बबेक खुर्रम दीन

 

कौन थे बबेक  खुर्रम दीन और क्या था उनका धर्म 

मैंने पहले भी लिखा के रचनात्मक विचार कभी नहीं मरते कितना भी मारने की कोशिश हो,मानी और मजदाक को मार दिया गया उनके मानने वालों को क़त्ल कर दिया गया,उनकी किताबों को जला दिया गया मगर कुछ ज़हनों में उनका यह समाज में बराबरी का विचार ख़त्म ना किया जा सका,वह छुप कर ,निजी महफिलों में ,निजी किताबों में इस को ज़िंदा रखे रहे!


लगभग तीन सौ साल बाद यानी आठवीं सदी के मध्य में एक बार फिर यह उभर कर आए," बाबेक खुर्रमदीन" के रूप में!!


खुररमदीन एक सेक्ट था जिस में जरतुष्त और मज़दक के विचार घुले मिले थे, ख़ुश रहना इसका पहला उसूल था इस लिए यह नाम पड़ा!!


इन तीन सौ सालों में ईरान और अरब दुनिया में बहुत फर्क अा चुका था!


इस्लाम का उदय हो चुका था,मुसलमानों की फौजें मुल्क पर मुल्क फतह कर रही थीं!!


उनके शासक खलीफा कहलाते थे... आठवीं सदी तक एक विराट "अरब खिलाफत" का निर्माण हो चुका था !!


अब्बासी ख़िलाफत का दौर था!


यह अटलांटिक महासागर से लेकर भारत और चीन की सरहद तक फैले हुए थे!


इस राज्य की राजधानी सीरिया का शहर दमिश्क था!!


अरबों द्वारा जीते हुए देशों से लूट का माल और हज़ारों जंगी बंदियों का राजधानी की तरफ आने का सिलसिला बना ही रहता था!


लेकिन सारे धन और दासों पर ऊपर के वर्ग का ही क़ब्जा रहता था!


आम लोग और मामूली सिपाही गरीब ही रहे !


दासों से बहुत काम लिए जाते थे,
वह कभी किसान होते कभी सैनिक ,कभी महल बना रहे होते ,कभी सड़क!


जीते हुए देशों के लोगों को भी तरह तरह की ना इंसाफी झेलनी पड़ती थी!

  • आखिर हमारे ग्रह से बाहर ब्रह्माण्ड में कौन कौन सी संभावनायें हैं
    • इस सब का असर यह हुआ के अज़रबैजान जो उस वक़्त ईरान का हिस्सा था ,बगावत की आग भड़क उठी ,इस को शुरू करने वाला था" बबेक खुर्रम दीन"!!


      वह 798 A D में अज़रबैजान में पैदा हुआ था!


      बीस साल उसकी खलीफा के ख़िलाफ़ बगावत चली!


      वह लोग लाल कपड़े पहनते थे इस लिए" सुर्ख पोश" भी कहलाए!


      उन्होंने लाल रंग को खिलाफत के विरूद्ध अपनी बगावत का प्रतीक बनाया!!


      बाबेक की लीडर शिप में बागियों ने ख़लीफा की एक के बाद ऐक पूरी छः फौजों को हरा दिया!
      किसानों ने टैक्स देने से इंकार कर दिया!


      सब का कहना था के ज़मीन सब को बराबरी से दी जाय!


      समाज में समानता हो!


      यह विद्रोह आर्मेनिया और ईरान में फैल गया!
      खलीफा ने बाबेक के सिर के लिए भारी इनाम रखा!


      बगावत को कुचलने के लिए खलीफा को अपनी मुख्य सेना भेजना पड़ी!


      बाबेक के साथ विश्वास घात कर के एक उसी के जानने वाले सामंत ने उसे पकड़ लिया!


      उसे ख़लीफा के सुपुर्द कर दिया गया!


      जिसने उसे घोर तकलीफें दे कर मार डालने की सज़ा दी!


      खलीफा "मोहताशिम"ने उस की लाश खुरासान के हर शहर में कुछ कुछ दिन के लिए लटकवाई यह याद दिलाने के लिए के इंसान ना आज़ाद पैदा हुआ है ना बराबर !!!


      838 A .D में बाबेक शहीद हुआ था ,यह स्टैचू अज़रबैजान में बनवाया गया, बहुत लोग उस को याद करने आज भी वहां जाते हैं!!

      Written by Tasweer Naqv

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