ईदी अमीन
कौन था ईदी अमीन?
पूर्वी अफ्रीकी देश युगांडा के बारे में आपने थोड़ा सा भी सुना होगा तो आप ईदी अमीन को जरूर जानते होंगे। ईदी अमीन जैसा दुनिया का सबसे क्रूर तानाशाह शायद ही कोई इस धरती पर पैदा हुआ हो। 1925 में जन्मा युगांडा का वो तानाशाह जो खुद को स्कॉटलैंड का आखिरी राजा कहता था। जो महारानी एजिलाबेथ को आदेश देता था कि उसके लिए स्कॉट गार्ड भेजे जाएं और स्कॉटलैंड के उसके दौरे का बंदोबस्त किया जाए।
ऐसी किवदंती है कि उसने रानी एलिजाबेथ को लिखा,“प्यारी लिज़, यदि तुम असली मर्द के बारे में जानना चाहती हो, तो कंपाला आओ.” साल 1971 में जब ईदी अमीन ने तख्तापलट किया तो युगांडा के हालात पूरी तरह से बदल गए। ईदी अमीन ने सेना की मदद से पूरे देश पर कब्जा कर लिया। कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक रहा, लेकिन एक दिन अचानक ईदी अमीन ने भारतीय समेत एशियाई मूल के सभी लोगों को देश छोड़ने के आदेश दे दिए।
इसके पीछे उसने तर्क दिया कि अल्लाह ने उससे कहा कि वो सारे एशियाइयों को अपने देश से तुरंत निकाल बाहर करे। 135 किलो के भारी भरकम शरीर वाला और छह फीट चार इंच लंबा होने की वजह से ईदी अमीन 1951 से 1960 तक युगांडा का लाइट हैवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन था इसके साथ ही वह एक तैराक और एक खतरनाक रग्बी फॉरवर्ड भी था।
एक अधिकारी के मुताबिक ईदी अमीन रग्बी का एक शानदार और अच्छा खिलाड़ी था, लेकिन उसे सिखाना कठिन था। एक अक्षर का शब्द भी उसे विस्तार से समझाना पड़ता था। उसके बारे में तमाम तरह की कहानियां प्रचलित हैं कि 'वो लोगों का ख़ून पीता था, आदमख़ोर था'। उसको इंसानियत का दुश्मन, हैवान, राक्षस और न जाने क्या-क्या कहा जाता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल का अनुमान है कि उसके 1971 से 1979 के बीच के कार्यकाल में कम से कम पांच लाख लोग या तो मौत के घात उतार दिए गए या फिर रहस्यमय तरीके से गायब हो गए।
दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश होगा, जहां भारतीय लोग न रहते हों। एक ऐसा ही देश है युगांडा, जहां एक समय में लाखों भारतीय रहते थे, लेकिन एक सनकी और खूंखार तानाशाह की वजह से या तो उन्हें युगांडा छोड़ कर जाना पड़ा या फिर उन्हें देश से ही निकाल बाहर किया गया।
19वी सदी के आख़िर में अंग्रेज़ों ने पूर्वी अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर अपना उपनिवेश क़ायम कर लिया था. वहां के सत्ता को चलाने के लिए अंग्रेज़ों को ऐसे लोग चाहिए थे जो उनके रहन-सहन को जानें और अफ्रीकी लोगों से संवाद का ज़रिया भी बनें।
साम्राज्यवादी सरकार ने भारतीय मूल के बहुत से लोगों को युगांडा लाकर बसाया. वहां बसे भारतीय मूल या एशियाई मूल के इन लोगों ने अंग्रेज़ों से तो नज़दीकी क़ायम कर ली, मगर अफ्रीकी नस्ल के मूल निवासियों से वो दूर ही रहे।
युगांडा में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की अपनी अलग बस्तियां थीं. उनके कारोबार अलग थे. स्कूल अलग थे. वो अफ्रीकी मूल के लोगों के साथ घुलते-मिलते नहीं थे.एशियाई मूल के लोगों को अंग्रेज़, भारतीय उपमहाद्वीप से युगांडा ले गए थे. अंग्रेज़ों ने भारतीय मूल के लोगों की मदद से युगांडा में रेलवे लाइन भी बिछाई गई। इसी क्रम में बहुत से भारतीय युगांडा में ही बस गए।
कुछ ने प्रशासन में अपना सिक्का जमा लिया, तो बहुत से लोगों ने कारोबार में नाम और दाम कमाया. इनमें से ज़्यादातर लोग मूल रूप से गुजरात के रहने वाले थे.युगांडा में एशियाई मूल के लोगों की ज़िंदगी बेहद शानदार थी. वो युगांडा की कुल आबादी के महज़ एक फ़ीसदी थे मगर युगांडा की क़रीब 20 फ़ीसदी संपत्ति इन एशियाई मूल के लोगों के पास थी।
शुरुआत में ऐसा भी दौर आया कि जब ईदी अमीन अपने देश के लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया जब उसने एशियाई मूल के लोगों को देश से बाहर निकाल फेंकने का एलान किया तो उसे भारी जनसमर्थन मिला था।
ईदी अमीन के शासनकाल से पहले यानी 1970 के दशक में युगांडा को ‘पर्ल ऑफ अफ्रीका’ कहा जाता था। 1966 से युगांडा सेना और एयर फोर्स के मुखिया रहे ईदी अमीन ने 1971 में मिल्टन ओबोटे को सत्ता से बेदखल कर यहां की सत्ता अपने कब्जे में ले ली थी।
सत्ता हथियाने के एक सप्ताह बाद फरवरी 1971 में अमीन ने खुद को युगांडा का राष्ट्रपति, सभी सशस्त्र बलों का प्रमुख कमांडर, आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ और चीफ ऑफ एयर स्टाफ घोषित कर दिया था। ईदी अमीन ने सत्ता हासिल करते ही अपने विरोधियों, ओबाटे समर्थकों पर ज़ुल्म और अछोली जातीय समूहों के सफाये के लिए एक जनजातीय नरसंहार कार्यक्रम शुरू कर दिया।
ईदी अमीन के सत्ता में आने के बाद पूरा देश गृहयुद्ध की आग में झुलस गया था, देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गयी थी, 1970 से पहले जहाँ युगांडा में 1 £ (पाउंड) की कीमत 20 Ugandan Shilling थी वो 1979 तक 700 Ugandan Shilling तक पहुंच गई थी।
इसकी वजह थी युगांडा से एशियन लोगों का देश निकाले के आदेश जिसकी वजह से वहां सैकड़ों फैक्ट्रियां बंद हो गईं और हजारों बेरोजगार हो गए थे। एशियन लोगों का देश निकाले के आदेश के बाद कई देशों ने युगांडा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे, जिसके चलते देश में भुखमरी के हालात पैदा हो गए थे।
ईदी अमीन ने 1972 में आदेश दिया कि जिन एशियाई लोगों को पास युगांडा की नागरिकता नहीं है, वो देश छोड़ दें। इसके बाद करीब 90 हजार भारतीयों और पाकिस्तानियों को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था।
अगस्त 4, 1972 में उसने अपने देश में आर्थिक युद्ध की घोषणा की. उसने युगांडा में बसे हुए 90 हजार से ज्यादा एशियाई लोगों को नब्बे दिन के भीतर देश छोड़ देने का आदेश दे दिया। उन लोगो को यह भी धमकी दी थी कि अगर 8 नवंबर 1972 में के बाद कोई भी एशियाई युगांडा में नजर आया तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा।
कहा जाता है कि ईदी अमीन को एशियाई लोगों से नफरत थी। उसने अपने देश से सारे एशियाइयों को निकाल बाहर किया था। इसका कारण उसने ये तर्क देकर किया कि अल्लाह ने उससे कहा था कि वो सारे एशियाइयों को अपने देश से तुरंत निकाल बाहर करे।
लोगों की सारी जायदाद जब्त कर लीं गई. उन्हें कम से कम माल करीब 55 पौंड के साथ देश छोड़ने पर मजबूर किया गया. भारतीय सरकार ने उस समय युगांडा के साथ अपने सभी राजनयिक संबंध खत्म कर दिए थे। यह एक वजह है कि आप इस तानाशाह से खुन्नस पाल सकते हैं।
ईदी अमीन की अय्याशी के बारे में कई किस्से सुनाए जाते हैं। खूबसूरत लड़कियों को वो अपनी हवस का जबरन शिकार बनाता था।उसे जो महिला या लड़की पसंद आ जाती थी तो वो किसी भी हद तक जा सकता था।
उसकी हैवानियत के चलते उसे 'मैड मैन ऑफ' अफ्रीका कहा जाता है। कहा जाता है कि एक समय में उसका कम से कम 30 महिलाओं का हरम हुआ करता था जो पूरे युगांडा में फैला होता था। ये महिलाएं ज्यादातर होटलों, दफ्तरों और अस्पतालों में नर्सों के रूप में काम करती थीं।
वो बहुविवाह में यकीन रखता था और उसने कम से छह महिलाओं से शादी की थी, जिसमें से तीन को उसने बाद में तलाक दे दिया था। अमीन के कितने बच्चे थे, इसके बारे में ठीक-ठीक किसी को भी नहीं पता, लेकिन अधिकांश का कहना है कि उसके 30 से 45 बच्चे थे।
ईदी अमीन काकवा जनजाति से आता था। जो एक नरभक्षी प्रजाति भी कही जाती है ऐसा नही है कि सभी नरभक्षी होते है अमीन के बारे में कहा जाता है कि वो मानव मांस खाने का शौकीन था। यहां तक कि वो इंसानी रक्त पीना भी पसंद करता था।
उसके फ्रिज से कई मानव अंग बरामद किए गए थे। इसके बारे में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हेनरी केयेंबा की एक किताब 'अ स्टेट ऑफ ब्लड: द इनसाइड स्टोरी ऑफ ईदी अमीन' में ईदी की दरिंदगी बयां है उसमे लिखा है कि एक बार अमीन अस्पताल के मुर्दाघर में गया था, जहां उसके दुश्मनों के शव रखे गए थे।
उसने उन शवों के साथ क्या किया, यह तो किसी ने नहीं देखा, लेकिन कुछ युगांडावासियों का मानना है कि उसने अपने दुश्मन का खून पिया, जैसा कि काकवा जनजाति में प्रथा है। केयेंबा ने इस किताब में लिखा है, 'कई बार राष्ट्रपति और दूसरे लोगों के सामने अमीन ने यह कहा कि उसने इंसानों का मांस खाया है।
जायरे यात्रा के दौरान ईदी अमीन को वहां उसे बंदर का गोश्त परोसा गया जो उसके अनुसार मानव के गोश्त से अच्छा नहीं था। उसका यह भी मानना था अगर लड़ाई के दौरान अगर आपका साथी सैनिक घायल हो जाता है ऐसे में उसको मार कर खा जाने से आप भुखमरी से बच सकते हैं।
ईदी अमीन गरीबी हटाओ का समर्थक था।
उसने गरीबी हटाने का एक अलग रास्ता चुना उसने युगांडा की मुख्य सड़क पर गरीबी हटाओ अभियान के तहत भीख मांगने वालों को इकट्ठा किया इसके बाद उन सबको गोलियों से उड़वा दिया। उसने जीते जी लोगों को जमीन में गड़वा दिया। कई लोगों को उसने भूखे मगरमच्छों के बाड़े में फिकवाया। इस तरह से उसने गरीबो का सफाया किया।
युगांडा के इतिहास में अमीन के शासन काल को काला अध्याय कहा जाता है। अमीन के शासन को मानव अधिकारों के दुरूपयोग, राजनीतिक दमन, जातीय उत्पीड़न, गैर कानूनी हत्याओं, पक्षपात, भ्रष्टाचार और सकल आर्थिक कुप्रबंधन के लिए जाना जाता था।
1978 में उसने तंजानिया के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और तंजानिया के कगेरा पर कब्ज़ा कर लिया. लेकिन यह दांव उसके लिए उल्टा पड़ गया. 1979 में तंजानिया की सेना और उसके देश के निर्वासित नागरिकों की फ़ौज युगांडा नेशनल लिबरेशन आर्मी ने जवाबी हमला शुरू कर दिया।
लीबिया के तानाशाह गद्दाफी की सैन्य मदद से भी कोई फायदा नहीं हुआ. राजधानी कंपाला पर कब्ज़ा होने के बाद वो जान बचा कर लीबिया भाग गया. इसके बाद सऊदी अरब के शाह ने उसे राजकीय अतिथि का दर्जा दे कर अपने देश में शरण दी. 1980 से ले कर अपनी मौत तक वो सऊदी अरब के जेद्दा में निर्वासित के तौर पर 24 साल वो यहीं रहा. 4 अगस्त 2003 को किडनी की बीमारी के चलते उसकी मौत हो गई. कहते हैं ईदी अमीन अपने जीवन के आखिरी कुछ वर्षों में काफी धार्मिक हो गया था।
अन्ततः तानाशाह (परमसत्तावादी या निरंकुश) एक ऐसा शासक होता है, जो किसी राष्ट्र का एकमात्र शासक होने के साथ साथ समस्त राष्ट्रीय शक्तियों को अपने में धारण कर लेता है, जिनमें सैन्य शक्तिया प्रमुख होती हैं।
वो एक मदमस्त हाथी के जैसे हो जाता है जो किसी की भी नहीं सुनता बस अपने मन की करता है, फिर चाहे वो सही हो या गलत, और जो कोई भी उसके रास्ते में आता है वो उसे भी तबाह कर देता है कुचल देता है। ऐसा ही कुछ हुआ जब ईदी अमीन की हुक़ूमत ख़त्म हुई तो उसके बाद युगांडा में कई जगह लोगों की लाशें सड़ती हुई मिली थीं. तमाम सामूहिक क़ब्रों का पता चला था।
जिससे लोगो को यकीन हो गया वो वाक़ई में एक राक्षस था जिसने अपने ही देश के लाखों लोगों का ख़ून किया था। उसने बस अपने देश के संसाधनो को लूटा। उसके बारे में एक कथन है कि उसने गाय का दूध तो बहुत पिया लेकिन उस गाय को कभी चारा नही दिया।
Written by Dharmendra Kumar Singh
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