस्तिक और नास्तिक दोनों ही गलत दिशा की ओर तो नहीं चल रहे जबकि सच कहीं दोनों के बीच में हो?
बहरहाल किताब जबर्दस्त है और आस्था और तर्क में दिलचस्पी रखने वालों के लिये तो दिमाग की जबर्दस्त खुराक है। लेखक अशफ़ाक़ अहमद हैं, प्रकाशन ग्रेडिअस पब्लिशिंग हाउस है और किताब हिंदी-अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में और पेपरबैक और ईबुक दोनों ही फार्मेट में उपलब्ध है और महंगी भी नहीं बल्कि रीजनेबल प्राईस में है तो जो भी किताबें पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं, वे पढ़ सकते हैं।
Written by Nasihat Hussain
Post a Comment