धर्म यात्रा 6
धार्मिक चमत्कारों के दावे और हकीकत
देखिये हजारों साल से लोग जंगलों में रहते आ रहे हैं— अफ्रीका, अमेजॉन के वनों
में आज भी सभ्य दुनिया से दूर आदिवासी जीवन जीने वाले हजारों सालों से सर्वाइव
करते आ रहे हैं— सोचिये कैसे?
Amazon's Life |
न उन्हें कोई किताब मिली,
न कोई डॉक्टर वैज्ञानिक पंहुचा उन तक,
लेकिन फिर भी उन्हें सहज ज्ञान है कि क्या खाना है— क्या पीना है, कैसे खाना पीना
है... बीमार हुए तो किस बीमारी के लिये कौन सी बूटी लेनी है। वे सदियों से इस सहज
ज्ञान के साथ जी रहे हैं— अब उनमें से ही कोई इस बाहरी सभ्य दुनिया में आये और
यहां की चीजों को देख कर कहे कि आप लोगों को यह चीजें अब पता चलीं— हमें तो सदियों
पहले हमारे पुरखे बता गये थे। तो आप मान लेंगे कि उनके पुरखे चमत्कारी वैज्ञानिक
आदि थे?
अब थोड़ा इस वन जीवन से बाहर "आज" में आइये। कहानियाँ, लोक कथायें
कैसे लिखी जाती हैं— क्या आधारभूत मटेरियल होता है उसमें? एक तो उसमें
उसमें आज तक उपलब्ध ज्ञान होता है और होती हैं भविष्य से जुड़ी कल्पनायें— यह
कल्पनायें वर्तमान से जुड़ी भी हो सकती हैं और भूत या भविष्य से भी।
उदाहरणार्थ हॉलीवुड मूवीज देख लीजिये— उनके पास वर्तमान तक उपलब्ध ज्ञान और
भविष्य की कल्पनाओं से ओतप्रोत 'एटर्नल
सनशाईन ऑफ स्पॉटलेस माइंड'
है जहां नायक नायिका अपने दिमाग से वह स्मृतियाँ खुरचवा रहे हैं जो एक दूसरे
से जुड़ी हों। 'ऑफ्टर
अर्थ' है जो
पृथ्वी पर जीवन समाप्त होने के बाद की कल्पना साकार करती है। 'डे ऑफ्टर
टुमॉरो,' '2012' हैं जो
भविष्य की उन विपत्तियों की ओर इशारा करती हैं जिससे पृथ्वी पर मानव सभ्यता खत्म
हो सकती है। 'स्टार
वार्स', और 'अवतार' हैं जो पृथ्वी
से बाहर एक अलग दुनिया में ले जाती हैं।
धर्म के नाम पर कल्पनाओं को भविष्यवाणी समझ लिया गया
यह सब इंसानी दिमाग की क्षमता के अंदर की चीजें हैं लेकिन भविष्य में अगर
वैसा कुछ हो जो इन फिल्मों में दिखाया गया है— और मान लीजिये इसी मेमोरी के साथ
आपको भी उसी भविष्य में पंहुचा दिया जाये तो क्या आप यह मान लेंगे कि इन फिल्मों
को बनाने/लिखने वाले चार्ली कफमैन,
विल स्मिथ, रोलैंड
एमरिच, जार्ज
लुकास या जेम्स कैमरान दैवीय हैं और उन्हें भविष्य की जानकारी थी? या कल को 'वर्ल्ड वार जेड', 'रेजिडेंट एविल', 'आई एम द लीजेंड' की तरह कोई
वायरस संक्रमण इंसानी सभ्यता को खत्म कर दे तो आप इस पर ईमान ले आयेंगे कि इन
फिल्मों को बनाने वाले लोगों को भविष्य की जानकारी थी?
हर्गिज नहीं मानेंगे— लेकिन इसी तरह उपलब्ध ज्ञान और भविष्य की कल्पनाओं के
सहारे रची गयी धार्मिक किताबों को बे चूं चरां ऐसा ही चमत्कारी मान लेते हैं। उनके
लिये दावे करने बैठ जाते हैं कि साइंस ने आज प्रूव किया— हमारे यहां तो यह बातें
चौदह सौ/हजारों साल पहले बता दी गयी थीं।
फिर मुस्लिम तो बाकायदा फलाँ-फलाँ वैज्ञानिक और सेलिब्रिटी की पब्लिसिटी
करेंगे कि हमारा यह चमत्कार देख कर कैसे ईमान ले आया— अच्छा वह लोग उन चमत्कारों
से अभिभूत हो जाते हैं,
ईमान ले आते हैं तो ऐसे खुद आप दूसरों के चमत्कार से क्यों नहीं प्रभावित होते? कुछ चमत्कार तो
हिंदू धर्म में भी हैं— आयुर्वेद हजारों साल पुराना है— क्या विज्ञान इसे प्रूव
नहीं करता? क्या
टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रेरणा लुईस जो ब्राउन ने कौरवों के जन्म से नहीं ली थी?
आज हम जानते हैं कि समय की गणना अलग-अलग ग्रहों पर अलग-अलग है और अगर आप
वरुण पर एक वर्ष गुजारते हैं,
पृथ्वी पर 164 वर्ष
गुजर जाते हैं, बुद्ध
का एक दिन पृथ्वी के नब्बे दिनों के बराबर होता है— लेकिन पद्मपुराण और भागवतपुराण
में एक कथा है कि इन्द्र ने मुचुकन्द को असुरों से लड़ने के लिये बुलाया था तो उनकी
लगभग एक वर्ष की लड़ाई में पृथ्वी पर हजारों साल गुजर गये थे या फिर—
दैवे रात्र्यहनी वर्षं प्रविभागस्तयोः पुनः।
अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्याद्दक्षिणायनम् ।।
मनुस्मृति-1/67
Makar Sankranti |
अर्थात- मनुष्य के एक वर्ष के बराबर देवताओं का अहोरात्र (रात्रि-दिन) होता
है! उत्तरायण (मकर से मिथुन राशि तक) दिन और दक्षिणायन (कर्क से धनुराशि तक)
देवताओं की रात्रि होती है! ध्रुवों की खोज अट्ठारहवीं-उन्नीसवीं सदी में हुई और
यह ज्ञान कोई बहुत पुराना नहीं कि ध्रुवों पर छः-छः महीने के दिन रात होते हैं
लेकिन मनुस्मृति में हजारों साल पहले लिख दिया गया।
बताइये, उन्हें
यह सब बातें पहले से ही पता थीं,
जो वैज्ञानिकों को अब जा के पता चली हैं। तो इन चमत्कारों को सुन कर क्या ईमान
डगमगाया आपका? लगा कि
इन चमत्कारों पर यकीन करते हुए आप हिंदू हो सकते हैं? नहीं न— और मजे
की बात है कि ऐसे ही चमत्कारों के हवाले से दूसरों को मुसलमान बना लेते हैं।
इंसान भविष्य की कल्पनायें कर सकने में सक्षम है
भविष्य को लेकर हमेशा इंसानों ने अजब गजब कल्पनायें की हैं— हाल ही में जे
के राउलिंग की 'हैरी
पोटर' और
जेम्स कैमरॉन की 'अवतार' की कल्पना ने
लोगों में जबरदस्त रोमांच पैदा किया... जे के राउलिंग की कल्पना भले अद्भुत थी, लेकिन फिर भी
उस नियम से बंधी थी जिससे 99.99 लोग
बंधे होते हैं। यानि आपका दिमाग बस उन चीजों की कल्पना कर सकता है जिसे आपने देखा
सुना हो, इस
दुनिया से संबंधित हो और जो आपका ईश्वर पहले ही गढ़ चुका हो—
Avtar Concept |
जबकि इसके उलट 'अवतार' (और भी कई मूवी
हैं) में वह चीजें क्रियेट की गयी थीं जिनका अस्तित्व ही नहीं, जिन्हें कभी
देखा सुना जाना नहीं गया— यानि ईश्वर के समकक्ष खड़े हो कर नयी चीजें गढ़ने जैसा, जो इंसानी
दिमाग से बाहर की हों। फिर मान लीजिये दो तीन हजार साल बाद हम किसी और ग्रह पर
वैसी ही चीजें पाते हैं तो?
इसे बस एक इत्तेफाक ही कहा जा सकता है न— या जेम्स कैमरान जैसे लोगों को कोई
पीर पैगम्बर घोषित कर दिया जायेगा। तो ऐसी विलक्षण प्रतिभा भी इसी प्लेनेट के
इंसानों में ही है, लेकिन
इससे वे दैवीय या अलौकिक नहीं हो जाते।
देखिये, जो भी
खोजें या आविष्कार होते हैं उनकी कहीं न कहीं से तो प्रेरणा ली ही जाती है— जैसे
आपके धर्म में पांच हजार साल पहले लिख दिया गया कि हैरी पॉटर झाड़ू ले के उड़ता था
तो चूँकि हमेशा से इंसान की दिलचस्पी उड़ने में रही है तो अथक प्रयासों के बाद अंततः
उसने पैरा ग्लाइडिंग करने या विमान बनाने में सफलता पाई ही... तो यह उस शख्स या उन
लोगों की कामयाबी है, इसका
क्रेडिट आप अपनी हैरी पॉटर वाली चंपक कथा को नहीं दे सकते— कि उन्होंने तो आज उड़ना
सीखा, हमने
तो पांच हजार साल पहले ही हैरी पॉटर को उड़ा दिया था।
खोज और
आविष्कार का इन धर्म ग्रंथों से बस इतना ही नाता है कि प्रेरणा कहीं से भी ली जा
सकती है— किसी रामायण, महाभारत, कुरान से भी और
मुंशी प्रेमचंद या जे के राउलिंग की कहानियों से भी। अगर धार्मिक किताबों में इतना
ही वैज्ञानिक ज्ञान होता तो इनके माहिर मौलाना पंडित हर खोज और आविष्कार खुद किये
होते न कि दूसरों की मेहनत पर उनकी तारीफ करने के बजाय पूरी बेशर्मी से उनका
क्रेडिट अपनी धार्मिक किताबों को देते।
इस्लाम और चमत्कार
Moore's Book |
धर्म से जुड़े जिन चमत्कारों की
बहुत ज्यादा चर्चा होती है,
उनमें एक कुरान की सूरह मोमिनून की 12-14 आयत
है, जिसमें
भ्रूण के बनने का प्रोसेस है— और एक कनाडाई वैज्ञानिक कीथ मूर थे जिन्होंने इस
प्रोसेस को चमत्कार माना और फिर ईमान ले आये— और इस तरह ढोल नगाड़े बजा कर पूरे
मुस्लिम वर्ल्ड ने उनका स्वागत किया और वे पूरी दुनिया द्वारा पहचाने गये। सोचिये, उन्होंने ऐसा न
किया होता तो क्या पहचान थी उनकी.. हजारों गुमनाम वैज्ञानिक भरे पड़े हैं दुनिया
में… वह भी उन्ही में से एक होते।
ज्यादातर लोग (वैज्ञानिक भी) मूल रूप से किसी अनदेखे ईश्वर में आस्था रखने
वाले आस्तिक ही होते हैं,
भले उनका प्रोफेशन विज्ञान से संबंधित हो— वे कभी विज्ञान या आधुनिक शिक्षा को
अपने ऊपर अप्लाई नहीं करते,
इसे भारत में ही कमिश्नर रह चुके सत्यपाल या डॉक्टर कहे जाने वाले हर्षवर्धन
के बयानों से बखूबी समझा जा सकता है।
हमारे यहां भी कलाम जैसे आस्तिक वैज्ञानिक ही होते हैं जो गीता पढ़ते थे और
जीवित रहते तो ये भी हो सकता था कि कभी हिंदू ही हो जाते... ‘इसरो’ में नारियल फोड़
कर रॉकेट चलाने वाले आस्तिक ही वैज्ञानिक हैं— वे भी आस्था के मारे ही हैं, कल को कहीं और
चमत्कार जैसा कुछ नजर आया तो बौद्ध,
इसाई या मुस्लिम हो सकते हैं...
ऐसे में जाहिर है कि उनका एक धर्म छोड़ दूसरे धर्म में चले जाना कोई उपलब्धि
या विरल घटना नहीं। किसी के वैज्ञानिक होने का मतलब यह हर्गिज नहीं होता कि वह
विज्ञान और तर्क को अपनी नौकरी या बिजनेस के साथ ही निजी जीवन में भी मान्यता देता
है।
क्या एम्ब्रोयोलॉजी का ज्ञान चमत्कार हो सकता है
अब जरा मूर की नजर से इस चमत्कार को देखते हैं— उनके मुताबिक कुरान ने यह
बातें सातवीं शताब्दी में बता दीं,
जबकि विज्ञान ने यह बातें बहुत बाद में बताईं तो इस चमत्कार को नमस्कार तो
बनता है। अब मूर की ही मानें तो सातवीं शताब्दी से पहले अरब और आसपास के इलाकों
(जिन तक उनका संपर्क था) के रहने वाले एकदम मतिमूढ़ थे— उन्हें कुछ भी नहीं पता
था। हो सकता है कि वे खाना भी नाक से खाते रहे हों।
Fetus Process |
मतलब वे इस हद तक अंजान थे कि जब कुरान ने उन्हें बताया कि हमने तुम्हें एक
नुत्फे (वीर्य) से पैदा किया तब उन्हें यह पता चला, वर्ना वे भी हमारे बचपने की तरह ही यह समझते थे कि बच्चे
अस्पताल से आते हैं या आस्मान से कोई फरिश्ता आ कर छोड़ जाता है। सहवास पता नहीं
क्या सोच कर करते होंगे और चरमोत्कर्ष के बाद जारी वीर्य को शायद मूत्र की ही कोई
वाहियात अवस्था समझते होंगे।
और अंजान भी इतने थे कि उन्हें आसपास की भी खबर नहीं थी। भारत में ही वीर्य
की महिमा हजारों साल पहले लिख दी गयी थी जहां देवताओं के जहां तहां टपके वीर्य से
ऋषि मुनि पैदा हो रहे थे— द्रोणाचार्य,
कृपाचार्य जैसे आचार्य इस टपके वीर्य की महिमा से विकसित हो रहे थे। अफसोस कि
मूर को भारतीय चमत्कार न दिखे,
वर्ना बनारस के किसी घाट पर उनकी भी कुटी होती।
Written by Ashfaq Ahmad
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