1967 के बाद गाजापट्टी गोलनहाइट्स वेस्टबैंक


गाजापट्टी गोलनहाइट्स वेस्टबैंक की युद्ध के बाद की तस्वीर

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पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि 1948 के युद्ध से अरब- इज़राइल युद्ध की शुरुआत होती है. जून 1948 युद्ध विराम ने ही इजराइल को युद्ध में वापस आने का मौका दे दिया. इजराइल ने सैन्य तैयारी कर खुद को मजबूत स्थिति में खड़ा कर लिया

इस युद्ध में इजराइल की विजय हुई.इसके बाद दोनों पक्षों में एक समझौते के तहत जॉर्डन और इजराइल के बीच सीमा निर्धारण हुआ, इस सीमा रेखा को ‘ग्रीन लाइन’ कहा गया.इसके साथ ही जॉर्डन नदी के पश्चिमी हिस्से पर जिसे ‘वेस्ट बैंक’ कहा जाता है, पर जॉर्डन का कब्ज़ा हो गया, तो वहीं गाजा पट्टी पर मिस्र का कब्ज़ा हो गया

यानी जो हिस्सा फिलिस्तीनियों को मिलना था, उसे मुस्लिम देशों ने बंदरबांट कर लिया.जहां आज जब इस्राइल को एक तरफा घेरा जाता है तब ये सवाल बनता है कि मुस्लिम देश मिस्र और जॉर्डन ने फिलिस्तीनियों के लिए क्या किया हर कोई अपने लिए खेल रहा था। मुस्लिम देशों को भी फिलिस्तीन की नही पड़ी थी। युद्ध के दौरान, जो क्षेत्र जिसके कब्जे में आया, उसने उसे अपना बना लिया
और अब फिलिस्तीनियों के हाथों से वो हिस्सा भी चला गया जो उन्हें यूएन ने दिया था. अरब देशों के इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि करीब 7.5 लाख से अधिक फिलिस्तीनी अपने ही देश में बेघर हो गए.इसके साथ ही शरणार्थी समस्या का संकट दुनिया के सामने आया. लाखों फिलिस्तीनियों को अपना देश, अपनी ही ज़मीन छोड़नी पड़ी

बाद में 11 मई 1949 को संयुक्त राष्ट्र ने भी इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी. इस तरह से उसी दिन इजराइल संयुक्त राष्ट्र का 59वां सदस्य देश बन गया.यहां तक आपने देखा कि मिस्र और जॉर्डन ने अपने हितों के लिए फिलिस्तीन का साथ दिया।

इसके बाद यह समस्या कई सालों तक बनी रही फिलिस्तीन को किसी से कोई मतलब नही था लेकिन 14 मई, 1967 को मिस्र को सूचना मिली कि इजराइल सीरिया वाले हिस्से में अवैध निर्माण कर रहा है. अगले ही दिन मिस्र के शासक जमाल अब्देल नासिर ने सिनाई वाले हिस्से यानी जिस हिस्से से मिस्र और इजराइल दोनों जुड़े हुए थे, की ओर भारी संख्या में सेना की नियुक्ति कर दी

हालांकि वह इजराइल पर हमला करना नहीं चाहते थे. मिस्र की 1948 में इजराइल के हाथों करारी हार हुई थी, बावजूद इसके स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के बाद जमाल अब्देल नासिर पूरे अरब जगत में एक हीरो की तरह उभरे
अपनी फ़ौज की ताकत के अभिमान में मदमस्त नासिर ने सिनाई क्षेत्र से संयुक्त राष्ट्र से उसकी शांति सेना को हटाने का आदेश दे दिया और भारी संख्या में अपनी फौजें इजराइली सीमा पर तैनात कर दीं.इतना ही नहीं नासिर ने लाल सागर में स्थित तिरान जलडमरूमध्य को भी ब्लाॅक कर दिया, जहां से इजराइल के लिए व्यापारिक जहाज़ों का आना-जाना होता था

मिस्र और अरब के लोग नासिर के इस काम को अपनी जीत समझकर जश्न मनाने लगे, लेकिन यह ख़ुशी कुछ ही घंटों में हवा हाे गई.नासिर ने जैसा सोचा था कि इसके बाद इजराइल डरकर सीरिया क्षेत्र में अतिक्रमण बंद कर देगा, लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उलट

इजराइल की मीडिया ने इसे जर्मन के नाज़ियों की तरह यहूदियों पर हुए अत्याचारों की तरह पेश किया। इस घटना ने यहूदियों को यहूदियों पर हुए नरसंहार की याद दिला दी और इसी के साथ पूरे इजराइल में नासिर विरोधी भावनाएं उमड़ पड़ीं

उधर इजराइल की वायुसेना भी संगठित हो चुकी थी और उसने अगली सुबह ही सिनाई प्रायद्वीप में मिस्र की वायुसेना को ध्वस्त कर दिया, जिसे ऑपरेशन फोकस कहा गया.इसके तुरंत बाद जॉर्डन, सीरिया, ईराक अपनी वायु सेनाओं को तैनात करने की तैयारी करने लगे, लेकिन इजराइल ने बिना किसी देरी के उसी दिन तीनों देशों की वायुसेना पर हमला कर उसे भारी क्षति पहुंचाई

इस तरह से मची तबाही के बाद इजराइल ने जॉर्डन के प्रशासन वाले ‘पूर्वी जेरुशलम’ पर अपना अधिकार कर लिया. इस युद्ध के चौथे ही दिन बाद इजराइल ने गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप पर भी अपना अधिकार कर लिया
और 5वें दिन इजराइल ने सीरिया के प्रशासन वाले गोलन हाइट्स पर भी कब्ज़ा कर लिया.इस तरह 6 दिन के अंदर ही यह युद्ध समाप्त हो गया. विजय इजराइल के कदम चूम रही थी और इसी के साथ अरब राष्ट्रवाद का भी पतन हो गया. शर्म के मारे जमाल अब्देल नासेर ने मिस्र के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया.इस युद्ध ने इजराइल की ताकत का एहसास पूरी दुनिया को करा दिया था

अब इजराइल का क्षेत्रफल तीन गुना बढ़ चुका था.इस हार के साथ ही फिलिस्तीनीयों को एहसास हो गया कि उनकी लड़ाई अरब देशों के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती. इसलिए उन्होंने 1964 में फिलिस्तीन लिबरेशन का गठन किया.और यहीं से यानी 1965 से फिलिस्तीनी क्रांति की शुरुआत होती है, जिसमें फिलिस्तीनी नागरिकों ने इजराइल के विरुद्ध हथियारबंद विद्रोह का आगाज कर दिया.

इधर, मिस्र और सीरिया अपने खोए हुए भू-भागों को दोबारा पाना चाहते थे, दोनों देशों के बीच जनवरी 1973 में एक आंतरिक समझौता भी हुआ, लेकिन उसी साल 6 अक्टूबर को एक यहूदी त्यौहार के दिन सीरिया और मिस्र ने इजराइल पर हमला कर दिया

इसे योम किप्पूर वॉर या अक्टूबर वॉर भी कहा जाता है.शुरू में मिस्र और सीरिया की सेना का दबदबा रहा, लेकिन बाद में इजराइल ने तेजी के साथ अपनी बढ़त बनानी शुरू कर दी. इजराइल की सेना लड़ते-लड़ते मिस्र की राजधानी काहिरा और सीरिया की राजधानी दमिश्क के लगभग पास तक पहुंच गईं

हालांकि, जून 1974 को इजराइल और सीरिया में समझौता हो गया और युद्ध खत्म कर दिया गया.यहां भी जीत इजराइल की हुई, और मिस्र – सीरिया को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा.युद्ध के चार साल के अंदर ही मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सदत ने जेरुशलम स्थित इजरायली संसद, नेसेट में शांति का भाषण भी दिया

आगे चलकर अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने सदत और इजरायली प्रधानमंत्री मेनचेम के बीच वाशिंगटन स्थित राष्ट्रपति आवास में एक शांति समझौता करा दिया. इसे केंप डेविड समझौता कहा गया

इसके बाद 26 मार्च, 1979 को मिस्र ने इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी और इजराइल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाने के लिए राजी हो गया.मिस्र में इस फैसले का स्वागत किया गया, तो अरब जगत ने इसे फिलिस्तीन देश के बनने की दिशा में एक विश्वासघात की तरह देखा
इजराइल के साथ शांति समझौता करने के कारण मिस्र को अरब लीग से निष्काषित कर दिया गया. और इसके बाद 1981 में बौखलाए कट्टरपंथियों ने एक रैली के दौरान अनवर सदत की हत्या कर दी.इस प्रकरण के बाद एक बार फिर बिल क्लिंटन के कार्यकाल में ओस्लो शांति समझौता हुआ, जिसके बाद लगा कि इजराइल और फिलिस्तीन की समस्या का समाधान हो गया है

लेकिन समझौते के तहत जैसे ही इजराइल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिक हटाए, वहां हमास नामक फिलिस्तीनी कट्टरपंथी समूह ने कब्जा कर लिया. हमास ने इजराइल के अस्तित्व को कभी स्वीकार नहीं किया.इसके बाद से कई बार हमास ने इजराइल पर रॉकेट से हमला किया है, लेकिन इजराइल की सेना आज अत्याधुनिक हथियारों से लैस है, और देश के चारों ओर मिसाइल इंटरसेप्टर लगे हुए हैं

इससे इजराइल की ओर आने वाली कोई भी मिसाइल देश में घुसने से पहले ही खत्म कर दी जाती है. ये सिलसिला आज भी इसी प्रकार जारी है.अंत मे जानते है गाजा पट्टी गोलन हाइट्स और वेस्ट बैंक के अब तक के इतिहास को।

गाजा पट्टी...मिस्र और इज़राइल के मध्य भूमध्यसागरीय तट पर अवस्थित गाजा पट्टी 225 वर्ग किमी. में फैला हुआ फिलिस्तीनी क्षेत्र है जिस पर लगभग 2 मिलियन लोग अधिवासित हैं। ये सभी लोग प्रथम अरब- इजराइल युद्ध के शरणार्थी और उनके वंशज हैं। यह हमास संगठन द्वारा प्रशासित क्षेत्र है, जिसे इज़राइल में एक आतंकी संगठन माना जाता है।

जून 1967 के युद्ध के बाद इजरायल ने फिर से गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया था. इसके बाद इजरायल ने 25 सालों तक इस पर कब्जा बनाए रखा, लेकिन दिसंबर 1987 में गाजा के फिलिस्तिनियों के बीच दंगों और हिंसक झड़प ने एक विद्रोह का रूप ले लिया
1994 में इजरायल ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) द्वारा हस्ताक्षरित ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत फिलिस्तीनी अथॉरिटी (पीए) को गाजा पट्टी में सरकारी प्राधिकरण का चरणबद्ध स्थानांतरण शुरू किया

साल 2000 की शुरुआत में, पीए और इजरायल के बीच वार्ता नकाम होने के कारण हिंसा अपने चरम पर पहुंच गया, जिसे खत्म करने के लिए इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने एक योजना की घोषणा की. इसके तहत गाजा पट्टी से इजरायल सैनिकों को वापस हटने और स्थानीय निवासियों को बसाने था

सितंबर 2005 में इजराइल ने क्षेत्र से पलायन पूरा कर लिया और गाजा पट्टी पर नियंत्रण को पीए में स्थानांतरित कर दिया गया. हालांकि, इजरायल ने क्षेत्ररक्षा और हवाई गश्त को जारी रखा. जून 2007 में हमास ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया और फतह (फिलिस्तिन राजनीतिक समूह) की अगुवाई वाली आपातकालीन कैबिनेट ने पश्चिम बैंक का कब्जा कर लिया था

फिलिस्तीनी अथॉरिटी अध्यक्ष महमूद अब्बास ने कहा कि गाजा हमास के नियंत्रण में रहेगा. 2007 के अंत में इजरायल ने गाजा पट्टी को दुश्मन क्षेत्र घोषित कर दिया और इसके साथ ही गाजा पर कई प्रतिबंधों को मंजूरी दी. इसमें बिजली कटौती, भारी प्रतिबंधित आयात और सीमा को बंद करना शामिल था

जनवरी 2008 में हुए हमलों के बाद गाजा पर इन प्रतिबंध को और बढ़ा दिया गया और सीमा को सील कर दिया गया. ताकि अस्थायी रूप से ईंधन आयात को रोका जा सके. गाजा और वेस्ट बैंक दो प्रतिद्वंद्वी गुटों हमास और फतह द्वारा शासित है।

गोलन हाइट्स...गोलान हाइट्स दक्षिणी-पश्चिमी सीरिया में स्थित एक पहाड़ी इलाका है. ये इलाका राजनीतिक और रणनीतिक रूप से खासा अहम है.ये पहाड़ी इलाका सीरिया से इसराइल की सुरक्षा के लिए ढाल का काम भी करता है.गोलान हाइट्स इसराइल के लिए दूसरी कई वजहों से भी अहम है
गोलान इस सूखे इलाके के पानी का मुख्य स्रोत है.गोलान में होने वाली बारिश का पानी जॉर्डन की नदी में जाकर मिल जाता है. ये इसराइल की एक तिहाई पानी की ज़रूरत पूरा करता है. इसराइल ने 1967 में सीरिया के साथ छह दिन के युद्ध के बाद गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया था

उस वक्त इलाके में रहने वाले ज्यादातर सीरियाई अरब लोग अपना-अपना घर छोड़कर चले गए थे.सीरिया ने 1973 में हुए मध्य पूर्व युद्ध के दौरान गोलान हाइट्स को दोबारा हासिल करने की कोशिश की

लेकिन युद्ध में इसराइल को भारी नुकसान पहुंचाने के बावजूद सीरिया ऐसा करने में नाकाम रहा.1974 में दोनों देशों ने इलाके में युद्ध विराम लागू कर दिया. संयुक्त राष्ट्र की सेना 1974 से युद्धविराम रेखा पर तैनात है

1981 में इसराइल ने गोलान हाइट्स को अपने क्षेत्र में मिलाने की एकतरफा घोषणा कर दी. लेकिन इसराइल के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी गई.गोलान हाइट्स पर यहूदियों की 30 से ज्यादा बस्तियां हैं, जिनमें क़रीब 20,000 लोग रहते हैं. इलाके में 20,000 सीरियाई लोग भी रहते हैं.

वेस्ट बैंक भूमध्यसागर के तट के निकट एक भूभाग है जो चारों ओर से अन्य देशों से घिरा (landlocked) हुआ है. इसके पूर्व में जॉर्डन तथा दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में इजराइल है.वेस्ट बैंक के अन्दर मृत सागर (dead sea) के पश्चिमी तट का एक बड़ा भाग भी आता है
संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा इंटरनेशनल जस्टिस कोर्ट 1967 के बाद वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियां अवैध मानता है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के स्थानांतरण को युद्ध अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाता है। वर्ष 1967 में इजरायल द्वारा पूर्वी येरुशलम पर कब्जे के बाद ये मुद्दा और अधिक विवादित हो गया था।

दुनिया के अधिकतर देश इजरायल की वेस्ट बैंक में बसी बस्तियों को सही नहीं मानते हैं। वर्ष 1990 में हुई ओस्लो संधि में इजरायल तथा फिलिस्तीन दोनों ने ही आपसी समझौते के माध्यम से इन बस्तियों की स्थिति तय करने का निर्णय लिया, लेकिन इस पर कोई सहमति नहीं बन सकी।

वर्ष 1978 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने वेस्ट बैंक में बसी इजरायली बस्तियों को अवैधानिक माना तथा इनको अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध बताया था। वहीं, 1981 में रोनाल्ड रेगन ने कार्टर के रवैये को गलत बताते हुए वेस्ट बैंक में बसाई इजरायली बस्तियों को वैध बताया था।

इतना ही नहीं, अमेरिका ने इसके बाद यूएन में पारित होने वाले हर प्रस्तावों पर इजरायल का साथ दिया था। वर्ष 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका की पूर्व नीति का त्याग कर संयुक्त राष्ट्र में वेस्ट बैंक के मामले पर वीटो करने से इनकार कर दिया था। मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वेस्ट बैंक में बनी इजरायली बस्तियों को सही माना और कहा कि ये अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन नहीं करता है।

इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी अपने पॉलिटिकल करियर में कई बार इसका ज़िक्र किया. अप्रैल 2019, सितंबर 2019 और मार्च 2020. तीनों इलेक्शन्स में नेतन्याहू ने इस मुद्दे को अपना चुनावी वायदा बनाया. कहा, अगर अबकि वो जीतते हैं तो वेस्ट बैंक वाले प्लान पर अमल करेंगे.इस वायदे के बावजूद नेतन्याहू को पूर्ण बहुमत नहीं मिला

काफी जोड़-तोड़ के बाद अप्रैल 2020 में उन्होंने एक गठबंधन सरकार बनाई. सरकार बनाने के बाद फिर से उन्होंने ये ज़िक्र छेड़ा. कहा, हम वेस्ट बैंक की एक तिहाई ज़मीन को इज़रायल का संप्रभु हिस्सा बनाएंगे. चूंकि वेस्ट बैंक इज़रायल का आधिकारिक हिस्सा नहीं है, ऐसे में नेतन्याहू का ये प्लान कहलाया- ऐनेक्सेशन प्लान ऑफ वेस्ट बैंक. एनेक्सेशन मतलब जब कोई देश मनमाने तरीके से किसी और की ज़मीन अपनी सीमा में मिला ले.

अन्ततः इजराइल के बनने के बाद सात लाख फिलिस्तीनी रिफ्यूजी हो गए. जो बढ़कर अब ये लोग सत्तर लाख हो गए हैं. अब जब भी शांति की बात होती है तो फिलिस्तीन के लोग इन सत्तर लाख लोगों के घर को वापस दिलाये जाने की बात करते हैं. पर दिक्कत ये है कि अगर ये लोग वापस आ जायें तो यहूदी अपने देश में ही माइनॉरिटी हो जायेंगे!

फिर उनका एक डर यह भी है कि अगर वेस्ट बैंक और गाजा दे भी दिया गया, तो क्या गारंटी है कि मांग और नहीं बढ़ेगी.बहरहाल इस्राइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हुए ऐतिहासिक शांति समझौते के बाद राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू वेस्ट बैंक पर अपने कब्जे का इरादा छोड़ सकते है। अगर सब कुछ सही रहा तो आशा करते है कि आने वाले दिनों में हमें जल्द ही एक शांतिपूर्ण नया राष्ट्र फिलिस्तीन के रूप में दिखे।

(समाप्त)

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