इस्राइल देश और सिक्स डे वॉर


क्या था इस्राइल का छः दिन का युद्ध?


इजराइल, जिसकी प्रमुख भाषा हिब्रू...इसी भाषा मे एक सैकड़ों बरस पुरानी धार्मिक क़िताब है जिसका नाम है हिब्रू बाइबल इस बाइबल का पहला हिस्सा कहलाता है, बुक ऑफ जेनेसेज़ इसके एक भाग का नाम है- कवेनंट बिटविन गॉड ऐंड अब्राहम. यानी, ईश्वर और अब्राहम के बीच हुआ करार

इस किताब में एक कहानी है उन पूर्वजों के साथ हुए एक करार की.जिसमें वचन था एक मुल्क का. और ये वचन देने वाला था ख़ुद ईश्वर... ईश्वर ने कहा- छोड़ो अपना मुल्क. छोड़ो अपने लोग. छोड़ो अपने पिता का घर-परिवार. ये सब छोड़कर उस ज़मीन पर जाओ, जिसकी राह मैं दिखाता हूं

मैं तुम्हें एक महान देश बनाकर दूंगा. मैं दूंगा तुम्हें आशीर्वाद. मैं तुम्हारा नाम अमर कर दूंगा...उन्ही पूर्वजों ने ईश्वर का आदेश अमल कियामेसोपोटामिया का अपना वो घर छोड़ दिया. निकल पड़े ईश्वर की दिखाई राह पर. जा पहुंचे एक नई ज़मीन पर. पश्चिमी एशिया में बसी ज़मीन. जिसे तब पुकारते थे, लेवांट
कहते हैं कि इसी लेवांट के दक्षिण में था वो प्रॉमिस्ड लैंड. जहां ईश्वर के वायदे के मुताबिक उस पूर्वज की संतान नया देश बनाने वाली थी. इस ज़मीन का नाम था, लैंड ऑफ केनन.. इस करार में जिन अब्राहम का ज़िक्र है, वो तीन धर्मों के पूर्वज माने जाते हैं

ये तीन धर्म हैं- यहूदी, ईसाई और मुस्लिम. इन तीनों की शुरुआत का सिरा अब्राहम से होकर जाता है ईसाईयों के धर्म ग्रंथ बाइबिल के प्रथम खण्ड और यहूदियों के सबसे प्राचीन ग्रंथ ‘ओल्ड टेस्टामेंट‘ के अनुसार “यहूदी जाति का विकास पैगंबर हजरत अब्राहम से शुरू होता है, जिसे इस्लाम में इब्राहिम, ईसाईयत में अब्राहम कहते हैं

ब्राहम की पत्नी थीं सारा. ईश्वर के आशीर्वाद से बुढ़ापे में सारा को एक बेटा हुआ. इनका नाम रखा गया- इज़ाक. इन इज़ाक के बेटे का नाम था, जैकब. इन्हीं जैकब का दूसरा नाम है- इज़रायल. जैकब के 12 बेटे कहलाए, ट्वेल्व ट्राइब्स ऑफ़ इज़रायल. मान्यता है कि इन्हीं कबीलों की पीढ़ियों ने आगे चलकर बनाया यहूदी देश.. जिसका प्राचीन नाम है लैंड ऑफ़ इज़रायल
लेकिन ये तो बाइबल की मान्यता है. जो सैकड़ों बरस पहले का लैंडस्केप बताने का दावा करती है. इसके आगे की कहानी कुछ इस प्रकार है। दरअसल इजराइल की राजधानी जेरुशलम तीनों धर्मों यहूदी, इसाई, इस्लाम का संगम स्थल है

यहूदियों की मानें तो यह उनकी मातृभूमि है, ईसाईयों की मानें तो यह ईसा की कर्मभूमि है, यहीं पर ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था.वहीं मुस्लिमों की मानें तो यहां की अल-अक्सा मस्जिद से ही इस्लाम की शुरूआत हुई थी, इसी स्थान से पैगम्बर मुहम्मद साहब ने स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया था

यानी यह स्थान तीनों धर्म के लोगों की आस्थाओं का केंद्र है.सन् 66 ई. पू. में प्रथम यहूदी-रोम युद्ध के बाद रोम के जनरल पांपे ने जेरुशलम के साथ-साथ सारे देश पर अधिकार कर लिया. इतिहासकारों का कहना है कि हजारों यहूदी इस लड़ाई में मारे गए

छठी ई. तक इजराइल पर रोम का प्रभुत्व कायम रहा, लेकिन इसी समय मध्य एशिया में एक और नई शक्ति का उदय हुआ, यह शक्ति थी इस्लाम के झंडे के नीचे खड़ा हुआ खलीफा साम्राज्य.सन् 636 ई. में खलीफ़ा उमर की सेनाओं ने रोम की सेनाओं को रोंद डाला और इजराइल पर अपना कब्जा कर लिया
इस तरह इजराइल और उसकी राजधानी जेरुशलम पर अरबों की सत्ता स्थापित हो गई, जो सन् 1099 ई. तक रही. इसके बाद सन् 1099 ई. में जेरुशलम पर ईसाई शक्तियों ने अपना कब्जा कर लिया, हालांकि ईसाईयों का शासन ज्यादा दिन नहीं चल सका और उन्होंने दोबारा से इस्लामी शासकों के हाथों इजराइल गंवा दिया

इस बीच मुस्लिमों और ईसाईयों में इस पवित्र जगह पर कब्जे के लिए कई बार युद्ध लड़े गए, जिन्हें धर्म युद्ध यानी क्रूसेड के नाम से भी जाना जाता है. अंततः इस्लामी शासकों का इजराइल पर कब्जा हो गया, तब से लेकर उन्नीसवीं सदी तक इजराइल पर कभी मिस्र शासकों का आधिपत्य रहा, तो कभी तुर्क शासकों का

इजराइल के वर्तमान स्वरूप से पहले वह तुर्की शासकों के हाथों में ही था, जिसे ओटोमन साम्राज्य कहा जाता था, जिसके ऊपर खलीफा का शासन था.उन्नीसवीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य अपने चरम पर था, तो वहीं मध्य एशिया के एक बड़े हिस्से तक फैल चुका ओटोमन साम्राज्य, अब कमजोर हो चला था
इस समय तक कई देशों में राष्ट्रवाद की लहर चल रही थी. इटालियन एक अलग राज्य इटली की मांग कर रहे थे, तो जर्मनी अपने लिए एक अलग जर्मन राज्य की मांग करने लगे.तब तक संचार के साधन प्रेस, रेल, सड़क के कारण विचारों का एक कोने से दूसरे कोने में पहुंचना आसान हो ही चुका था. इसी तरह राष्ट्रवाद का विचार विश्व के लगभग हर हिस्से में तीव्रता से पहुंचने लगा

यहूदियों में भी अपनी अस्मिता, अपने अस्तित्व, अपनी पहचान के लिए तीव्र भावनाएं उमड़ीं. अब यहूदी एक अलग देश की इच्छा करने लगे, जहां वह चैन से रह सकें.उनके मन में अपने पूर्वजों के देश इजराइल को दोबारा से आबाद करने की भावना घर करने लगी, जहां फिलहाल ओटोमन शासकों का कब्जा था.

वैसे तो उन्नीसवी सदी के मध्य से ही इजराइल के रूप में ‘यहूदी मातृभूमि’ की मांग करने लगे थे,जिसे जिओनवाद कहा गया. इस समय यूरोप में सब जगह यहूदियों पर अत्याचार हो रहे थे, निरंतर होते अत्याचारों के कारण यूरोप के कई हिस्सों में रहने वाले यहूदी विस्थापित होकर फिलिस्तीन आने लगे

यहूदी एक ऐसे देश की कल्पना कर रहे थे, जहां दुनिया के तमाम देशों से आए हुए यहूदी निर्णायक बहुमत में हों.चूंकि फिलिस्तीन में इस्लामी मान्यता के लोग बहुमत में थे, अतः यह लड़ाई एक कभी न खत्म होने वाला विवाद बनने जा रही थी

इसी बीच 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया. यही वह समय था जब यहूदियों को उनकी मातृभूमि मिलने की दिशा में टर्निंग-पॉइंट आया.इजराइल का कब्जाधारक तुर्की प्रथम विश्व युद्ध के समय मित्र राष्ट्रों (जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था) के खिलाफ़ वाले गठबंधन में शामिल हो गया, यानी तुर्की ने जर्मनी, ऑस्ट्रिया और हंगरी के गुट में शामिल होकर ब्रिटेन की दुश्मनी मोल ले ली, जोकि उस समय सबसे ताकतवर शक्ति थी

इसी समय तुर्की के शासकों ने फिलिस्तीन से उन सभी यहूदियों को खदेड़ना शुरू कर दिया, जो रूस और यूरोप के अन्य देशों से आए हुए थे.प्रथम विश्व युद्ध से अरबी लोगों को भी नुकसान हो रहा था, जो कि इजराइल में बहुमत में थे

इन दोनों परिस्थितियों का लाभ लेने के लिए ब्रिटेन ने अरब और फिलिस्तीन को तुर्की शासन से मुक्ति दिलाने के लिए प्रतिबद्धता जताई, बशर्ते कि अरब देश और फिलिस्तीन तुर्की के विरोध में मित्र सेनाओं के साथ आ जाएं.प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही ब्रिटेन और फ्रांस के बीच में गुप्त रूप से साइक्स-पिकोट समझौता हुआ

इस एग्रीमेंट के साथ रूस की भी सहमती थी. इस समझौते के अंतर्गत तय हुआ कि युद्ध जीतने के बाद मध्य एशिया का कौन सा हिस्सा किस देश को मिलेगा.इस समझौते में तय हुआ कि जॉर्डन, इराक और फिलिस्तीन ब्रिटेन को मिलेंगे.
सन 1917 में ब्रिटेन के विदेश सचिव लार्ड बेलफोर और यहूदी नेता लार्ड रोथसचाइल्ड के बीच एक पत्र व्यवहार हुआ, जिसमें लार्ड बेलफोर ने ब्रिटेन की ओर से ये आश्वासन दिया कि फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि के रूप में बनाने के लिए वो प्रतिबद्ध हैं

ब्रिटेन के विदेश सचिव लार्ड बेलफोर की इसी घोषणा को बेलफोर घोषणा कहा जाता है.उस समय मुस्लिमों की आबादी फिलिस्तीन की कुल आबादी की तीन चौथाई से भी ज्यादा थी. इस समझौते के तहत इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया.स्वाभाविक रूप से बेलफोर घोषणा का विरोध शुरू हो गया

फिलिस्तीन मुस्लिमों ने इसका जोरदार विरोध किया.प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद सन 1920 को इटली में सैन रेमो कान्फ्रेंस हुई, जिसमें मित्र राष्ट्रों ने व अमेरिका ने मिलकर ब्रिटेन को अस्थायी जनादेश दिया कि ब्रिटेन फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि के रूप में विकसित कराए, वहीं फिलिस्तीन का स्थानीय प्रशासन भी ब्रिटेन ही देखेगा
अब यहूदी देश बनाने की मुहिम ने ज़ोर पकड़ा. लेकिन बड़ा सवाल था कि फिलिस्तीनियों का क्या होगा? एक ही ज़मीन पर दो मुल्क कैसे होंगे? उस समय फिलिस्तीन पर कब्ज़ा था ब्रिटेन का. उसने ये मामला थमा दिया यूनाइटेड नेशन्स को.जिसको आप पूर्व की पोस्ट में पढ़ चुके है।

UN के एक प्रस्ताव में कहा गया कि मई 1948 में फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांट दिया जाए. एक हिस्सा यहूदियों का. एक हिस्सा फिलिस्तीनियों का. और जेरुसलम, जिसे यहूदी और मुसलमान अपनी पवित्र जगह मानते हैं, उस पर रहेगा इंटरनेशनल कंट्रोल. और कंट्रोल का पहरेदार होगा ख़ुद UN...

यहूदी इस मसौदे पर राज़ी थे. मगर अरब मुल्कों ने प्रस्ताव खारिज़ कर दिया. दोनों पक्षों के बीच संघर्ष तेज़ हो गया. अरब मुल्कों ने सोचा, इस झगड़े के दम पर वो UN के प्रस्ताव पर अमल नहीं होने देंगे. मगर हुआ इसका उल्टा

यहूदियों ने प्रस्ताव में मिली अपने हिस्से की ज़मीन पर तो कंट्रोल किया ही. साथ ही, फिलिस्तीन के हिस्से वाले कुछ इलाके भी जीत लिए. इसके बाद 14 मई, 1948 को यहूदियों ने कर दिया अलग इज़रायल देश के गठन का ऐलान. इस ऐलान पर अरब देशों ने इजरायल पर हमला कर दिया
हमले में शामिल थे पांच देश- मिस्र, इराक, लेबनन, सीरिया और जॉडर्न. जब लड़ाई ख़त्म हुई, तो कुछ और इलाके इज़रायल के कब्ज़े में आ गए. अब फिलिस्तीन की बसाहट के दो मुख्य इलाके बचे. एक, गाज़ा स्ट्रिप. दूसरा, वेस्ट बैंक. वेस्ट बैंक था तो फिलिस्तीन का. लेकिन इसका कस्टोडियन बन गया था जॉर्डन...

अन्ततः इसके बाद आया 1967 का साल. इस बरस एक और युद्ध हुआ. इसमें एक तरफ था इज़रायल. दूसरी तरफ थे तीन देश- मिस्र, जॉर्डन और सीरिया. ये युद्ध कहलाया सिक्स-डे वॉर. जब ये जंग ख़त्म हुई, तो गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक का इलाका भी इज़रायली कब्ज़े में आ चुका था

क्रमशः

इस लेख का अगला भाग पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें


No comments