मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जीका, पीत ज्वर

 


क्या है डेंगू चिकनगुनिया और यह कैसे होता है?

मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जीका, पीत ज्वर ये सभी बीमारियों के नाम आपने जरूर सुने होंगे। ये सभी मच्छर के काटने से होने वाली बीमारी हैं। लेकिन क्या वास्तव में इन बीमारियों का कारण मच्छर ही है या फिर कोई और...जी नही। असल में ये वायरस और प्रोटोजोआ से होने वाले रोग है। मच्छर तो बस इनके वाहक या कैरिएर है। जैसे कोरोना चमगादड़ से स्नैक में...स्नैक से पैंगोलिन और आज इंसान कोरोना वायरस का है।

डेंगू बुखार, जिसे ब्रेकबोन बुखार भी कहा जाता है। इस रोग के वाहक 'एड़ीज मच्छर' की दो प्रजातियां हैं- 'एडीज एजिपटाई' व एडीज एल्बोपेक्टस'। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं।
एडीज इजिप्टी मच्छर बहुत ऊंचाई तक नहीं उड़ पाता।जब डेंगू वायरस वाला वह मच्छर किसी और इंसान को काटता है तो उससे वह वायरस उस इंसान के शरीर में पहुंच जाता है, जिससे वह डेंगू वायरस से पीड़ित हो जाता है। डेंगू बुखार किसी भी चार प्रकार के डेंगू वायरस के कारण होता है जो मच्छरों द्वारा फैलते हैं। इसे "डेन वायरस" कहते हैं। 'डेन-1', 'डेन-2', 'डेन-3' और 'डेन-4'
डेंगू बुखार तीन तरह का होता है...

1.क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार
2.डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
3.डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)

इन तीनों में से दूसरे और तीसरे तरह का डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है और इससे जान जाने का खतरा नहीं होता लेकिन अगर किसी को DHF या DSS है और उसका फौरन इलाज शुरू नहीं किया जाता तो जान जा सकती है। इसलिए यह पहचानना सबसे जरूरी है कि बुखार साधारण डेंगू है, DHF है या DSS है।
ठीक इसी तरह मलेरिया मादा मच्छर एनाफिलीज के काटने से फैलता है। इस मच्छर में प्लासमोडियम नाम का परजीवी (प्रोटोजोआ) पाया जाता है जिसके कारण मच्छर के काटने से ये रक्त में कई गुणा बढ़ता है और फिर इंसान के शरीर को बीमार कर देता है। मादा एनाफिलीज में सिर्फ एक नहीं बल्कि करीब आठ तरह के प्रोटोजोआ होते हैं।जिनके नाम प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम,
प्लास्मोडियम वाइवैक्स,प्लास्मोडियम मलेरी, आदि।

मलेरिया इटालियन भाषा के शब्द माला एरिया से निकला है, इसका हिंदी भावार्थ बुरी हवा है. इस बीमारी का सबसे पुराना वर्णन चीन (2700 ईसा पूर्व) से मिलता है जहां इसे दलदली बुखार (Marsh Fever) भी कहा जाता था. जब किसी हेल्दी पर्सन को मादा एनाफिलीज मच्छर काटता है तो उसके खून में मलेरिया के जर्म्स चले जाते हैं. मलेरिया का कोई भी प्रोटोजोआ खून में पहुंचते ही हीमोजॅाइन टॅाक्सिन बनाने लगता है.

ये टॉक्सिन एक तरह का जहर है जो मानव शरीर के लिए काफी खतरनाक है. जैसे ही प्रोटोजोआ लिवर में पहुंचता है ये कई गुना तेजी से बढ़ने लगता है. इनकी संख्या इतनी ज्यादा हो जाती है कि ये इंसान के रेड ब्लड सेल (लाल रक्त कोशिका) में भी घुस जाते हैं. ये एक सेल को नष्ट करके दूसरे में पहुंचते हैं, एक के बाद एक रेड ब्लड सेल पर ये हमला करते हैं.
इस वजह से इंसान अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता से इस परजीवी से लड़ नहीं पाता. मनुष्य में मलेरिया के लक्षण तुरंत नहीं आते, ये छह से आठ दिन बाद लक्षण देता है।

इसी प्रकार, चिकनगुनिया भी चिकनगुनिया वायरस के इन्फैक्शन से होता है। यह वायरस एडिस प्रकार के मच्छरों की दो प्रजातियों द्वारा स्थानांतरित होता है।

पूर्व में, चिकनगुनिया को डेंगी कहा जाता था। तंजानिया के नजदीक मकॉन्द पठार में चिकनगुनिया के फैलने के बाद ,इसे एक अलग बीमारी के रूप में पहचाना गया था।चिकनगुनिया शब्द स्वाहिली भाषा (एक आफ्रिकन भाषा) से लिया गया है, जिसका हिन्दी अर्थ 'हड्डियों के टूटने जैसा दर्द' है।

इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के जोड़ों में तीव्र वेदना होती है और शरीर इस कदर कमजोर हो जाता है कि इससे प्रभावित व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को करने में भी असमर्थ हो जाता है।

इस रोग के तीन मुख्य घटक हैं, वायरस, वेक्टर और होस्ट। चिकनगुनिया रोगकारक वायरस का सबसे बढ़िया मेजबान (होस्ट) मनुष्य खुद है। जब चिकनगुनिया वायरस लिए मच्छर (वेक्टर) द्वारा स्वस्थ मनुष्यों को काटा जाता है तो यह वायरस मनुष्य रक्त में आ जाता है और एक प्रकार से अपना घर बना लेता है।जब दूसरा मच्छर इस व्यक्ति को काटता है तो व्यक्ति के रक्त से वायरस पुन: मच्छर तक पहुंच जाता है।
यानी आप अगर वायरस ग्रस्त हैं और किसी साफ क्षेत्र में जाते हैं और यदि वहां मच्छर आपको काटेगा तो मान लीजिए उस क्षेत्र में भी चिकनगुनिया के फैलने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।रोचक बात यह भी है कि एडिस एजिप्टी मच्छरों को मानव रक्त से कुछ ज्यादा ही लगाव है।

अंडे देने की प्रक्रिया से पहले मादा मच्छर इंसान को कई दफे काटती है और फिर किसी नजदीकी गंदगी वाले हिस्से में अंडे भी दे देती है। और फिर अंडों के परिपक्व होने के बाद पुन:प्रसार शुरू होता है चिकनगुनिया का।

इसी प्रकार जीका वायरस एडीज इजिप्टी मच्छर जो यलो फीवर, डेंगू और चिकनगुनिया फैलाता है वहीं जीका विषाणु भी फैलाता हैं। बस इस बार ये मच्छर जीका वायरस का वाहक होता है। जीका वायरस(Zika Virus) के लक्षण भी डेंगू बुखार की तरह होते है. जीका के लक्षण मुख्यतः बुखार, लाल आखें, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, शरीर पर रैशेस यानी लाल चकत्ते होते है.

बच्चों और बड़ों में इसके लक्षण लगभग एक ही जैसे होते हैं.जीका वायरस फ्लाविविरिडए विषाणु परिवार से है. यह विषाणु दिन के समय अधिक सक्रिय रहते हैं.1947 में पूर्वी अफ्रीकी विषाणु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम यूगांडा के जीका जंगल में पीले बुखार पर शोध व् रिसर्च कर रही थी.

वैज्ञानिकों की टीम ने एक रीसस मकाक यानी एक प्रकार के लंगूर को पिंजरे में रख कर शोध कर रही थी. उस लंगूर को बुखार था और उसी से ही यह वायरस मिला था. तभी से ही इस वायरस को जीका वायरस(Zika Virus) के नाम से जाना जाता है.

जब 1948 में फिर से वैज्ञानिकों की टीम ने जीका जंगल में रिसर्च की, तब उन्हें जीका जंगल के मच्छरों में भी वही वायरस मिला. सन 1954 में भी नाइजीरिया में एक व्यक्ति में इसके लक्षण पाए गये थे. इसके बाद 2007 में इसकी खोज होने से पहले इसके संक्रमण के मामले अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में पाए गये थे.

और अंत मे पीतज्वर या 'यलो फीवर' एक संक्रामक तथा तीव्र रोग हैं, जो ईडीस ईजिप्टिआई (स्टीगोमिया फेसियाटा) जाति के मच्छरों के द्वारा होता है। इससे पीड़ित व्यक्ति में पीलिया के संकेत दिखाई देते हैं। लिवर की समस्‍या होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे व्‍यक्ति की त्वचा और आंखों का सफेद वाला भाग पीला पड़ जाता है।

किसी व्यक्ति में इस विषाणु का संक्रमण हो जाने के थोड़े दिनों बाद ही इस बारे में पता चल पाता है। इसमें मृत्युदर 50 फीसदी है। हालांकि इसके लिए दवा और टीका आदि बना हुआ है लेकिन इसे ठीक होने में कुछ दिन लगते हैं। यह रोग कर्क तथा मकर रेखाओं के बीच स्थित अफ्रीका तथा अमरीका के भूभागों में अधिक होता है।

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