फिल्म समीक्षा: द टर्मिनल

 

The Terminal

एक इंसान के विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आपको जीवंत बनाएं रखने की खूबसूरत कहानी ।

मूवी का नायक नवोर्सकी विक्टर किसी काम से न्यूयॉर्क आता हैं । यह काम क्या है ये आप मूवी के अंत मे जानेंगे ।

एयरपोर्ट पर उसे पता चलता है कि उसके देश मे युद्ध छिड़ गया है । अब वो अपने देश वापस नही जा सकता हैं और अब उसका पासपोर्ट और वीज़ा भी यहाँ मान्य नही हैं अर्थात वो न्यूयॉर्क में भी 'अस्वीकार्य' हैं ।

कैसा लगता है जब आपको कही से सिर्फ इसलिए अस्वीकार्य कर दिया जाता है कि आपके देश की वैधता समाप्त कर दी गई है। आपकी पहचान सिर्फ देश से होती हैं, भले ही आप मानव जाति के अन्तर्गत आते हो । लेकिन जैसे ही आप किसी दूसरे देश के निवासी हो जाते हो, दुसरे इंसानो के द्वारा आपको अस्वीकृत कर दिया जाता हैं । क्योकि अब सिर्फ देश ही आपकी पहचान है, अब इन्सान होना आपके लिए पर्याप्त नही ।

अजब दुनिया मे रहते है हम लोग । 🙄

विक्टर बहुत ही भोला, बावला सा, लेकिन सच्चा इंसान, सकारात्मकता और जीवटता से भरपूर हैं । जैसे जैसे मूवी आगे बढ़ती है उसकी अच्छाइयों की वजह से आपको उससे प्यार होने लगता हैं । आपको लगेगा कि ऐसा ही कोई इंसान आपकी जिंदगी में भी होना चाहिए ।

मूवी का एक दूसरा पात्र फ्रैंक है, जो आगे चलकर टर्मिनल का कमिश्नर भी बन जाता है, वो घमंडी और मशीनी इंसान है, उसमे भावना नाम की कोई चीज नज़र नही आती । पूरी मूवी में फ्रैंक, विक्टर को परेशान करते हुए नज़र आता हैं ।

फ्रैंक का मशीन होना उस वक्त साबित होता है जब किसी यात्री को उसके फादर के लिए दवाइयों की जरुरत होती है लेकिन फ्रैंक बिना दवाइयों के फॉर्म के उसे वो दवाई नही लेने देता हैं । बाद में विक्टर दुभाषिया बनकर, भाषा का दुरूपयोग कर, इंसानियत के नाते, वो दवाई उस यात्री को दिलवा देता है ।

यहाँ मूवी में विक्टर का इंसानियत का पहलू उजागर होता है और फ्रैंक के मशीनी मानव होने का,
फ्रैंक जो सिर्फ प्रोटोकॉल को फॉलो करना जानता है, लेकिन शायद ये भूल जाता है कि प्रोटोकॉल बनाने का मकसद इंसान को नुकसान पहुँचाना नही होना चाहिए । इस वाकये के बाद विक्टर टर्मिनल पर छा जाता हैं । लगभग सभी स्टाफ उसकी इंसानियत के कायल हो जाते हैं ।

मूवी में विक्टर टर्मिनल पर ही ट्रॉली को इक्कठे करके अपने खाने पीने जितना रुपया कमाने लगता हैं । फ्रैंक उससे वो काम छुड़वा देता हैं । मूवी में आगे पता चलता है कि विक्टर पेंटिंग और कारपेंटरी में भी माहिर हैं । इसी की वजह से उसे वहाँ अच्छा काम मिल जाता हैं, वहाँ उसकी अच्छी आय भी होने लग जाती हैं । अब टर्मिनल पर गेट नंबर 67 ही विक्टर का घर बन जाता हैं ।

मूवी में विक्टर का औरा इतना पॉजिटिव और प्रभावी दिखाया गया है कि टर्मिनल के अधिकतर लोग उसे जानने, समझने और उससे जुड़ने लगते है, उसके खाने पीने में सहयोग करते है । इसी से मूवी की खूबसूरती बनती हैं ।
एक स्टाफ दूसरे स्टाफ से प्यार करता हैं, लेकिन शर्म के मारे अपनी भावनाएं जाहिर नही कर पाता । विक्टर के सहारे वो अपनी भावनाएं अपने प्यार तक पहुचाता हैं । यह हल्के फुल्के ढंग से पहुँचाया गया प्यार आपको भी गुदगुदाएगा ।

"क्या आपके पास अपोइंटमेंट हैं ?"
यह डॉयलॉग बोलने वाला किरदार भी आपको मूवी में बहुत पसंद आएगा ।

मूवी में अमेलिया और विक्टर के बीच की केमिस्ट्री को भी बहुत खूबसूरती से बुना हैं । जैसे जैसे अमेलिया विक्टर के बारे में जानने लगती है, वैसे वैसे ही वो खुद को विक्टर से अलग करने लगती हैं । उसे महसूस हो जाता है कि वो विक्टर के लिए नही बनी।

यदि हम किसी इंसान के बारे में गहराई से जानने लगे और हमें पता चले कि यह तो अच्छाईयो का पुतला है, तो हम अपने अंदर मौजूद बुराइयों की वजह से उससे कनेक्ट होने से डरेंगे, इन्फीरियर होने का भाव हम पर हावी होने लग जाएगा । अमेलिया के साथ यही होता हैं ।

मूवी के अंत मे पता चलता है कि विक्टर अपने साथ वो मूंगफली का डब्बा साथ लेकर क्यों घूमता हैं ? यह जानकर आपकी भी आंखे नम हो जाएगी । आप जान जाओगे की विक्टर अपने वादे का कितना पक्का हैं । एक जगह वो ये वादा इंसानियत की खातिर तोड़ने को तैयार भी हो जाता हैं । इस बात से पता चलता है कि विक्टर इंसानियत से कितना लबरेज हैं । ये आप मूवी देखकर ही समझ सकते हैं, इसे पोस्ट में समझना मुश्किल हैं ।

मूवी का अंतिम डॉयलॉग "अपने घर जाना हैं" आपको बहुत इमोशनल कर देगा ।

ऐसा माना जाता है कि हम सभी इंसान ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं । लेकिन इंसानों के द्वारा किए गए कारनामो की वजह से शक होने लगता है कि क्या वाकई हम ईश्वर की सर्वोत्तम रचना हैं ?

या फिर यह भी संभव है की हम सभी इंसान क्रमिक विकास की प्रक्रिया से गुजरते हुए जानवरो से इंसान बने हैं । जिस तरह से जानवरो ने अपनी अपनी प्रजाति के अलग अलग दड़बे बनाए, ताकि वो दूसरे प्रजाति के जानवरों से खुद का बचाव कर सकें । हम इंसान भी शायद उन्ही को फॉलो कर रहे हैं, लेकिन क्या हम भूल गए कि हम सभी एक ही प्रजाति के प्राणी हैं, जिसे ह्यूमन कहा जाता हैं । फिर हमने ख़ुद को देश, क्षेत्र, शहर, जाति, धर्म, श्रेष्ठ, निकृष्ट इत्यादि चीजो में क्यों बांटा हुआ हैं ? क्या हम सभी को एक दूसरे से डर लगता हैं ?

या फिर अभी हम लोग पूर्ण रूप से विकसित नही हुए, हममें अभी भी जानवर का वो अंश मौजूद है जो हमे पूर्ण विकसित नही होने दे रहा, जिसकी वजह से हम ह्यूमन होने के बावजूद भी एनिमल्स के जैसे अलग अलग दड़बों में, कभी देश के रूप में, कभी धर्म के रूप में कभी जाति के रूप में, इत्यादि, बंटे हुए हैं ।

शायद अभी पूर्ण विकास होना बाकी हैं ।

शुक्रिया । 🦋

Movie : The Terminal (2004)
Audio : Hindi & English
Availability : Prime Video

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