न्यूरो लिंक क्या है?

 


आने वाला तकनीक आधारित विकास कैसा होगा?

जैसा कि हम लोग जानते हैं आज के दौर में विज्ञान बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। आये दिन कंपनियां कुछ ना कुछ अविष्कार करती रहती हैं, अगर टेक्नोलॉजी की बात करें तो ओप्पो, वीवो जैसी कंपनियां भी फोन के मामले में काफी एडवांस हो चुकी हैं।

काफी जगह तो उड़ने वाली बाइकों पर भी प्रयोग किया गया है, उड़ने वाली कार भी बनाई गई हैं, कुछ दिन पहले टीवी पर ऐड देखी थी कि बिजली से चलने वाली कार तक आ गई है। टीवी से लेकर हमारी बाइक तक हर चीज एडवांस हो चुकी है। विज्ञान का यह दौर बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है... उसी में से आज बात करेंगे एलन मस्क की, जो विज्ञान के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुके हैं ।

एलन मस्क की न्यूरोलिंक तकनीक से क्या हम बहुत जल्द साईबोर्ग बनाने जा रहे हैं? एलन मस्क का नाम तो आप सब ने सुना ही होगा। एलन मस्त बहुत जुनूनी व्यक्ति हैं। अगर जूनून, कड़ी मेहनत और लीक से हट कर प्रयोग करने, जोखिम उठाने और अंततः सफलता पाने का कोई प्रतिक चिन्ह हो सकता है, तो वो हैं एलन मस्क।

वह एक ऐसे व्यक्ति है जो विज्ञान के क्षेत्र में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। एलन मस्क ने विज्ञान के क्षेत्र में जो भी प्रयोग किये वो समय से काफी आगे हैं उनके प्रयोगों ने दुनियां को अचंभित कर दिया।

पेपल स्पेसएक्स और टेस्ला मोटर्स जैसे क्रांतिकारी प्रोजेक्ट के फाउंडर एलन मस्क द्वारा विज्ञान के नए प्रयोगों की लिस्ट में नया नाम है नयूरोलिंक तकनीक... जो मानव जाति के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। तो चलिये, जानते है क्या है ये नयूरोलिंक तकनीक और कैसे ये पूरे मानव जाति के सामर्थ्य को बदल कर रख देने की क्षमता रखती है ।


न्यूरोलिंक तकनीक क्या है?

न्यूरोलिंक, एलन मस्क के नेतृत्व वाली एक स्टार्टअप कंपनी है जिसे वर्ष 2017 में स्थापित किया गया था। इस कंपनी का उद्देश्य ऐसी तकनीक का अविष्कार करने और उसके वाणिज्यिक उपयोग का है, जिससे हम सीधे अपने दिमाग को कंप्यूटर से जोड़ सकें।

मनुष्य आम तौर पर डिजिटल सिस्टम के साथ इंटरैक्ट करने के लिये इनपुट अपनी उंगलियों, आवाज या चेहरे के हाव भाव के माध्यम से प्रदान करते हैं जो कंप्यूटर या सिस्टम में जाता है और प्रोसेस होता है लेकिन इनपुट का ये तरीका काफी धीमा है और इसकी काफी सीमायें हैं...

जैसे कोई विकलांग व्यक्ति, अंधा व्यक्ति या मूक बधिर व्यक्ति के लिये कंप्यूटर का इस्तेमाल करना उतना सहज नहीं जितना एक आम इन्सान के लिये है, जिस तरह हम ओर आप यूज़ कर सकते हैं, उस तरह वह नहीं कर सकते है ।

इसीलिये न्यूरोलिंक कंपनी एक नई तकनीक, जिसे नयूरोलिंक तकनीक कहा जा रहा है-- का इस्तेमाल कर के एक ऐसे डिवाइस को विकसित कर रही है जो किसी भी डिजिटल सिस्टम और मस्तिष्क के बीच एक इंटरफ़ेस का कार्य करेगा, जिससे सिर्फ सोचने भर से ही वो जानकारी सीधे कंप्यूटर में चली जायेगी, जिसे कंप्यूटर द्वारा अलग-अलग कार्यो को संपन्न करने के लिये इनपुट के तौर प्रयोग किया जायेगा।

यह सोचने में कितना अच्छा है कि मात्र आप अपने दिमाग में कुछ भी सोचें और वह झट से कंप्यूटर में हो जाये.. इस तकनीक से कितना काम आसान हो जायेगा और फ्यूचर कहां चला जायेगा, आप सोच नहीं सकते।

ऐसा नहीं है की न्यूरेलिंक यानी दिमाग को सीधे कंप्यूटर से जोड़ने की तकनीक अचानक एक दिन प्रकट हो गई हो। इसके पीछे शैक्षणिक अनुसंधान का एक लंबा इतिहास है.. काफी लोग पहले भी प्रयास कर चुके हैं।

सबसे पहले 2006 में रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण पक्षाघात के शिकार मैथ्यू नागल ने ऐसी ही एक तकनीक की सहायता से केवल अपने दिमाग का उपयोग करके पिंग पोंग गेम खेला था। सिर्फ अपने दिमाग का इस्तेमाल कर कंप्यूटर से इंटरैक्ट करना सिखने में उन्हें मात्र चार दिन लगे थे। इसके बाद ही वैज्ञानिको ने लकवाग्रस्त लोगों के लिये सीधे दिमाग से संचालित रोबोटिक अंग विकसित करने का प्रयास आरंभ कर दिया था ।

मैथ्यू नागल पर जिस डिवाइस/इंटरफ़ेस का उपयोग किया गया था उसे ब्रेनगेट कहा जाता है, जिसे शुरू में ब्राउन विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था।

ब्रेनगेट तकनीक में, 128 इलेक्ट्रोड चैनलों वाली ठोस सुई की एक श्रृंखला होती है जिसे मनुष्य के सर में फिट कर दिया जाता है ये 128 इलेक्ट्रोड मस्तिष्क में विद्युत संकेतों का पता लगाते हैं, रिकॉर्ड करते हैं और इस जानकारी को शरीर के बाहर कंप्यूटर तक पहुंचाया जाता है, जिससे कंप्यूटर अपना कार्य करता है।

लेकिन इस तकनीक में एक समस्या ये है कि कम इलेक्ट्रोड होने के कारण मस्तिष्क से बहुत कम सूचना ही प्राप्त हो सकती है जो जटिल कार्यों को संपन्न करने के लिये पर्याप्त नहीं है। इसकी दूसरी समस्या ये है कि दीर्घकालिक इस्तेमाल में इसकी ठोस सुइयां दिमाग को नुकसान भी पंहुचा सकती हैं लेकिन विज्ञान उसका भी इलाज ढूंढ लेगा, जब इतना पता कर लिया है तो।


न्यूरोलिंक तकनीक कैसे काम करती है?

न्यूरोलिंक द्वारा विकसित किया जा रहा डिवाइस या इंटरफ़ेस, थ्रेड्स पर आधारित तकनीक पर काम करता है, जिसे मानव मस्तिष्क के ऊतकों को बिना प्रभावित किये हुए उन ऊतकों के आस पास प्रत्यारोपित किया जायेगा। इस डिवाइस में ऐसे 96 थ्रेड्स हैं जिनमे कुल 3,072 इलेक्ट्रोड शामिल हो सकते हैं।

ये थ्रेड पॉलीमर फाइबर से बने है इसलिये काफी लचीले हैं और दिमाग को बिना नुकसान पंहुचाये लम्बे समय तक मस्तिष्क के साथ जुड़े रह सकते हैं इन थ्रेड की मोटाई मात्र 4 से 6 माइक्रोन है यानी हमारे बाल से भी तीन गुना पतला ।

पर इन लचीले थ्रेड्स को मस्तिष्क के कठोर आवरण के भीतर ले जाना भी एक समस्या है, जिसके लिये न्यूरलिंक स्टार्टअप ने एक न्यूरोसर्जिकल रोबोट भी बनाया है जो मानव मस्तिष्क में प्रति मिनट ऐसे छह थ्रेड्स डालने में सक्षम है।

ये न्यूरोसर्जरी रोबोट अपने आप में एक तरह का कंप्यूटर और सिलाई मशीन का मिश्रण है। यह रोबोट मस्तिष्क के विशिष्ट भागों को पहचानने और किसी भी रक्त वाहिकाओं को बिना नुकसान पंहुचाये, इन थ्रेड्स को मस्तिष्क तक ले जाने में सक्षम होगा।

न्यूरोलिंक तकनीक में ऐसे प्रत्येक थ्रेड में 192 इलेक्ट्रोड का समूह होता है, जो एक छोटे इम्प्लांटेबल डिवाइस के साथ संलग्न होता है जिसमें कस्टम वायरलेस चिप्स होते हैं, जिसका आकार 4×4 मिलीमीटर होता हैं यानी एक बार थ्रेड को मस्तिष्क के साथ फिट कर देने के बाद इस चिप को सर पर फिक्स किया जा सकता है .

परन्तु इतना कुछ होने के बावजूद ये डिवाइस जितना डाटा मस्तिष्क से रिकॉर्ड कर पायेगी वो किसी भी जटिल कार्य को करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसलिये इस डिवाइस को आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ जोड़ा जायेगा जो कम सूचनाओ को संवर्धित कर इस लायक बना देगा, जिससे जटिल कार्यो को भी आसानी से किया जा सके.


इस तकनीक के पीछे का विज्ञान क्या है?

हमारे मस्तिष्क के न्यूरॉन्स, सिनेप्स के माध्यम से एक दुसरे के बीच सूचनाओ का आदान-प्रदान करते हैं। इन कनेक्शन बिंदुओं पर, न्यूरॉन्स न्यूरोट्रांसमीटर नामक रासायनिक संकेतों का उपयोग करते हुए एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं जो एक्शन पोटेंशिअल नामक एक विद्युत स्पाइक के जवाब में जारी किये जाते हैं ।

जब एक न्यूरॉन सही प्रकार के न्यूरोट्रांसमीटर इनपुट को पर्याप्त रूप से प्राप्त करता है तो एक चेन रिएक्शन शुरू हो जाता है जिसमें न्यूरॉन्स सिनाप्सेस को संदेश पास करते जाते हैं जो एक्शन पोटेंशिअल का कारण बनता है। ये एक्शन पोटेंशिअल एक विद्युत क्षेत्र का उत्पादन करते हैं जिसके पास में इलेक्ट्रोड रख कर पता लगाया जा सकता है और जिससे एक न्यूरॉन द्वारा उत्पन्न की गई सूचना को रिकॉर्ड किया जा सकता है।

फ़िलहाल तो इस तकनीक का उद्देश्य चिकित्सा ही है, जैसे पक्षाघात के शिकार लोगो के लिये ऐसी सुविधा उपलब्ध करना जिससे वो केवल अपने दिमाग की मदद से अपने जरूरी काम कर सके या विकलांग लोगो के लिये और बेहतर रोबोटिक अंग बनाना जो सीधे उनके दिमाग द्वारा संचालित होंगे। इसके अलावा दृष्टि, श्रवण या अन्य संवेदी कमियों को दूर करने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

पर ये उपयोग अभी सैद्धांतिक स्तर पर ही है, हालाँकि कुछ सफल प्रयोग चूहे और बन्दर पर किये जा चुके हैं पर मनुष्यों पर इसका प्रयोग इसी साल से ही प्रारम्भ हो सकेगा। वास्तव में कंपनी यह उम्मीद कर रही है की स्टैनफोर्ड और अन्य संस्थानों के न्यूरोसर्जन के साथ संभावित सहयोग के माध्यम से 2021 वर्ष के प्रारम्भ में ही मनुष्यों पर इसका प्रयोग कर लिया जाएगा ।

यानी भविष्य में, न्यूरालिंक का उपयोग मस्तिष्क की चोटों और कई बीमारियों के इलाज के लिये किया जा सकता है, जिसमें लकवा से ले कर अल्जाइमर तक सभी शामिल हैं और इसी तकनीक का इस्तेमाल कर हम, भविष्य में हॉलीवुड फिल्मों में दिखाए जाने वाले, आधे मानव आधे मशीन यानी Cyborg भी बना सकेंगे ।

एलन मस्क के लिये नयूरोलिंक तकनीक वर्तमान और संभावित भविष्य से कहीं आगे का प्रोजेक्ट है, जिसमे अपार सम्भावनाये हैं। मस्क के शब्दों में लंबी अवधि में इस तकनीक का उपयोग एआई Artificial Intelligence से हमारे अस्तित्व संबंधी खतरे को दूर करने में किया जायेगा।

मस्क ने एक कार्यक्रम में ये बताया कि आखिरकार हम पूर्ण रूप से मस्तिष्क और मशीन का समायोजन कर सकते हैं, जिसका अर्थ है, की हम एआई (Artificial Intelligence) के साथ एक प्रकार का सहअस्तित्व प्राप्त कर सकते हैं, मस्क के अनुसार यह मानव सभ्यता के लिये एक महत्वपूर्ण आयाम होगा, क्योंकि वर्तमान बौद्धिक स्तर पे हम एआई से हमेशा पीछे रह जाएंगे, जबकि एक उच्च बैंडविड्थ मस्तिष्क-मशीन इंटरफ़ेस के साथ, हमारे पास एआई से मुकाबला करने का विकल्प होगा।

आसान शब्दों में कहें तो यहाँ मस्क शायद हॉलीवुड फिल्म "द मैट्रिक्स” की तरफ इशारा कर रहे थे, जिसमे एआई (Artificial Intelligence) वाला कंप्यूटर प्रोग्राम पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लेता है और मनुष्य अपने दिमाग में ऐसा ही कोई डिवाइस कनेक्ट कर मस्तिष्क के स्तर पर उस कंप्यूटर प्रोग्राम से लड़ते हैं और जीतते हैं। यानी नयूरोलिंक तकनीक हमें भविष्य में एआई से लड़ने में सक्षम बनाने वाली तकनीक है।

भविष्य में कई तरह की तकनीक आएंगी। हम हॉलीवुड फिल्मों से ही अंदाजा लगा सकते हैं। Netflix पर एक मूवी है altered carbon उस मूवी में इंसानों के दिमाग की एक मेमोरी चीप बना कर रख लिया जाता है अगर मनुष्य मर जाता है तो उसे किसी और बॉडी में उसकी चिप डालकर उसे जीवित किया जा सकता है. उसकी सारी मेमोरी और सारी फीलिंग हाव भाव उसी चिप के अंदर होते हैं।
अगर आप ऐसे ही शुरुआत करें तो आज हमारे हाथ में जो स्मार्टफोन है, उनमें भी पॉप अप कैमराआ चुके हैं, फिंगर प्रिंट डिस्पले के अंदर है , Artificial intelligence स्मार्ट फोन के अंदर पाई जाती है। हम जो भी अपना स्मार्टफोन चलाते हैं, अगर हम कोई भी चीज सर्च कर लेते हैं तो हमारा पूरा फोन उस हिसाब से ओर उस से रिलेटेड वही चीज हमको दिखाता है। वह हमको समझ चुका होता है कि क्या देखना चाहते हैं।

Written by Munesh

1 comment:

  1. बढ़िया जानकारी ��

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