जाॅम्बीज

 


जाॅम्बीज क्या हैं 

जाॅम्बीज वाली फ़िल्में तो आप सभी ने देखी ही होंगी। हॉलीवुड में ऐसी फिल्मों की लम्बी फेरहिस्त है। प्राचीन कथाओं और मिथकों में ज़ोम्बी का अर्थ है जिन्दा लाश। यानी कोई मृत देह जिसे संभवतः किसी जादूगर ने तिलिस्मी शक्तियों से जीवित कर दिया है, और जो कि अब उस जादूगर के आदेशों की गुलाम है।

वर्तमान हॉलीवुड फिल्मों में इसे अधिक यथार्थपरक बनाने के लिए जादूगर की जगह किसी खतरनाक वायरस को दे दी गयी है जो लोगों को संक्रमित कर उन्हें मानव रक्त की प्यासी जिन्दा लाशों में बदल देता है। इन्हें देखकर एक सवाल मन में सहज ही उठता है कि क्या वास्तव में दुसरे जीवों के शरीर में रहने वाले सूक्ष्म परजीव अपने आकार से करोड़ों गुना बड़े किसी जीव के व्यवहार को नियंत्रित कर सकते हैं? क्या ज़ोम्बीज वास्तव में होते हैं? क्या वास्तविक जीवन में इसका कोई उदहारण है?

जवाब है, हाँ! एक नहीं बहुत सारे उदाहरण हैं।


सूक्ष्म परजीवियों का जीवन चक्र एक होस्ट से दुसरे होस्ट तक पहुँचने पर निर्भर करता है, कई बार वे ऐसा होस्ट के व्यवहार को नियंत्रित कर करते हैं। बल्कि कई बार तो सीधे तौर पर वे होस्ट के ब्रेन को ही हाइजैक कर लेते हैं।

गॉर्डियन वर्म जिसे इसकी बनावट के कारण हॉर्स हेयर वर्म भी कहा जाता है एक ऐसा ही परजीवी है। ये परजीवी कई प्रजातियों के कीटों को अपना निशाना बनाते हैं और उनके शरीर में पलते रहते हैं। इनके पसंदीदा शिकारों में से एक है झींगुर। झींगुर के शरीर में चुपचाप पलता ये परजीवी उसे अधिकांश समय कोई कष्ट नहीं देता सिवा तब के जब उसे प्रजनन करना होता है।

प्रजनन योग्य होने पर इसे किसी नदी पोखर की तलाश रहती है जहाँ ये अपने साथियों के साथ सहवास कर प्रजनन कर सके। लेकिन झींगुर को तो पानी में जाना पसंद नहीं। तो ये परजीवी कुछ खास प्रोटीन का निर्माण करता है जो झींगुर के व्यवहार को इस तरह नियंत्रित करते हैं कि वह एक शराबी की तरह गिरता पड़ता पानी में जम्प लगा देता है और जल समाधी ले लेता है।

एक बार झींगुर के पानी में पहुँचते ही ये परजीवी उसके शरीर से बाहर आकर सहवास और प्रजनन करता है और इसके अण्डों को पानी में मौजूद मच्छर जैसी कई प्रजातियों कीटों के लार्वा द्वारा खा लिया जाता है। बाद में जब ये लार्वा मेटामोर्फोसिस के द्वारा मच्छर जैसे उड़ने की क्षमता को प्राप्त कर लेते हैं तो ये पानी को छोड़कर बाहर निकलते हैं जिनमें से कुछ का झींगुरों तथा कुछ अन्य प्रजातियों के कीटों द्वारा शिकार कर लिया जाता है, जिसके जरिये ये पुनः अपने होस्ट के शरीर में पहुँच जाते हैं।


अमेज़न के घने जंगलों में पायी जाने वाली एक परजीवी फंगस भी कुछ इसी तरह अपने होस्ट के व्यवहार को नियंत्रित कर अपना जीवन चक्र पूरा करती है। इसका पसंदीदा शिकार है चींटियाँ। हवा में तैरते इसके सूक्ष्म बीजाणु चींटियों के बाहरी कवच को भेदकर उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और धीरे धीरे चींटी के व्यवहार को नियंत्रित करने लगते हैं।

इससे संक्रमित चींटी अपने दैनिक कार्यों को छोड़कर फंगस के लिए माकूल किसी नम जगह की तलाश में निकल पड़ती है। उपयुक्त जगह मिलने पर ये पास में मौजूद किसी पेड़ की पत्ती में अपने दांत गड़ाकर अपनी मौत का इन्तजार करती है।

इस दौरान शरीर में मौजूद फंगस चींटी के शरीर में मौजूद उर्जा का उपभोग कर अगले चरण की तैयारी करती है। जिसमें चींटी के सर से बीजाणुओं युक्त एक सिरा उगता है जिसमें मौजूद बीजाणु हवा के माध्यम से आस पास फ़ैल जाते हैं और पुनः किसी चींटी को अपना शिकार बनाते हैं।

टैक्सोप्लाज्मा नामक एक बैक्टीरिया अपना जीवन चक्र चूहों के व्यवहार को नियंत्रित कर पूरा करता है। इससे संक्रमित चूहे के भीतर से शिकारी का भय ख़त्म हो जाता है। लिहाजा वह बिल्ली के सामने बहादुरी से डटा रहता है और नतीजतन शिकार हो जाता है।

बिल्ली के मल में इसके जीवाणुओं की मौजूदगी रहती है जो कि सम्पर्क में आने वाले जीवों को संक्रमित कर देती है। ये बैक्टीरिया मनुष्यों को भी संक्रमित करता लेकिन कुछ मामलों को छोड़कर मनुष्यों में कोई ख़ास लक्षण पैदा नहीं करता।

रैबीज वायरस भी एक ऐसा ही परजीवी है जो अपने होस्ट के व्यवहार को नियंत्रित कर अपना जीवन चक्र पूरा करता है। इसका शिकार ज्यादातर कुत्ते होते हैं। ये वायरस होस्ट के दिमाग में गंभीर संक्रमण पैदा करता है जिससे अंत में उसकी मौत हो जाती है।

लेकिन उससे पहले ये उसकी आक्रामकता को बढ़ा देता है और साथ ही गले में सूजन पैदा कर निगलना मुश्किल कर देता है। संक्रमित होस्ट के मुहँ में वायरस युक्त लार का उत्पादन बढ़ जाता है जो कि निगल न पाने के कारण मुहँ से झाग जैसे निकलती रहती है। बढ़ी आक्रामकता के कारण संक्रमित कुत्ता अपने आस पास मौजूद जीवों पर हमला कर उन तक भी वायरस पहुंचा देता है।

ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं, जीव जगत में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिन्हें खोजा गया है और न जाने कितने ही ऐसे होंगे जो कि अभी खोजे जाने हैं। फ़िल्मी पर्दे पर दिखाए जाने वाले जोम्बीज भले वास्तविकता में न हों पर जीव जगत में तमाम ज़ोम्बीज हमारे आस पास ही मौजूद हैं।

Written by Arpit Dwivedi

No comments