अशूर्बनीपाल


अगर अशूरबनीपाल का ज़िक्र हो और उसकी लाइब्रेरी का ज़िक्र ना हो तो यह उस इल्म दोस्त हुक्मुरा के साथ ना इंसाफी होगी!!

अशूर्बानिपाल बेबीलोन से तीन सौ मील की दूरी पर जो दजला और फरात के बीच का इलाका था, असीरिया, यहां का राजा बना, यहां मकसद ही सैनिक जीवन था, यह लोग जंगजू ,बहादुर,जोशीले होते थे हर वक़्त लड़ने को तैयार,इनका बुत भी "अशूर"था जो जंग करने की प्रेरणा देता ता,ऐसे माहौल में अशूरबनिपाल जैसा हूकमुरा होना हैरत में डालता है!

तकरीबन 2800 साल पहले इस आदमी ने नेनवा जो इसकी राजधानी थी वहीं एक लाइब्रेरी क़ायम की जिस में आस पास के इलाकों की 40000 किताबें मौजूद थीं,यह किताबें पहले गीली मिट्टी पर क्यूनिफॉम स्क्रिप्ट में लिखी जाती थीं फिर इन्हें सुखा लिया जाता था और यह शिला ही ऐक किताब का पेज बन जाती थी!


इस लाइब्रेरी में शिला लेख लाने का,उन्हें ला कर रखने का,उनकी देखरेख करने का,उनका तर्जुमा करने का,उनकी नकल बनाने का,सब अलग अलग शाही डिपार्टमेंट थे ,उन में ढेरों लोग काम करते थे,अशूर्बानीपाल ख़ुद हर काम को चेक करता था!


यह किताबें हिस्ट्री, जियोग्राफी,धर्म, एस्ट्रोनॉमी,जादू, संगीत , नज्में और लोक कथाओं के बारे में होती थीं!


इस हैरतअंगेज राजा के मरने के बाद उसका बेटा तख्त पर बैठा मगर इतना मज़बूत ना था , करीब की बेबीलोन आर्मी ने हमला किया और नेन्वा को तहस नहस कर दिया,लाइब्रेरी को भी नुकसान पहुंचाया लेकिन फिर भी कुछ हज़ार किताबें मिट्टी और धूल में दब कर 1850 ईसवी तक बची रह गईं
!

जब अंग्रेज आर्कियोलॉजी वालों ने वहां की खुदाई की तो यह शिलालेख मिले,जो आज भी ब्रिटिश म्यूजियम में महफ़ूज़ हैं!


हम आज कुछ किताबें जमा कर के कितने खुश होते हैं,कितना मुश्किल था उस दौर में किताबें लिखना, उन्हें जमा करना ,उन की हिफाज़त करना और फिर हज़ारों साल बाद उस इल्म को नई नस्ल को सौंप देना!!


अशूर्बनिपाल को सलाम हम किताब प्रेमियों की तरफ से !!!


Written by Tasweer Naqvi

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